सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 59: आदेश 11 नियम 12 से 14 तक के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 11 परिप्रश्न एवं प्रकटीकरण से संबंधित है। इस आलेख के अंतर्गत संयुक्त रूप से नियम 12,13 एवं 14 पर विवेचना की जा रही है।
नियम-12 दस्तावेजों के प्रकटीकरण के लिए आवेदन- कोई भी पक्षकार कोई भी शपथपत्र फाइल किए बिना न्यायालय से ऐसे आदेश के लिए आवेदन कर सकेगा जो किसी वाद के किसी अन्य पक्षकार को निदेश करता हो कि वह उसमें प्रश्नगत किसी बात से संबंधित ऐसी दस्तावेजों का, जो उसके कब्जे या शक्ति में हो या रही हों, शपथपत्र पर प्रकटीकरण करे। ऐसे आवेदन की सुनवाई के पश्चात् यदि न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा प्रकटीकरण आवश्यक नहीं है या वाद के उस प्रक्रम में आवश्यक नहीं है तो वह उसे नामंजूर कर सकेगा या स्थगित कर सकेगा अथवा या तो साधारणतः या दस्तावेजों के कुछ वर्गों तक ही सीमित ऐसा आदेश कर सकेगा जो स्थविवेक में वह ठीक समझे
परन्तु जब और जहां तक न्यायालय की यह राय है कि वाद के ऋजु निपटारे के लिए या खर्चा में बचत करने के लिए यह आवश्यक नहीं है तब और वहां तक प्रकटीकरण के लिए आदेश नहीं दिया जाएगा।
नियम-13 दस्तावेजों सम्बन्धी शपथपत्र- जिस पक्षकार के विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया है जो अन्तिम पूर्वतर्ती नियम में वर्णित है, उस पक्षकार द्वारा दिए जाने वाले शपथपत्र में यह विनिर्दिष्ट होगा कि उसमें वर्णित दस्तावेजों में से किसको (यदि कोई हो) पेश करने पर वह आक्षेप करता है और परिशिष्ट ग के प्ररूप संख्यांक 5 में ऐसे फेरफार के साथ होगा जो परिस्थितियों से अपेक्षित हो।
14 दस्तावेजों का पेश किया जाना- न्यायालय के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह किसी भी वाद के लंबित रहने के दौरान किसी भी समय उसमें से किसी भी पक्षकार को यह आदेश दे कि वह शपथ पर, अपने कब्जे या शक्ति में की और ऐसे वाद में प्रश्नगत किसी विषय के सम्बन्धित दस्तावेजों में से ऐसी दस्तावेजें पेश करे जो न्यायालय ठीक समझे और जब ऐसी दस्तावेजें पेश की जाएं तब न्यायालय उनका इस प्रकार उपयोग कर सकेगा जो न्यायसंगत प्रतीत हो।
आदेश 11, नियम 12 दस्तावेजों के प्रकटीकरण के लिए आवेदन देने को व्यवस्था करता है, जिसका उत्तर शपथ पत्र के रूप में प्रतिपक्षी नियम 13 के अधीन देता है। नियम 14 के अधीन, दस्तावेजों के पेश किये जाने (प्रस्तुतीकरण) को व्यवस्था है।
2. प्रकटीकरण के लिए आवेदन (नियम 12) -
इस आवेदन के साथ शपथ पत्र फाइल करने को आवश्यकता नहीं है। दस्तावेज प्रश्नगत किसी बात से संबंधित होना आवश्यक है। दस्तावेज अन्य पक्षकार के कब्जे या शक्ति में होनी चाहिये या उसके कब्जे में रही होनी चाहिये। यहाँ अन्य पक्षकार में आवेदक के अलावा अन्य वादी या प्रतिवादी आते हैं। यह आवेदन शपथ पत्र पर दस्तावेजों के प्रकटीकरण करने के लिए है।
आवेदन पर दोनों पक्षों को सुनवाई करने के बाद, न्यायालय निम्न में से कोई आदेश करेगा-
(i) यदि न्यायालय के समाधान में ऐसा प्रकटीकरण आवश्यक नहीं है या इस प्रक्रम पर आवश्यक नहीं है, तो वह उस आवेदन को नामंजूर कर सकेगा या स्थगित कर सकेगा, अथवा अपने विवेक से साधारणतया दस्तावेजों के कुछ वगों (सेटों) के बारे में उचित आदेश कर सकेगा। यदि प्रकटीकरण करना वाद के न्यायपूर्ण (ऋजु) निपटारे के लिए या खर्चों को बचाने के लिए आवश्यक नहीं है, तो ऐसा प्रकटीकरण का आदेश नहीं दिया जाएगा। प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र के साथ शपथ पत्र प्रस्तुत किया जाना आवश्यक नहीं है, एवं दस्तावेज को विशिष्टयाँ भी बताया जाना आवश्यक नहीं है, ऐसा प्रत्येक दस्तावेज जो प्रकरण से संबंध रखता है, वह आवश्यक है यद्यपि अग्राह्य हो सकता है, प्रस्तुत करवाया जायेगा।
दस्तावेजों का प्रकटीकरण (आदेश 11, नियम 12-14]- प्रकटीकरण का दूसरा तरीका दस्तावेजों का प्रकटीकरण है। प्रश्नगत किसी बात से सम्बन्धित दस्तावेज दो प्रकार के होते हैं-
(1) ये दस्तावेज जिनका विपक्षी निरीक्षण कर सकता है, और
(2) वे दस्तावेज, जिनका विपक्षी निरीक्षण करने का अधिकारी नहीं है।
(क) शब्दावली प्रश्नगत किसी बात का अर्थ- आदेश 11 के नियम 12 में प्रयुक्त शब्दावली प्रश्नगत किसी बात का अर्थ किसी कार्यवाही में विवादग्रस्त प्रश्न या विवाधक से है, न कि उस वस्तु से जिसके बारे में विवाद उत्पन्न हुआ है। भूमि की प्राप्ति के लिए एक वाद में इसका अर्थ वादी के तथाकथित स्वत्व (टाइटिल) से है, न कि उस भूमि से। वादी की भूमि पर प्रतिवादी को प्रवेश करने से रोकने के लिए व्यादेश के लिए वाद में, इसका अर्थ वादी के कब्जे (आधिपत्य) से है। इस प्रकार वास्तव में प्रश्नगत किसी बात न तो भूमि है, न उससे जुड़े हुए सभी अधिकार। इस प्रकार प्रकटीकरण के लिए आदेश को मांग करने से पहले प्रश्नगत किसी बात की पहचान रखना आवश्यक है और प्रकटीकरण का यह दिखाने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता कि प्रश्नगत बात क्या है।
दस्तावेजों के प्रकटीकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे दस्तावेजात साक्ष्य में ग्राह्य ही हों। जो दस्तावेज उस विवादग्रस्त प्रश्न या मामले पर कुछ प्रकाश डालने योग्य हैं, उनके प्रकटीकरण को अनुमति दी गई। दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण के बारे में आक्षेप या एतराज प्ररूप संख्या 5 में किये जाने चाहिए। ऐसे आक्षेप आगे बताये जा रहे हैं।
दस्तावेजों के प्रकटीकरण (नियम 12) और दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण (पेश किया जाना) (नियम 14) दोनों में अन्तर है। प्रकटीकरण में पक्षकार के कब्जे या शक्ति में जो भी संगत दस्तावेज हैं, उनको शपथपत्र (संख्यांक 5) द्वारा प्रकट करना होगा, बताना होगा। किंतु उनके प्रस्तुतीकरण के लिये आक्षेप किए जा सकते हैं, जो निम्न आधारों पर किए जा सकते हैं
साक्ष्य का प्रकटीकरण - जो दस्तावेज उस पक्षकार की अनन्य रूप से साक्ष्य है और उसके मामले या स्वामित्व को साबित करने के लिए है, उनको पेश करने के लिए वह पक्षकार बाध्य नहीं किया जा सकता।
विधि व्यवसाय का विशेषाधिकार- कोई भी पक्षकार अपने विधि सलाहकार (वकील) और अपने बीच हुए गोपनीय सम्प्रेषण या पत्राचार को पेश करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता।
लोकहित को क्षति - किसी शासकीय लोक दस्तावेज को पेश करने से यदि लोकहित को क्षति होने को सम्भावना हो, तो ऐसे दस्तावेज को पेश करने के लिये पक्षकार को बाध्य नहीं किया जा सकता।
(ग) व्यादेश के लिए प्रकीर्ण- आवेदन (आदेश 39, नियम 1) पर आदेश 11 के नियम 12 का लागू होना - संहिता की धारा 141 में आया शब्द सम्मिलित है, उस धारा के परिक्षेत्र को व्यापक बनाता है। एक वाद में उत्पन्न प्रकीर्ण कार्यवाही धारा 141 की परिभाषा में आती है, ताकि पक्षकारों को कठिनाइयाँ तथा कार्यवाही का बढ़ना हटाया जा सके। आदेश 39, नियम 1 के अधीन कार्यवाही वाद का एक अभिन्न अंग है, इसे अलग नहीं किया जा सकता। अतः इस कार्यवाही को आदेश 11 का नियम 12 लागू होता है। अस्थायी व्यादेश को कार्यवाहियाँ मूल वाद का भाग होने से अस्थायी आदेश के आवेदन में भी दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण हेतु प्रार्थना की जा सकती है।
(घ) प्रतिवादी द्वारा दस्तावेजों के प्रकटीकरण के लिए आवेदन- जब वादी ने उन सभी आवश्यक दस्तावेजों को, मय प्रतिलिपि के, प्रस्तुत कर दिया, जिन पर यह निर्भर करता है और उस विवाद सम्बन्धी कोई विशेष दस्तावेज वादी के पास नहीं है, तो दस्तावेज के प्रकटीकरण का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
आदेश 11, नियम 12 के अधीन कोई पक्षकार, बिना शपथपत्र दिये, न्यायालय को आवेदन कर सकता है कि विपक्षी को उन दस्तावेजों के शपथ पर प्रकटीकरण के लिए आदेश दिया जाय जो उस मामले या प्रस से संबंधित हैं और उसके कब्जे या शक्ति में हैं। ऐसा आदेश किसी सार्वजनिक संकाय जैसे नगरपालिका को भी दिया जा सकता है। साधारण प्रकटीकरण के लिए यह पर्यात है कि दस्तावेज विवाद पर प्रकाश डालने के लिए संगत हो, चाहे यह साक्ष्य में ग्राह्य न भी हो।
दूसरे शब्दों में, एक दस्तावेज चाहे साक्ष्य में ग्राह्य नहीं हो, फिर भी यदि उसमें कोई ऐसी सूचना है जो सीधे या परोक्षरूप में प्रकटीकरण चाहने वाले पक्षकार के मामले को आगे बढ़ाने या प्रतिपक्षी के मामले को हानि पहुंचाने या विचारण को ऐसी जांच करने को बढ़ाने के लिए है, जिसके इन दो में से कोई परिणाम निकलते हो, तो वह संगत है। जब तक कि प्रकटीकरण चाहने वाले पक्षकार को यह पता न हो कि कौन से दस्तावेज विरोधी पक्षकार के पास में हैं जो विवाद पर प्रकाश डालते हैं, तो उसके लिए यह संभव नहीं है कि वह दस्तावेज के प्रकटीकरण के लिए कहे।
दस्तावेजों (प्रलेखों) के प्रकटीकरण के लिए आवेदन- ऐसे आवेदन को स्वीकार करने से पहले न्यायालय को उन दस्तावेजों की पक्षकारों के बीच विवाद के साथ सुसंगतता पर विचार करना आवश्यक होगा। दस्तावेजों के प्रकटीकरण के लिए आवेदन- संहिता के आदेश 11 नियम 12 के अधीन वैवेकिक शक्ति का प्रयोग करने और उसके अधीन किए गए आवेदन को मंजूर करने के पूर्व न्यायालय से इस बात का विनिश्वय करना अपेक्षित है कि जिन दस्तावेजों के प्रकटीकरण की प्रार्थना या ईप्सा की गई है, क्या वे वादग्रस्त विवाद्यकों के कारगर निपटारे के प्रयोजनार्थ अपेक्षित, अत्यावश्यक और सुंसगत है।
(च) गोपनीयता का प्रश्न दस्तावेजों और पत्रों की खोज (प्रकटीकरण) में, केवल इस आधार पर कि वे गोपनीय है, बाधा उत्पन्न की गई। यह उचित नहीं माना गया, क्योंकि गोपनीयता की प्रकृति (स्वरूप) के बारे में कोई कारण नहीं दिये गये। पत्रों के प्रकटीकरण का आदेश दिया गया।
एक वाद में सरकार द्वारा की गई पदच्युति को आदेश का चुनौती देते हुए वादी द्वारा वाद फाइल किया जाना- अपने पक्षकथन को साबित करने के लिए वादी द्वारा कतिपय दस्तावेजों को पेश करने के लिए सूचना की तामील- कतिपय दस्तावेजों के बारे में राज्य सरकार के सम्पृक्त विभाग के निदेशक और संयुक्त सचिव द्वारा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के अधीन विशेषाधिकार का दावा करते हुए शपथपत्र फाइल किया जाना- ऐसा शपथपत्र साधारणतः विभाग के भारसाधक मंत्री या विभाग के सचिव द्वारा फाइल किया जाना चाहिए- शपथपत्र में उन कारणों के प्रति भी संकेत होना चाहिए जिनसे यह आंशका होती है कि दस्तावेज पेश करना लोकहित के प्रतिकूल होगा।
दस्तावेजों का अप्रकटीकरण- एक प्रकरण में वादी ने अपनी सेवा समाप्ति के आदेश को अवैध घोषित करने के लिए वाद संस्थित किया, जिसमें उसने उसकी सेवा समाप्ति के आदेश और मार्ग-बिलों पर दिये गये रिमार्क्स को प्रकट करने (पेश करने) के लिए प्रतिवादी को आदेश देने के लिए आदेश 11, नियम 12 के अधीन आवेदन किया, जिसे मुंसिफ ने खारिज कर दिया। वे दस्तावेज सुसंगत थे और मूल दस्तावेज प्रतिवादी के कब्जे में थे, जो इस मामले पर प्रकाश डाल सकते थे। यह मामला विवेकाधीन था। फिर भी मुंसिफ द्वारा दिये गये कारण विधि की दृष्टि में कोई कारण नहीं पाये गये। इन दस्तावेजों के प्रकट न करने से वादी को गंभीर अन्याय होगा। अतः रिवीजन स्वीकार कर उक्त दस्तावेज प्रकट करने के लिए प्रतिवादी को निर्देश दिया गया।
दस्तावेज के अप्रकटीकरण पर उपधारणा (नियम 13)- एक पक्षकार विवाधक को छूट है कि वह किसी दस्तावेज को असंगत मानकर उसे प्रकट करने से मना कर दे। यदि विपक्षी को इससे असंतोष है तो यह उसका काम है कि वह दस्तावेज के शपथपत्र के लिए आवेदन करे और जो कुछ उसे उस शपथपत्र में संगत और उचित प्रतीत होता हो, उसका वह प्रकटीकरण करवा कर निरीक्षण कर सकता है। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो न तो वह स्वयं, न उसकी प्रेरणा पर न्यायालय ही उस दस्तावेज की विषय वस्तु के बारे में कोई अनुमान (उपधारणा) आहरित करने के लिए हकदार है।
किसी समय पर का अर्थ (नियम 14)- ये शब्द यह प्रकट करते हैं कि नियम 12 के अधीन प्रकटीकरण का आदेश प्राप्त किये बिना इस नियम के अधीन आदेश किया जा सकता है। यह अभिनिर्धारित किया गया है कि यदि पक्षकार अपनी उपेक्षा से लोक दस्तावेज के प्रकटीकरण के लिए कोई कदम न उठावे, तो भी न्यायालय अपनी प्रेरणा से लोक दस्तावेज को प्रकट करने का आदेश दे सकता है।
आदेश 11 नियम 14 कोई विशिष्ट चरण स्टेज पर दस्तावेजों के प्रस्तुतीकरण का आदेश देने को विहित नहीं करता है। अतः यह शब्द के लम्बित रहते समय में किसी भी समय किया जा सकता है। आदेश 11. नियम 14 के अधीन दस्तावेजों का प्रस्तुतीकरण, येनकेन, न्यायालय के विवेकाधीन है। यह न्यायालय के लिए आज्ञापक नहीं है कि जब कभी माँग की जाए, यह दस्तावेज पेश करने के लिए निर्देश देवे।
प्रस्तुत मामले में, वादी ने बहुत सी राशियों की वसूली के लिए वाद प्रस्तुत किया, जो वादी द्वारा प्रतिवादियों को दी गई थी। प्रतिवादियों ने दस्तावेजों का प्रकटीकरण व निरीक्षण चाहा, जो वादी (बैंक) ने रिजर्व बैंक से पत्र व्यवहार किया था और प्रतिवादियों को छूट दी गई थी। अभी तक प्रतिवादियों ने कोई लिखित कथन फाइल नहीं किये हैं, अत: उनका रुख (स्टेण्ड) स्पष्ट नहीं है। यह एक फँसाने वाली कार्यवाही है। दस्तावेज के प्रकटीकरण तथा निरीक्षण को स्वीकृति नहीं दी जा सकती।
अपमान के प्रकरण में दस्तावेज का प्रकटीकरण (नियम 14) - एक साप्ताहिक पत्र के मालिक और उसमें अपमानजनक लेख प्रकाशित करने वाले प्रकाशक के विरुद्ध अपमान के लिए नुकसानी (क्षतिपूर्ति) का वाद लाया गया। इसमें प्रश्नों में से एक यह था कि क्या द्वितीय प्रतिवादी द्वारा किये गये प्रकाशन के लिए प्रथम प्रतिवादी दायी था। प्रथम प्रतिवादी द्वारा द्वितीय प्रतिवादी को दिये गये प्राधिकार का स्वरूप (प्रकृति) एक संगत तथ्य था। अतः उस (द्वितीय) प्रतिवादी को नियुक्ति से संबंधी दस्तावेज संगत थे और उनको प्रस्तुत करने का आदेश दिया जा सकता है।
प्रतिरक्षा काटना - नियम 14 के अधीन दिये गये आदेश को अनुपालना नहीं करने पर प्रतिरक्षा को काट देना न्यायोचित नहीं है।
अरजिस्टर्ड दस्तावेज साक्ष्य में अग्राह्य-पुनरीक्षण नहीं - इस विधिक तर्क पर विचार करने के बाद न्यायालय ने ऐसे दस्तावेज को पेश कराने के लिए दिए गए आवेदन को अस्वीकार कर दिया। यह आदेश के पुनरीक्षण की छूट नहीं है, क्योंकि इसमें कोई अवैधता या तात्विक अनियमितता अधिकारिता के प्रयोग में नहीं हुई है।
दस्तावेजों का प्रस्तुतीकरण-नियम 12, 13, व 14 की परिधि व लागू होना - नियम 12 व 14 के उपबंध एक दूसरे से स्वतंत्र - आदेश 11 के नियम 12 और 14 एक दूसरे से स्वतंत्र हैं और प्रत्येक मामले में यह आवश्यक नहीं है कि नियम 12 के अधीन सभी आवेदन पहले किये जाएँ और इस प्रकार नियम 12 में किये गये आवेदनों पर निर्णय के बाद और नियम 13 के अधीन विपक्षी द्वारा शपथ पत्र देने के बाद, नियम 14 के अधीन आवेदन किया जाय।
साक्ष्य में ग्राह्यता - इस नियम के तहत आवेदित दस्तावेज साक्ष्य में अग्राह्य हो सकता है लेकिन मात्र इस आधार पर दस्तावेज के पेश करने या प्रकटीकरण का आवेदन अस्वीकार नहीं किया जा सकता।