सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 50: आदेश 9 नियम 5 एवं 6 के प्रावधान

Update: 2023-12-23 08:45 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 9 पक्षकारों के अदालत में उपस्थित होने एवं नहीं होने के संबंध में प्रावधान निश्चित करता है। आदेश 9 का नियम 5 वादी द्वारा समन तामील के खर्चे देने में व्यतिक्रम से संबंधित है एवं नियम 6 प्रतिवादी द्वारा उपस्थित नहीं होने से संबंधित है। इन दोनों परिस्थितियों में न्यायालय क्या निर्णय ले सकता है यह प्रावधान इन नियमों में स्पष्ट होते हैं। इस आलेख के अंतर्गत इन दोनों नियमों पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-5 जहाँ वादी, समन तामील के बिना लौटने के पश्चात् सात दिन तक नए समन के लिए आवेदन करने में असफल रहता है वहाँ वाद का खारिज किया जाना-

(1) जहाँ समान प्रतिवादी या कई प्रतिवादियों में से एक के नाम निकाले जाने और तामील के बिना लौटाए जाने के पश्चात् उस तारीख से [सात दिन] की अवधि तक, जिसकी न्यायालय को उस अधिकारी ने विवरणी दी है, जो तामील करने वाले अधिकारियों द्वारा दी जाने वाली विवरणियों को न्यायालय को मामूली तौर से प्रमाणित करता है, वादी न्यायालय से नए समन निकालने के लिए आवेदन करने में असफल रहता है वहाँ न्यायालय यह आदेश करेगा कि वाद ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध खारिज कर दिया जाए किन्तु यदि वादी ने न्यायालय का यह समाधान उक्त अवधि के भीतर कर दिया है कि-

(क) जिस प्रतिवादी पर तामील नहीं हुई है उसके निवास स्थान का पता चलाने में वह अपने सर्वोत्तम प्रयास करने के पश्चात् असफल रहा है, अथवा

(ख) ऐसा प्रतिवादी आदेशिका की तामील होने देने से अपने को बचा रहा है, अथवा

(ग) समय को बढ़ाने के लिए कोई अन्य पर्याप्त कारण है।

तो ऐसा आवेदन करने के लिए समय को न्यायालय इतनी अतिरिक्त अवधि के लिए बढ़ा सकेगा जितनी वह ठीक समझे।

(2) ऐसी दशा में वादी (परिसीमा विधि के अधीन रहते हुए) नया वाद ला सकेगा।

संहिता का यह नियम कुछ परिस्थितियों में प्रतिवादी के विरुद्ध वाद को खारिज करने का उपबंध करता है। पहले अवधि 'तीन मास' थी जिसे कम कर एक मास कर दिया गया, बाद में फिर कम कर सात दिन कर दिया गया है। यह सात दिन की अवधि निदेशात्मक है।

इस नियम के महत्वपूर्ण तथ्य

(1) समन का लौटना

(2) एक मास की अवधि

(1) समन का लौटना-समन प्रतिवादी या कई प्रतिवादियों में से किसी एक के नाम निकाला गया था, परन्तु वह बिना तामील वापस आ गया है।

(2) सात दिन की अवधि- तामीलकर्ता ने अपनी विवरणी (रिटर्न) न्यायालय में दे दी थी और उसे प्रमाणित करने वाले अधिकारी ने प्रमाणित कर न्यायालय में पेश कर दिया, उसी दिनांक से सात दिन की अवधि गिनी जाएगी।

वाद खारिज करना-

उक्त एक मास की अवधि में वादी न्यायालय से नये समन निकालने का आवेदन नहीं करता है, तो न्यायालय यह आदेश करेगा कि वाद ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध खारिज कर दिया जाए। इस प्रकार ऐसे प्रतिवादी का नाम वाद से हटा दिया जाएगा, जिसके समन तामील नहीं हुए और नए समन पेश नहीं किये गये।

अवधि बढ़ाना-न्यायालय का समाधान - यदि उपर्युक्त सात दिन की अवधि के भीतर वादी न्यायालय का समाधान कर देता है-

(क) उस प्रतिवादी के नये पते (निवास) का पता प्रयास करने पर भी नहीं लगा सका (या)

(ख) प्रतिवादी तामील से बच रहा है, या कोई अन्य पर्याप्त कारण समय बढ़ाने के लिए है तो वादी के आवेदन पर न्यायालय उचित अवधि बढ़ा सकेगा।

नया वाद लाना-

नियम 5 के अधीन वाद खारिज करने पर नया वाद लाने की छूट है, परन्तु यह परिसीमा के भीतर होना आवश्यक है।

खारिज करने के आदेश का उपचार- यदि न्यायालय वादी के वाद को ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध खारिज कर देता है और वादी एक माह की अवधि में आवेदन करने में असफल रहता है, तो वह परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के अधीन देरी माफ करने का आवेदन देते हुए पुनः आवेदन कर सकता है।

नियम-6 जब केवल यादी उपसंजात होता है तब प्रक्रिया (1) जहां वादी की सुनवाई के लिए पुकार होने पर वादी उपसंजात होता है और प्रतिवादी उपसंजात नहीं होता है यहां-

[(क) जब समन की तामील सम्यक् रूप से की गयी है-यदि यह साबित हो जाता है कि समन की तामील सम्यक् रूप से की गई थी तो न्यायालय आदेश कर सकेगा कि वाद की एकपक्षीय सुनवाई की जाए।

(ख) जब समन की तामील सम्यक् रूप से नहीं की गई है-यदि यह साबित नहीं होता है कि समन की तामील सम्यक् रूप से गई थी तो न्यायालय आदेश देगा कि दूसरा समन निकाला जाए और उसकी तामील प्रतिवादी पर की जाए।

(ग) जब समन की तामील तो हुई हो किन्तु सम्यकृ समय में नहीं हुई हो-यदि यह साबित हो जाता है कि समन की तामील तो प्रतिवादी पर हुई थी किन्तु ऐसे समय पर नहीं हुई थी कि समन में नियत दिन को उपसंजात होने और उत्तर देने को उसे समर्थ करने के लिए उसे पर्याप्त समय मिल जाता, तो न्यायालय बाद की सुनवाई को न्यायालय द्वारा नियत किये जाने वाले किसी भविष्यवर्ती दिन के लिए मुल्तवी करेगा और निर्देश देगा कि ऐसे दिन की सूचना प्रतिवादी को दी जाए।

(2) जहां समन की सम्यक् रूप से तामील या पर्याप्त समय के भीतर तामील वादी के व्यतिक्रम के कारण नहीं हुई है यहां न्यायालय वादी को आदेश देगा कि मुल्तवी होने के कारण होने वाले खर्चों को यह दे।

नियम 6 प्रतिवादी की अनुपस्थिति के बारे में उपबन्ध करता है, जबकि वादी उपस्थित हो।

उपधारा (1) के खण्ड (क), (ख) और (ग) में प्रतिवादी के अनुपस्थिति के लिए तीन परिस्थितयां बताई गई है, जो इस प्रकार है- (क) जब समन की सम्यक् (सही) तामील प्रतिवादी पर हो गई है तो प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय सुनवाई का आदेश दिया जा सकेगा। ऐसे आदेश का नियम 7 के अधीन उपचार दिया गया है और आगे नियम 13 व 14 में एकपक्षीय डिग्री को अपास्त करने का उपबंध किया गया है।

(ख) यदि प्रतिवादी पर समन की तामील सहीं नहीं हुई है, तो समन दुबारा जारी किया जाएगा।

(ग) यदि प्रतिवादी को उचित समय पर तामील नहीं हुई और उसे उत्तर देने का समय नहीं मिला तो अगली सुनवाई की तारीख तय करके प्रतिवादी को सूचना दी जायेगी।

प्रकरण में उपसंजात होने की नियत तारीख के पश्चात् प्रतिवादी पर समन की तामिल हुई। ऐसे मामले में विचारण न्यायालय को चाहिए कि वह प्रतिवादी के उपसंजात के लिए कोई नई तारीख निश्चित करे एवं वादी को निर्देश देवे कि वह प्रतिवादी पर पुनः तामील के लिए कदम उठायें।

खर्चे कौन देगा-

यदि समन की सम्यक् तामील या पर्याप्त समय के भीतर तामील वादी की चूक या गलती (व्यतिक्रम) के कारण नहीं हो सकी हो तो न्यायालय वादी को इस स्थगन के कारण होने वाले खर्चे देने का आदेश देगा।

आदेश 9, नियम 6 (1) (क) किसी वाद की पहली सुनवाई (फस्र्ट हियरिंग) तक सीमित है और यह दृश्यतः वाद की सुनवाई को लागू नहीं होता। पहली सुनवाई या तो विवाद्यकों को बनाने के लिये होती है, या अन्तिम सुनवाई के लिये। यदि यह केवल विवाद्यकों को तय करने के लिए है, तो उस दिन न्यायालय एकपक्षीय डिक्री आदेश के नियम 3 (1) के परन्तुक के कारण पारित नहीं कर सकता। 'एकपक्षीय' का केवल यह अर्थ है कि-'दूसरे पक्षकार की अनुपस्थिति में। जब प्रतिवादी को तामील हो गई और उसे उपस्थित होने का एक अवसर दिया गया, फिर भी यदि वह उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उसकी अनुपस्थिति में कार्यवाही कर सकेगा, परन्तु न्यायालय को 'एकपक्षीय' आदेश करने का निर्देश नहीं है। नियम 6 (1) (क) एक बाधा को हटाने के अलावा अधिक कुछ नहीं करता। यह न्यायालय को केवल एक पक्षकार की अनुपस्थिति में आगे कार्यवाही करने के लिये प्राधिकृत करता है।

नियम 7 कहता है कि यदि एक स्थगित की गई सुनवाई पर प्रतिवादी उपस्थित होता है और अपनी पिछली अनुपस्थिति का कोई अच्छा कारण दर्शित करता है, तो उसे वाद के उत्तर के लिए सुना जा सकता है, मानो वह उस दिन उपस्थित था। यदि पक्षकार वाद को स्थगित सुनवाई पर उपस्थित हो जाता है, तो उसे केवल इसलिए कार्यवाही में भाग लेने से मना नहीं किया जा सकता कि वह पहली या किसी अन्य सुनवाई पर उपस्थित नहीं था।

यदि प्रतिवादी पहली सुनवाई परं उपस्थित नहीं होता है, तो बिना किसी लिखित-कधन के न्यायालय एकपक्षीय कार्यवाही कर सकता है। आदेश 9, नियम 7 यह स्पष्ट करता है कि बिना अच्छा कारण बताये उपस्थित हुआ प्रतिवादी अपनी उसी स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता। यह लिखित कथन पेश नहीं कर सकता, जब तक उसे अनुमति न दे दी जाए और यदि न्यायालय यह समझे कि उस मामले में लिखित-कधन प्रस्तुत किया जाना चाहिये था, तो उसे आदेश 8, नियम 10 के परिणाम भुगतने होंगे। वे परिणाम क्या होने चाहिये, यह किसी विशेष मामले में, न्यायिक विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए, न्यायालय द्वारा न्याय के हित में तय किये जायेंगे, अर्थात् केवल प्रतिवादी को ही न्याय नहीं; अपितु दूसरे पक्ष को भी और गवाहों को भी, जिन्हें असुविधा हुई।

यदि प्रतिवादी स्थगित सुनवाई पर (चाहे पहली सुनवाई पर उपस्थित था या नहीं) उपस्थित नहीं होता है, तो आदेश 17 नियम 2 लागू होगा और न्यायालय को यथासंभव व्यापक विवेकाधिकार दिया गया है कि वह - या तो उस वाद का आदेश 9 में बताये गये तरीकों में से एक द्वारा निपटारा करे, या ऐसा कोई आदेश करे, जो वह उचित समझे।

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