सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 158: आदेश 26 नियम 10(क), 10(ख), 10(ग) के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 10(क), (ख) एवं (ग) पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-10(क) वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए कमीशन (1) जहाँ वाद में उद्भूत होने वाले किसी प्रश्न में कोई ऐसा वैज्ञानिक अन्वेषण अन्तर्गस्त है जो न्यायालय की राय में न्यायालय के समक्ष सुविधापूर्वक नहीं किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय यदि वह न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे तो ऐसे व्यक्त्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह निदेश देते हुए निकाल सकेगा कि वह ऐसे प्रश्न की जाँच करे और उसकी रिपोर्ट न्यायालय को दे।
(2) इस आदेश के नियम 10 के उपबन्ध इस नियम के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में जहाँ तक हो सके प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे नियम 9 के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में लागू होते हैं।
नियम-10(ख) अनुसचिवीय कार्य करने के लिए कमीशन (1) जहाँ वाद में उद्भूत होने वाले किसी प्रश्न में कोई ऐसा अनुसचिवीय कार्य करना अन्तर्गस्त है जो न्यायालय की राय में न्यायालय के समक्ष सुविधापूर्वक नहीं किया जा सकता है, वहाँ न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जाएंगे, यदि न्यायालय की राय हो कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह निदेश देते हुए निकाल सकेगा कि वह उस अनुसचिवीय कार्य को करे और उसकी रिपोर्ट न्यायालय को दे।
(2) इस आदेश के नियम 10 के उपबन्ध इस नियम के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे नियम 9 के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में लागू होते हैं।
नियम-10(ग) जंगम सम्पत्ति के विक्रय के लिए कमीशन (1) जहाँ वाद में किसी ऐसी जंगम सम्पत्ति का जो वाद के अवधारण के लम्बित रहने के दौरान न्यायालय की अभिरक्षा में है और जो सुविधापूर्वक परिरक्षित नहीं की जा सकती है, विक्रय करना आवश्यक हो जाता है, वहाँ न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जाएंगे, यदि न्यायालय की यह राय हो कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे, कमीशन उसे यह निदेश देते हुए निकाल सकेगा कि वह ऐसे विक्रय का संचालन करे और उसकी रिपोर्ट न्यायालय को दे।
(2) इस आदेश के नियम 10 के उपबन्ध इस नियम के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे, जिस प्रकार वे नियम 9 के अधीन नियुक्त कमिश्नर के संबंध में लागू होते हैं।
(3) ऐसा प्रत्येक विक्रय जहाँ तक हो सके डिक्री के निष्पादन में जंगम सम्पत्ति के विक्रय के लिए विहित प्रक्रिया के अनुसार किया जाएगा।
वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए नियम 10- क के अधीन, अनुसचिवीय कार्य करने के लिए नियम 10 ख के अधीन और जंगम सम्पत्ति के विक्रय के लिए नियम 10-ग के अधीन विशेष उपबन्ध किये गये हैं।
नियम 10 का लागू होना- इस आदेश के नियम 10 के उपबन्ध तीनों नियमों के अधीन नियुक्त कमिश्नर को उसी प्रकार लागू होते हैं, जैसे वे नियम के अधीन नियुका कमिश्नर को लागू होते हैं।
आयुक्त को नियुक्ति और उसकी न्याधिक शक्तियाँ- कम्प्यूटर्स से फ्लोपी डिस्क्स पर दक्ष व्यक्तियों की मदद से रिकार्ड को गई सामग्री को प्रति बनाने या उसे ट्रान्सक्राइब करने और फिर उन फ्लोपी डिस्क्स को न्यायालय में लाने का निदेश दिया गया, ताकि पक्षकार विचारण के समय उस सामग्री का सहारा ले सकें। यह कार्य आदेश 26, नियन 9 तथा धारा 75 (ख) के अधीन वर्णित स्थानीय अन्वेषण नहीं होता है और न ही यह धारा 75 (ई) और आदेश 26 के नियम 10-क द्वारा वांछित दक्ष वैज्ञानिक तकनीकी अन्वेषण होता है। यह तो उस पक्षकार के लिए दस्तावेजों का संकलन किया गया है, जो अनुमेय नहीं है। अतः आयुक्त की नियुक्ति का आदेश बिना अधिकारिता के है। ऐसी नियुक्ति धारा 115 के अधीन (पुनरीक्षण में) नहीं की जा सकती।
हस्तलेख-विशेषज्ञ को दुबारा कमीशन- विधि में ऐसा कोई प्रतिबन्ध या निषेध नहीं है कि पहली रिपोर्ट को अपास्त किये बिना एक हस्तलेख विशेषज्ञ को मामला निर्देशित नहीं किया जाए। यह मामला न्यायालय के विवेकाधीन है। यह एक सामान्य नियम हो सकता है कि दूसरा कमीशन जारी नहीं किया जाए, परन्तु ऐसा कोई विधि का निषेध नहीं है।
हस्तलेख विशेषज्ञ से जाँच- उच्च न्यायालय को इस अभिव्यक्ति कि वादी ने केवल वसीयत की प्रामाणिकता को चुनौती दी है लेकिन उसने कहीं ऐसा आक्षेप नहीं किया है कि वसीयत पर के हस्ताक्षर प्रामाणिक नहीं है अतः आदेश 26 नियम 10(ए) के अधीन वैज्ञानिक अन्वेक्षण की आवश्यकता नहीं है, त्रुटिपूर्ण निष्कर्ष है। वसीयत की प्रामाणिकता को चुनौती दिये जाने में हस्ताक्षरों को चुनौती दिया जाना निहित है अतः वैज्ञानिक अन्वेक्षण अनुज्ञेय है।
वाद-भूमि की पहचान के लिए सर्वे-कमीशन की नियुक्ति आवश्यक - घोषणा तथा आधिपत्य सम्बन्धी एक वाद में, वाद-भूमि की पहचान के बारे में गम्भीर विवाद था, परन्तु निम्न न्यायालयों ने उस वाद- भूमि की पहचान स्थापित किए बिना ही वाद को डिक्रीत कर दिया। भूमि का सर्वे-कमीशन द्वारा पहचान करवाकर उसके खसरा संख्या का पता लगाना चाहिये था। आदेशों को अपास्त कर मामला वापस भेजा गया।
कमीशन पर साक्षी की परीक्षा (बयान) - विचारण-न्यायालय ने एक दक्ष-व्यक्ति को साक्ष्य कमीशन पर लेने का आदेश दिया। इस पर रिवीजन किया गया यह गवाह का विकल्प नहीं है कि उसके बयान कमीशन पर लिये जावें या खुले न्यायालय में। सरकारी परीक्षक ने न्यायालय को पत्र द्वारा अभिमत लिखकर कमीशन पर बयान लेने की राय दी। इसे न्यायालय का अवमान माना गया। गवाह को न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया गया। उक्त अधिकारी को अवमान का नोटिस दिया जावें।
न्यायिक कार्य और लिपिकीय कार्य में अन्तर- शब्द न्यायिक का प्रयोग उसे लिपिकीय से भिन्न बताने के लिए किया जाता है। ब्लैक की लॉ डिक्शनेरी में पृष्ठ 899 पर लिपिकीय कार्य का अर्थ बताया गया है कि यह वह कार्य है, जिसके लिए कुछ भी विवेक पर नहीं छोड़ा गया है। लिपिकीय कार्य एक ऐसा कार्य है, जिसमें निर्णय या विवेक के प्रयोग का अवसर नहीं आता है और लिपिकीय अधिकारी वह है जिसका कार्य शुद्ध रूप से लिपिकीय है, जो अधिशासी, विधायन या न्यायिक कार्यों से भिन्न है।
अतः जहां एक आयुक्त को किसी स्थान पर दस्तावेजों की सूची बनाकर उनको कब्जे में लेने के लिए नियुक्त किया गया, तो वे दस्तावेज उस अभिलेख का अंग नहीं बन जाते हैं, जब कि विपक्षी को उनकी संगति, ग्राह्यता और विश्वसनीयता को चुनौती देने का अवसर नहीं दिया गया हो। इस प्रकार से नियुक्त आयुक्त कोई न्यायिक कार्य नहीं करता है।