सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 153: आदेश 26 नियम 1 के प्रावधान

Update: 2024-03-20 06:41 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 26 कमीशन के संबंध में है। यहां सीपीसी में कमीशन का अर्थ न्यायालय के कामों को किसी अन्य व्यक्ति को देकर न्यायालय की सहायता करने जैसा है। इस आलेख के अंतर्गत इस ही आदेश 26 के नियम 1 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

कमीशन (आयोग) न्यायालय द्वारा किसी निर्धारित उद्देश्य या कार्य के लिए किसी व्यक्ति को आयुक्त नियुक्त कर अपनी कुछ सीमित शक्तियों उसे प्रदान करने की एक व्यवस्था है। इस प्रकार नियुक्त कमिश्नर न्यायालय के सहायक के रूप में कार्य करता है।

निम्न कार्यों के लिए एक न्यायालय कमीशन नियुक्त करती है-

साक्षियों की परीक्षा करने के लिए कमीशन (आदेश 26, नियम 1 से 8)

स्थानीय अन्वेषणों के लिए कमीशन (आदेश 26, नियम 9 से 10)

वैज्ञानिक अन्वेषण, अनुसचिवीय कार्य करने और जंगम सम्पत्ति के विक्रय के लिए कमीशन

लेखाओं की परीक्षा करने के लिए कमीशन

विभाजन करने के लिए कमीशन।

सामान्य उपबन्ध

नियम-1 वे मामले जिनमें न्यायालय साक्षी की परीक्षा करने के लिए कमीशन निकाल सकेगा - कोई भी न्यायालय किसी भी वाद में अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करने वाले ऐसे व्यक्ति की परिप्रश्नों द्वारा या अन्यथा परीक्षा करने के लिए कमीशन निकाल सकेगा जिसे न्यायालय में हाजिर होने से इस संहिता के अधीन छूट मिली हो या जो बीमारी या अंगशैथिल्य के कारण उसमें हाजिर होने में असमर्थ हो:

[परन्तु परिप्रश्नों द्वारा परीक्षा के लिए कमीशन तब तक नहीं निकाला जाएगा जब तक कि न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसा करना आवश्यक न समझे। स्पष्टीकरण - न्यायालय इस नियम के प्रयोजन के लिए, ऐसे प्रमाणपत्र को जो किसी व्यक्ति की बीमारी या अंगशैथिल्य के साक्ष्य के रूप में किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा दाताक्षर किया गया तात्पर्थित है, चिकित्सा व्यवसायी को साक्षी के रूप में आहूत किए बिना स्वीकार कर सकेगा।]

साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन (आयुक्त) जारी करना साक्षियों की परीक्षा के लिए इस आदेश के नियम 1 4 और 5 में व्यवस्था की गई है। इन नियमों से बाहर साक्षी की कमीशन पर परीक्षा नहीं की जा सकती। इस नियम से आवृत न होने वाले मामले में पक्षकारों की सहमति से कमीशन जारी किया जा सकता है।

कमीशन निकालने की व्यवस्था कमीशन पर किस की परीक्षा की जा सकेगी न्यायालय निम्न प्रकार के व्यक्तियों की

परिछश्नों द्वारा या अन्यथा परीक्षा करने के लिए कमीशन निकाल सकेगा

जो व्यक्ति उस न्यायालय की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करता है, और जिसे न्यायालय में हाजिर होने से इस संहिता के अधीन छूट प्राप्त हो, या

जो बीमारी या अंग शैथिल्य के कारण न्यायालय में उपस्थित होने में असमर्थ हो।

परिप्रश्नों द्वारा परीक्षा (परन्तुक) जब न्यायालय परिप्रश्नों द्वारा किसी व्यक्ति की परीक्षा करना आवश्यक न समझे तो इसके कारण लिखने के बाद वह परिप्रश्नों द्वारा परीक्षा के लिए कमीशन नहीं निकालेगा।

मेडिकल व्यवसायी का प्रमाण पत्र इस नियम के अधीन किसी व्यक्ति की बीमारी या अंग शैथिल्य के साक्ष्य के रूप में जब किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के हस्ताक्षर युक्त प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया जाता है, तो उस प्रमाण पत्र को साबित करने के लिए उस चिकित्सा व्यवसायी (डाक्टर, वैद्य, हकीम) को साक्षी के रूप में बुलाने की आवश्यकता नहीं है।

न्यायालय में उपस्थिति से छूटप्राप्त व्यक्ति धारा 132 के अनुसार देश की रीति रिवाज के अनुसार महिलाओं को उपस्थिति से छूट दी गई है, इस अधिकार के लिए मना करने की शक्ति न्यायालय को नहीं है, चाहे वह पहले आई हो या उसके विरुद्ध अनैतिकता का आरोप ही क्यों न हो। किन्तु किसी विशेष महिला द्वारा जीवन का तरीका बदलने पर कमीशन जारी करते समय इसे ध्यान में रखा जा सकता है। एक धार्मिक गुरु न्यायालय में उपस्थित होने से छूट-प्राप्त नहीं है।

इस नियम के प्रयोजनार्थ शब्दावली का अर्थ इस नियम में आई उक्त शब्दावली साक्षी की बीमारी या अशक्तता का प्रसंग देती है, न कि उसके निवास स्थान का। मेडिकल प्रमाण पत्र का मूल्यांकन हालांकि डाक्टर के शपथपत्र के बिना मेडिकल (चिकित्सा) प्रमाण-पत्र ग्राह्य है। परन्तु इस पर न्यायालय तभी कार्यवाही करेगा जब उसमें दिये गये विवरण से न्यायालय यह पता लगा सके कि बीमार का न्यायालय में उपस्थित होना, जोखिमी होगा। कमीशन और गवाह की भावभंगिमा का प्रश्न हालांकि गवाह की बयान देते समय भाव-भंगिमा का गवाह के साक्ष्य का मूल्यांकन करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है, परन्तु यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके कारण एक पक्षकार उचित मामलों में कमीशन निकालने के अधिकार से ही वंचित हो जाये।

कमीशन के लिए आवेदन नामंजूर करने के आदेश का पुनरीक्षण चलने योग्य है

एक मामले में एक वृद्ध गवाह की कमीशन पर परीक्षा के लिए आवेदन किया, जिसके साथ वडील का शपथपत्र था कि वह 73 वर्ष का वृद्ध व्यक्ति चलने फिरने में असमर्थ है और उसकी जांघ टूटी हुई है। इस आवेदन को खारिज कर दिया गया। जांघ की हड्डी टूटने के तथ्य पर कोई विवाद नहीं था। परन्तु डाक्टरी प्रमाणपत्र के अभाव में इस शपथपत्र को अस्वीकार करना उचित नहीं माना गया। ऐसे नामंजूर करने के आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण चलने योग्य है।

वैवाहिक विवाद में पति की नपुंसकता की जांच करने के लिए डाक्टर-आयुक्त की नियुक्ति

ऐसे मामले में पति की डाक्टरी जांच करने के लिए कमिश्नर नियुक्त किया जा सकता है।

दूसरे आयुक्त की नियुक्ति जब एक आयुक्त की रिपोर्ट असन्तोषजनक पाई जाये, तो न्यायालय उसे वापस उसी आयुक्त को भेज सकता है या दूसरा आयुक्त नियुक्त कर सकता है।

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