सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 150: आदेश 23 नियम 3(क), 3(ख) व 4 के प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 23 वादों का प्रत्याहरण और समायोजन है। वादी द्वारा किसी वाद का प्रत्याहरण किस आधार पर किया जाएगा एवं किस प्रकार किया जाएगा इससे संबंधित प्रावधान इस आदेश के अंतर्गत दिए गए हैं। इस आलेख के अंतर्गत आदेश 23 के नियम 3(क), 3(ख) व 4 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
नियम-3(क) वाद का वर्जन- कोई डिक्री अपास्त करने के लिए कोई वाद इस आधार पर नहीं लाया जाएगा कि वह समझौता जिस पर डिक्री आधारित है, विधिपूर्ण नहीं था।
नियम-3(ख) प्रतिनिधि वाद में कोई करार या समझौता न्यायालय की इजाजत के बिना प्रविष्ट न किया जाना
(1) प्रतिनिधि वाद में कोई करार या समझौता न्यायालय की ऐसी इजाजत के बिना जो कार्यवाही में अभिव्यक्त रूप से अनिलिखित हो, नहीं किया जाएगा और न्यायालय की इस प्रकार से अभिलिखित इजाजत के बिना किया गया ऐसा कोई करार या समझौता शून्य होगा।
(2) ऐसी इजाजत मंजूर करने के पूर्व न्यायालय ऐसी रीति से सूचना जिसे वह ठीक समझे, ऐसे व्यक्तियों को देगा जिनके बारे में उत्ते यह प्रतीत हो कि वे वाद में हितबद्ध हैं।
स्पष्टीकरण- इस नियम में प्रतिनिधि वाद से अभिप्रेत है-
(क) धारा 91 या धारा 92 के अधीन वाद,
(ख) आदेश 1 के नियम 8 के अधीन वाद,
(ग) वह वाद जिसे हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब का कर्ता, कुटुम्ब के अन्य सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए चलाता है उसके विरुद्ध चलाया जाता है
(घ) कोई अन्य वाद जिसमें पारित डिक्री इस संहिता के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के आधार पर किसी ऐसे व्यक्ति को, जो वाद में पक्षकार के रूप में नामित नहीं है, आबद्ध करती हो।
नियम-4 डिक्रियों के निष्पादन की कार्यवाहियों पर प्रभाव न पड़ना-इस आदेश की कोई भी बात डिक्री या आदेश के निष्पादन की कार्यवाहियों को लागू नहीं होगी।
केवल मौखिक-समझौते पर आधारित सहमति डिक्री शून्य होगी- ऐसी डिक्री को अपास्त करवाने के लिए धारा 151 के अधीन आवेदन करना या पुनर्विलोकन के लिए आवेदन करना उचित उपचार (उपाय) होगा। एक सिविल वाद इसके लिए वर्जित हैं। आदेश 23 नियम 3(क) के अधीन वाद के लिए जो वर्जन है, वह अपरिचित समझौता डिक्री का समझौता अवैध होने के आधार पर अपास्त करने के लिए वाद करने पर लागू नहीं है। वाद चलने योग्य है। समझौता पर आधारित डिक्री को अपास्त करवाने के लिए दूसरा वाद नहीं लाया जा सकता।
कपट से प्राप्त की गई समझौता डिक्री को अपील में अपास्त करवाया जा सकता है। धारा 96 (3) के प्रावधान ऐसी डिक्री को अपास्त करवाने में रुकावट पैदा नहीं करते प्रतिवादी के चाचा ने प्रतिवादी जो कि अवयस्क था, उसके लिए राजीनामा प्रस्तुत किया एवं वाद् राजीनामा के आधार पर डिक्री हुआ। प्रतिवादी के चाचा को किसी न्यायालय द्वारा संरक्षक नियुक्त नहीं कर रखा था।
ऐसा राजीनामा प्रतिवादी के विरुद्ध लागू नहीं होगा व इसे शून्य करवाने का वाद पोषणीय है क्योंकि आदेश 23 नियम 3(क) के प्रावधान लागू नहीं होते। राजीनामे के आधार पर राजस्व न्यायालय द्वारा पारित डिक्री को रद्द करवाने का वाद सिविल न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है।
आदेश 23 नियम 23क के प्रावधान समझौता के आधार पर पारित डिक्री, इस आधार पर कि उक्त डिक्री विधि सम्मत नहीं है, को अपास्त करने के लिए प्रस्तुत वाद की वर्जना करते हैं। ऐसा मामला केवल वही न्यायालय जिसने डिक्री पारित को है परीक्षित कर सकता है।
प्रतिनिधि-वाद - नियम 3(ख) में प्रतिनिधि वाद का उल्लेख है। हितबद्ध व्यक्तियों को सूचना दिये बिना किए गए समझौता की वैधता-उच्चतम न्यायालय द्वारा भोपाल गैस विभीषिका के मामले में अभिलिखित किए गए समझौते हितबद्ध लोगों को नोटिस न देने से शून्य नहीं है। संविधान के अनु० 136 के अधीन कार्यवाही पर नियम 3-ख उसी तेजी से लागू नहीं होता।
प्रतिनिधि वाद में राजीनामा आदेश 23 नियम 3ख के नोटिस के अभाव में नहीं किया जा सकता है एवं इस राजीनामे के आधार पर सम्पत्ति अन्तरिती को कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं होते है।
डिक्री का निष्पादन- नियम 4 में इसके संबंध में उल्लेख है। अनिष्पादनीयता का तर्क- आदेश 34 के उपबंध आदेश 23 के उपबन्धों के अध्यधीन है।
वाद की खारिजी, चाहे वह उपशमन के कारण हो या व्यतिक्रम के कारण हो या प्रत्याहरण के कारण, बन्धककर्ता को मोचन के लिए द्वितीय वाद फाइल करने से विवर्जित नहीं करेगी और ऐसा द्वितीय वाद और तत्प्रयोजनार्थ उसी बन्धक का मोचन करने के लिए मोचन हेतु प्रत्येक आनुक्रमिक वाद फाइल किया जा सकता है, जब तक कि बंधक अस्तित्व में रहता है और मोचन का अधिकार समय व्यतीत हो जाने के कारण या विहित प्ररूप में पारित न्यायालय की डिक्री द्वारा निर्वापित नहीं हो जाता है।
सहमति डिक्री - न्यायालय यह देखेगा कि- सहमति के शर्तें सम्बन्धित विधि के संगत हैं। दाण्डिक खण्ड के उदाहरण-अन्यथा पारित डिक्री पूर्वन्याय के रूप में लागू नहीं होगी। समझौता डिक्री अभिलिखित करना- एक मामले में पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित समझौता पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर पक्षकारों के वकील उन हस्ताक्षरों की पहचान करते हैं।
प्रतिवादी ने वाद में तर्क दिया कि कोई समझौता नहीं हुआ था, परन्तु उसने समझौता पत्र पर किए गए हस्ताक्षरों को अस्वीकार नहीं किया। न्यायालय ने यह कहकर समझौता अभिलिखित करने से मना कर दिया कि समझौते को बाद में पलट दिया गया और वे उसको मानने को राजी नहीं है।
न्यायालय का यह निर्णय उचित नहीं था। सहमति-आदेश का प्रभाव - सहमति आदेश द्वारा ठेकेदार को विनिर्दिष्ट पालन या उसके बदले में नुकसानी पाने से वंचित कर दिया गया, परन्तु उसके अन्य दावे सुरक्षित रखे गए। अतः किये गये कार्य व दिए गए माल के दावे वर्जित नहीं हुए।