सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में Dr. Bhim Rao Ambedkar Vichar Manch Bihar, Patna v. State of Bihar & Ors. (2024 INSC 528) मामले में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न पर निर्णय दिया। सवाल यह था कि क्या किसी राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह अनुसूचित जातियों (Scheduled Castes) की सूची में किसी जाति को जोड़, घटा या किसी दूसरी जाति में मिला दे। अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 341 (Article 341) के तहत केवल संसद (Parliament) को ही यह अधिकार है, और राज्य सरकारें इस सूची में कोई भी छेड़छाड़ नहीं कर सकतीं।
अनुसूचित जाति पर संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions on Scheduled Castes)
अनुच्छेद 366(24) (Article 366(24)) में “अनुसूचित जाति” (Scheduled Castes) की परिभाषा दी गई है। यह कहता है कि वे जातियाँ जिन्हें अनुच्छेद 341 (Article 341) के तहत राष्ट्रपति (President) द्वारा अधिसूचित (Notified) किया जाएगा, वही अनुसूचित जातियाँ मानी जाएँगी।
अनुच्छेद 341(1) के तहत राष्ट्रपति, राज्यपाल (Governor) से परामर्श के बाद, किसी राज्य के लिए अनुसूचित जाति की सूची अधिसूचित कर सकते हैं। लेकिन अनुच्छेद 341(2) साफ कहता है कि इस सूची में कोई बदलाव केवल संसद ही कानून (Law) बनाकर कर सकती है। न तो राष्ट्रपति और न ही राज्य सरकार इस सूची में बदलाव कर सकती है।
बिहार सरकार का 2015 का प्रस्ताव (The Bihar Government's Resolution)
बिहार सरकार ने 1 जुलाई 2015 को एक अधिसूचना (Notification) जारी की। इसमें “Tanti-Tantwa” जाति, जो पहले अत्यंत पिछड़े वर्गों (Extremely Backward Classes) में आती थी, को उस सूची से हटाकर अनुसूचित जाति की सूची में “Pan/Sawasi” के साथ मिला दिया गया। इसका मतलब यह हुआ कि अब “Tanti-Tantwa” समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा और उससे जुड़ी सभी सुविधाएँ मिलने लगीं।
पटना हाईकोर्ट ने इस अधिसूचना को सही माना और कहा कि यह केवल एक स्पष्टता (Clarification) है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह देखने की ज़रूरत समझी कि क्या राज्य सरकार को ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार है।
अनुच्छेद 341 की व्याख्या (Analysis of Article 341)
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 341 का गहन अध्ययन किया। अदालत ने कहा कि यह अनुच्छेद केवल जाति (Caste) तक सीमित नहीं है बल्कि किसी जाति के उप-समूह (Sub-group) या हिस्से (Part) पर भी लागू होता है। इसलिए यदि किसी उप-जाति या समूह को जोड़ना या हटाना है, तो यह भी केवल संसद ही कर सकती है।
अदालत ने साफ कहा कि बिहार सरकार को “Tanti-Tantwa” को “Pan/Sawasi” में मिलाने का कोई अधिकार नहीं था। राज्य सरकार का यह कहना कि अधिसूचना केवल “Clarificatory” (स्पष्ट करने वाली) थी, अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया।
संशोधनों का इतिहास (Legislative History of Amendments)
1950 में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (Constitution (Scheduled Castes) Order, 1950) के तहत पहली सूची प्रकाशित हुई। इसके बाद कई बार संशोधन (Amendment) हुए, लेकिन हर बार संसद ने कानून बनाकर ही संशोधन किया।
1967 में एक बिल (Bill) लाया गया था जिसमें “Tanti-Tantwa” को “Pan” के पर्याय (Synonym) के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव था, लेकिन वह बिल पारित नहीं हुआ। इस ऐतिहासिक तथ्य से यह साफ है कि संसद के बिना इस सूची में बदलाव करना असंभव है।
केंद्र सरकार का रुख (Stand of the Union Government)
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) ने हलफ़नामे में साफ कहा कि “Tanti-Tantwa” अनुसूचित जाति की सूची में शामिल नहीं है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (Registrar General of India) ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था। केंद्र सरकार ने बार-बार बिहार सरकार को कहा कि वह “Tanti-Tantwa” को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र न दे।
संवैधानिक अधिकार-क्षेत्र और संघवाद (Competence and Federalism)
मुख्य मुद्दा था संवैधानिक अधिकार-क्षेत्र (Constitutional Competence)। अदालत ने कहा कि संविधान में संघ (Union) और राज्यों (States) की शक्तियों की स्पष्ट सीमा खींची गई है। राज्य पिछड़े वर्गों (Backward Classes) पर कानून बना सकते हैं, लेकिन अनुसूचित जाति की सूची में बदलाव नहीं कर सकते।
यह व्यवस्था इसीलिए है ताकि पूरे भारत में अनुसूचित जातियों की परिभाषा एक समान रहे और राज्यों द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए मनमाने बदलाव न किए जा सकें।
पूर्ववर्ती निर्णय (Precedents Relied Upon)
सुप्रीम कोर्ट ने State of Maharashtra v. Keshao Vishwanath Sonone (2021) 13 SCC 336 का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि किसी जाति की एंट्री (Entry) को synonyms या sub-categories जोड़कर बढ़ाया नहीं जा सकता जब तक कि संसद ने उसे मंजूरी न दी हो।
इसी तरह E.V. Chinnaiah v. State of Andhra Pradesh (2005) 1 SCC 394 में भी कहा गया था कि राज्य सरकार अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण (Sub-classification) नहीं कर सकती। यह शक्ति केवल संसद के पास है।
लाभार्थियों पर प्रभाव (Consequences for Beneficiaries)
अदालत के सामने यह सवाल भी था कि उन लोगों का क्या होगा जिन्होंने 2015 की अधिसूचना के आधार पर अनुसूचित जाति के लाभ ले लिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिसूचना असंवैधानिक (Unconstitutional) है और उसे रद्द (Quash) किया जाता है।
लेकिन जिन व्यक्तियों ने पहले ही लाभ ले लिया है, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं होगी। उन्हें अत्यंत पिछड़े वर्ग (Extremely Backward Classes) की श्रेणी में वापस समायोजित किया जाएगा। साथ ही अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटें (Reserved Seats) मूल सूची वाली जातियों को लौटाई जाएँगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस सिद्धांत को दोहराता है कि अनुसूचित जातियों की सूची में बदलाव का अधिकार केवल संसद को है। राज्य सरकारें चाहे “Clarification” का नाम दें या “Synonymity” का, उन्हें किसी भी स्थिति में इस सूची से छेड़छाड़ का अधिकार नहीं है।
यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 341 की पवित्रता (Sanctity) को बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जातियों की परिभाषा पूरे देश में समान और स्थिर रहे। साथ ही, अदालत ने संतुलन भी बनाया लोगों को उनके लाभ से वंचित नहीं किया गया लेकिन असली अनुसूचित जातियों के अधिकार भी बहाल किए गए।
यह मामला संवैधानिक शासन (Constitutional Governance) और संघीय संतुलन (Federal Balance) दोनों की रक्षा करता है और यह याद दिलाता है कि आरक्षण व्यवस्था (Reservation System) से जुड़े किसी भी बदलाव में संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।