क्या धारा 498A की कार्यवाही को कानून के दुरुपयोग से बचाने के लिए रद्द किया जा सकता है?
धारा 498A आईपीसी (अब धारा 85 और 86, बीएनएस 2023) का दायरा और उद्देश्य (Scope and Purpose)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 498A, जिसे अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 85 और 86 में शामिल किया गया है, का उद्देश्य शादीशुदा महिलाओं को उनके पति या ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली क्रूरता (Cruelty) से बचाना है।
"क्रूरता" का अर्थ है ऐसा जानबूझकर किया गया आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करे, या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को गंभीर नुकसान पहुंचाए, या उसे या उसके रिश्तेदारों को अवैध रूप से संपत्ति या मूल्यवान वस्तु की मांग पूरी करने के लिए परेशान करे।
यह प्रावधान (Provision) असली और गंभीर घरेलू हिंसा (Domestic Violence) तथा दहेज उत्पीड़न (Dowry Harassment) के मामलों में बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार माना है कि इसका दुरुपयोग भी संभव है, खासकर तब जब इसे दुर्भावनापूर्ण (Mala fide) मंशा से लागू किया जाए।
धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत हाईकोर्ट की निहित शक्तियां (Inherent Powers)
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 हाईकोर्ट की उन निहित शक्तियों को सुरक्षित रखती है, जिनका प्रयोग न्याय सुनिश्चित करने और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए किया जाता है।
यह शक्तियां तीन परिस्थितियों में प्रयोग की जा सकती हैं
(i) संहिता के तहत किसी आदेश को प्रभावी बनाने के लिए,
(ii) न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए, और
(iii) न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए।
इन शक्तियों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर, सावधानी से और केवल दुर्लभ मामलों (Rarest of Rare Cases) में किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह शक्ति केवल एफआईआर (FIR) के चरण तक सीमित नहीं है, बल्कि चार्जशीट (Chargesheet) दाखिल होने के बाद भी, अगर कार्यवाही जारी रखना अन्यायपूर्ण हो, तो इसका प्रयोग किया जा सकता है।
कार्यवाही रद्द करने पर प्रमुख न्यायिक मिसालें (Key Judicial Precedents)
इस मामले में अदालत ने स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम भजन लाल (State of Haryana v. Bhajan Lal, 1992) का उल्लेख किया, जिसमें यह बताया गया कि किन परिस्थितियों में कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जैसे कि जब कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण हो या बदले की भावना से चलाई गई हो।
इसी तरह, आर.पी. कपूर बनाम स्टेट ऑफ पंजाब (R.P. Kapur v. State of Punjab, 1960) में तीन स्थितियां बताई गईं कानूनी रोक (Legal Bar), आरोपों से अपराध का न बनना, और पर्याप्त सबूत का अभाव।
प्रीति गुप्ता बनाम स्टेट ऑफ झारखंड (Preeti Gupta v. State of Jharkhand, 2010) में अदालत ने धारा 498A के दुरुपयोग पर चिंता जताई और कहा कि मामूली विवादों को बढ़ा-चढ़ाकर आपराधिक (Criminal) मामलों में बदलना उचित नहीं है। अदालत ने इस प्रावधान की पुनः समीक्षा (Review) के लिए विधायिका (Legislature) को सुझाव भी दिया।
अरेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ बिहार (Arnesh Kumar v. State of Bihar, 2014) में बिना पर्याप्त जांच के गिरफ्तारी (Arrest) करने पर रोक लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
गीता मेहरोत्रा बनाम स्टेट ऑफ यूपी (Geeta Mehrotra v. State of U.P., 2012) में अदालत ने कहा कि रिश्तेदारों के नाम केवल औपचारिक रूप से एफआईआर में डालने से, बिना किसी ठोस आरोप के, उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं चल सकती।
वैवाहिक विवादों में न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना (Preventing Abuse of Process)
अदालत ने देखा कि कई वैवाहिक विवादों में आरोप सामान्य, अस्पष्ट और व्यापक होते हैं, जिनमें किसी विशिष्ट आपराधिक कृत्य का उल्लेख नहीं होता। कई बार ऐसे मामले तलाक याचिका (Divorce Petition) या घरेलू हिंसा केस के जवाब (Counterblast) में दायर किए जाते हैं।
यदि जांच में पुलिस अन्य आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाती और मामला केवल एक पक्ष के खिलाफ चलता है, तो यह शिकायत की विश्वसनीयता (Credibility) पर सवाल खड़ा करता है। अदालत ने चेतावनी दी कि ऐसे मुकदमों को जारी रखना रिश्तों को और खराब कर देता है और बच्चों पर भी नकारात्मक असर डालता है।
दुर्भावनापूर्ण (Mala fide) आरोपों का आकलन करने का दृष्टिकोण (Court's Approach)
जब आरोपी धारा 482 CrPC के तहत इस आधार पर राहत मांगता है कि मामला बदनीयती से दर्ज हुआ है, तो अदालत को सतही आरोपों से आगे जाकर पूरी परिस्थितियों, शिकायत दर्ज करने के समय, और पृष्ठभूमि (Background) को देखना चाहिए। अदालत ने कहा कि कई बार पेशेवर मदद लेकर शिकायत इस तरह तैयार की जाती है कि पहली नजर में उसमें कोई कमी न दिखे, लेकिन संदर्भ (Context) देखने से असली मंशा सामने आती है।
विधायी सुझाव और भारतीय न्याय संहिता 2023 (Legislative Recommendations)
अदालत ने कहा कि प्रीति गुप्ता के फैसले में दिए सुझावों के बावजूद, बीएनएस 2023 में धारा 498A को लगभग उसी रूप में धारा 85 और 86 में शामिल किया गया है। केवल इतना फर्क है कि क्रूरता की परिभाषा (Definition of Cruelty) अब अलग धारा में दी गई है। अदालत ने विधायिका से फिर आग्रह किया कि इन प्रावधानों में व्यावहारिक बदलाव (Pragmatic Changes) लाए जाएं ताकि असली पीड़ितों की रक्षा हो और झूठे मामलों पर रोक लगे।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले में कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और न्याय का उपहास (Travesty of Justice) होगा। आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे, एफआईआर दर्ज करने में बिना कारण देरी हुई थी और मामला प्रतिशोध (Retaliation) के तौर पर दर्ज हुआ था। इसलिए, अदालत ने कार्यवाही रद्द करते हुए अपील स्वीकार की और आदेश दिया कि इस फैसले की प्रति विधि सचिव (Law Secretary) और गृह सचिव (Home Secretary) को भेजी जाए ताकि उचित विधायी कदम उठाए जा सकें।