क्या वैवाहिक विवादों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुलझाया जा सकता है?

Update: 2024-10-15 13:01 GMT

Santhini बनाम Vijaya Venketesh मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए वैवाहिक विवादों (Matrimonial Disputes) का प्रभावी समाधान किया जा सकता है।

इस फैसले में यह समझने की कोशिश की गई कि अगर अदालत किसी मामले को दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित (Transfer) करने के बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करे, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा। कोर्ट ने इस बात पर भी चर्चा की कि ऐसे मामलों में भावनात्मक (Emotional) पहलू को कैसे ध्यान में रखा जा सकता है।

कानून के महत्वपूर्ण प्रावधान (Key Statutory Provisions)

अदालत ने इस मामले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) और परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 (Family Courts Act, 1984) के प्रावधानों का विश्लेषण किया। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 19 (Section 19), जो क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र (Territorial Jurisdiction) से संबंधित है, पर विशेष रूप से चर्चा की गई।

परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 11 (Section 11) के अनुसार, यदि कोई भी पक्ष चाहे, तो अदालत को मुकदमे को इन-कैमरा (In-Camera) यानी निजी रूप से सुनना आवश्यक है, ताकि गोपनीयता (Confidentiality) बनी रहे। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता (Sensitivity) के साथ न्याय किया जाए।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की उपयुक्तता (Applicability of Video Conferencing)

फैसले में यह सवाल उठाया गया कि क्या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, मुकदमों को व्यक्तिगत रूप से सुनने का विकल्प बन सकती है। Krishna Veni Nagam बनाम Harish Nagam (2017) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि अगर पति-पत्नी अलग-अलग शहरों में रहते हैं, तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग एक व्यवहारिक समाधान हो सकता है।

लेकिन Santhini मामले में अदालत ने यह चिंता जताई कि सुलह (Reconciliation) की कोशिशें, जो ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण होती हैं, व्यक्तिगत बातचीत के बिना प्रभावी नहीं हो सकतीं।

महत्वपूर्ण न्यायिक मिसालें (Important Judicial Precedents)

अदालत ने Mona Aresh Goel बनाम Aresh Satya Goel (2000) और Deepa बनाम Anil Panicker (2000) मामलों का उल्लेख किया, जहां पत्नी की सुविधा के लिए मुकदमे का स्थानांतरण (Transfer) कर दिया गया था।

लेकिन Premlata Singh बनाम Rita Singh (2005) में अदालत ने यह आदेश दिया था कि पति को पत्नी के यात्रा और आवास (Travel and Lodging) का खर्च वहन करना चाहिए, जिससे मुकदमे का स्थानांतरण न करना पड़े। इस मिसाल से यह स्पष्ट होता है कि मुकदमे के स्थानांतरण के अलावा भी समाधान खोजे जा सकते हैं।

न्यायिक प्रक्रिया में मुख्य मुद्दे (Fundamental Issues in Judicial Process)

कोर्ट ने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा न्याय तक पहुंच (Access to Justice) पर केंद्रित किया। अदालत ने माना कि मुकदमे का बार-बार स्थानांतरण एक पक्ष के लिए बोझिल हो सकता है।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से यह समस्या कुछ हद तक हल हो सकती है, लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि वैवाहिक मामलों में भावनात्मक संपर्क (Emotional Engagement) और गोपनीयता (Confidentiality) बेहद जरूरी होते हैं, जो ऑनलाइन माध्यम से संभव नहीं हो पाते।

परिवार न्यायालयों (Family Courts) का उद्देश्य केवल विवादों का निपटारा करना नहीं है, बल्कि पति-पत्नी के बीच सुलह के प्रयास करना भी है। यह तभी प्रभावी हो सकता है जब दोनों पक्ष व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हों, ताकि जज और परामर्शदाता (Counselors) उनकी भावनाओं और हाव-भाव (Body Language) को समझ सकें।

तकनीक और न्यायिक जिम्मेदारी (Technology and Judicial Responsibility)

अदालत ने माना कि तकनीक (Technology) आज के समय में महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका उपयोग न्याय की गुणवत्ता (Quality of Justice) से समझौता करके नहीं होना चाहिए। परिवार न्यायालय केवल कानूनी विवादों को हल करने के लिए नहीं हैं, बल्कि वहां संवेदनशील मुद्दों (Sensitive Issues) को समझने और हल करने की भी जिम्मेदारी है।

हालांकि State of Maharashtra बनाम Dr. Praful B. Desai जैसे मामलों में गवाहों की गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ली गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवादों में यह तरीका उपयुक्त नहीं हो सकता। ऐसे मामलों में व्यक्तिगत बातचीत और गोपनीयता को बनाए रखना अधिक महत्वपूर्ण है।

Santhini बनाम Vijaya Venketesh मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वैवाहिक विवादों के समाधान में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है, लेकिन यह भावनात्मक संलग्नता (Emotional Engagement) और गोपनीयता (Confidentiality) से समझौता नहीं कर सकता।

यह फैसला दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का उपयोग तभी होना चाहिए, जब वह न्याय की गुणवत्ता और संवेदनशीलता को प्रभावित न करे। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि पारिवारिक विवादों में सुलह के प्रयास (Reconciliation Efforts) और व्यक्तिगत उपस्थिति (Physical Presence) का महत्व अधिक है, जिससे रिश्तों में सुधार की संभावनाएं बढ़ती हैं।

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