क्या सेवा में कार्यरत न्यायिक अधिकारी सीधे डिस्ट्रिक्ट जज की भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं? – विजय कुमार मिश्रा मामले का विश्लेषण

Update: 2024-10-28 13:20 GMT

सुप्रीम कोर्ट के फैसले विजय कुमार मिश्रा और अन्य बनाम पटना हाईकोर्ट और अन्य, Civil Appeal No. 7358 of 2016 में, संविधान के अनुच्छेद 233(2) (Article 233(2)) की व्याख्या स्पष्ट की गई। इस मामले का मुख्य प्रश्न यह था कि क्या कोई वर्तमान में कार्यरत न्यायिक अधिकारी बिना इस्तीफा दिए सीधे District Judge की भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकता है।

यह लेख इस फैसले में न्यायालय द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण संवैधानिक (Constitutional) प्रावधानों और मुद्दों का विश्लेषण करता है।

अनुच्छेद 233(2) के प्रावधानों (Provisions) की सीमा और उद्देश्य (Scope)

संविधान का अनुच्छेद 233 राज्य में District Judges की नियुक्ति (Appointment) से संबंधित है। इसका क्लॉज़ (Clause) (1) राज्यपाल को, हाईकोर्ट से परामर्श करके District Judges की नियुक्ति का अधिकार देता है।

क्लॉज़ (2) यह निर्धारित करता है कि केवल वही व्यक्ति जो पहले से Union या State की सेवा में नहीं हैं, उन्हें District Judge बनने के लिए सीधे नियुक्ति के योग्य माना जाएगा।

इस प्रावधान को सेवा में कार्यरत व्यक्तियों के सीधे नियुक्ति पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं करता कि ऐसे अधिकारी भर्ती प्रक्रिया (Recruitment Process) में भाग ले सकते हैं या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 233(2) केवल नियुक्ति पर रोक लगाता है, न कि चयन (Selection) प्रक्रिया में भागीदारी पर। इस मामले में याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उन्हें इस्तीफा दिए बिना साक्षात्कार (Interview) में शामिल होने दिया जाना चाहिए।

महत्वपूर्ण न्यायिक मिसालें (Judicial Precedents) जिनका इस फैसले में उल्लेख हुआ

इस फैसले में न्यायालय ने अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या को स्पष्ट करने के लिए दो महत्वपूर्ण मामलों पर विचार किया:

1. सत्य नारायण सिंह बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट (1985) 1 SCC 225

इस मामले में, उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा (Judicial Service) के कुछ अधिकारी उच्च न्यायिक सेवा (Higher Judicial Service) में सीधे नियुक्ति की मांग कर रहे थे। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि सेवा में कार्यरत अधिकारी बार (Bar) के माध्यम से सीधे नियुक्ति नहीं पा सकते। हालांकि, इस फैसले में यह प्रश्न स्पष्ट रूप से नहीं उठाया गया था कि भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने पर प्रतिबंध है या नहीं।

2. दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक (2013) 5 SCC 277

यह मामला इस बात से संबंधित था कि क्या सरकार के अधीन काम कर रहे Public Prosecutors को अभी भी Advocate माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि Public Prosecutors अपने अधिवक्ता (Advocate) का दर्जा नहीं खोते हैं और इस कारण से अनुच्छेद 233(2) के अंतर्गत नियुक्ति के लिए योग्य माने जाएंगे। यह फैसला सेवा में रहते हुए भी व्यावसायिक दर्जा बनाए रखने की बात को रेखांकित करता है, लेकिन यह सीधे भर्ती प्रक्रिया में भागीदारी पर लागू नहीं होता।

सेवा कानून (Service Law) में चयन (Selection) और नियुक्ति (Appointment) का अंतर

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सेवा कानून में चयन और नियुक्ति में महत्वपूर्ण अंतर होता है। चयन केवल प्रारंभिक प्रक्रिया है और इससे किसी को स्वतः नियुक्ति का अधिकार नहीं मिलता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 233(2) केवल नियुक्ति पर रोक लगाता है, न कि चयन प्रक्रिया में भाग लेने पर।

यह तर्क दिया गया कि चयन प्रक्रिया में भाग लेने वाले व्यक्ति के पास चयनित होने के बाद इस्तीफा देने का विकल्प होना चाहिए। हाईकोर्ट द्वारा भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने के लिए तत्काल इस्तीफे की शर्त अनुचित मानी गई, क्योंकि इससे उम्मीदवारों के भविष्य के करियर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

अनुच्छेद 14 और 16 के तहत मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ताओं को भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने से रोकना उनके अनुच्छेद 14 (Article 14) और अनुच्छेद 16 (Article 16) के अधिकारों का उल्लंघन है।

ये प्रावधान कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) और सार्वजनिक रोजगार (Public Employment) में समान अवसर की गारंटी देते हैं। केवल इस आधार पर भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने से रोकना कि उम्मीदवार सेवा में हैं, अनुचित भेदभाव (Unfair Discrimination) माना जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 233(2) का उद्देश्य ऐसे उम्मीदवारों को आवेदन करने से रोकना नहीं है जो सभी आवश्यक योग्यताएं पूरी करते हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि जिला न्यायाधीश (District Judge) पद पर व्यावसायिक अनुभव वाले अधिवक्ता (Advocate) ही नियुक्त हों।

इसलिए, साक्षात्कार से पहले इस्तीफे की शर्त न तो न्यायोचित है और न ही संवैधानिक रूप से उचित।

न्यायिक भर्ती (Judicial Recruitment) में संतुलन का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए यह निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता बिना इस्तीफा दिए भर्ती प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं। न्यायालय ने अनुच्छेद 233(2) की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या (Purposive Interpretation) को अपनाते हुए कहा कि यदि उम्मीदवार चयनित होते हैं, तो उन्हें नियुक्ति से पहले अपने पद से इस्तीफा देने का विकल्प दिया जाएगा।

यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि सेवा नियमों (Service Rules) की व्याख्या कठोरता से नहीं की जानी चाहिए ताकि उम्मीदवारों के अधिकारों और करियर की संभावनाओं को नुकसान न पहुंचे।

यह निर्णय उन योग्य उम्मीदवारों को उचित अवसर देने के महत्व को रेखांकित करता है, जो पद के सभी मानदंडों को पूरा करते हैं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अखंडता (Independence and Integrity of the Judiciary) को भी बनाए रखते हैं।

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