क्या Linear Projects के लिए Environmental Clearance की छूट नागरिकों की भागीदारी और पर्यावरण सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने Noble M. Paikada बनाम भारत संघ (2024) के फैसले में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या केंद्र सरकार कुछ विकास परियोजनाओं को Environmental Clearance (EC) यानी पर्यावरणीय स्वीकृति से छूट दे सकती है, वह भी बिना सार्वजनिक सूचना और पर्याप्त सुरक्षा उपायों (safeguards) के?
यह मामला एक सरकारी अधिसूचना (notification) पर आधारित था जिसमें Appendix IX के Item 6 के अंतर्गत "linear projects" जैसे सड़कों (roads), पाइपलाइनों (pipelines) आदि के लिए ordinary earth (साधारण मिट्टी) की खुदाई को EC से छूट दे दी गई थी। बाद में इसे 2023 में संशोधित (amended) भी किया गया। कोर्ट ने यह जांचा कि क्या यह छूट कानून के अनुरूप है या यह अनुच्छेद 14 और 21 जैसे मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है।
संवैधानिक और कानूनी ढांचा (Constitutional and Statutory Framework)
इस फैसले में Environment (Protection) Act, 1986 यानी EP Act की धारा 3 और Environment (Protection) Rules, 1986 के Rule 5 को प्रमुखता दी गई।
Section 3(1) केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा और सुधार के लिए आवश्यक कदम उठा सके।
Clause (v) of Section 3(2) यह स्पष्ट करता है कि सरकार विशेष क्षेत्रों में उद्योगों या गतिविधियों पर रोक या सीमित करने के लिए शर्तें निर्धारित कर सकती है।
Rule 5(3) कहता है कि सरकार किसी अधिसूचना को लागू करने से पहले पब्लिक नोटिस जारी करेगी और आम लोगों से आपत्तियाँ आमंत्रित करेगी। वहीं Rule 5(4) में विशेष परिस्थिति में "public interest" (सार्वजनिक हित) के आधार पर इस प्रक्रिया को छोड़ा जा सकता है, परंतु इसका उपयोग बहुत ही सीमित और उचित कारणों के साथ किया जाना चाहिए।
Appendix IX के तहत छूट और उसके कानूनी नतीजे (Exemption under Appendix IX and Its Legal Implications)
2006 की EIA Notification में अधिकांश परियोजनाओं के लिए Environmental Clearance अनिवार्य थी। परंतु 2020 की अधिसूचना के ज़रिए Appendix IX जोड़ा गया, जिसमें 13 गतिविधियों को EC से छूट दी गई, जिसमें से Item 6 "linear projects" के लिए साधारण मिट्टी की खुदाई को शामिल करता था।
2023 में इसका संशोधन करके यह जोड़ा गया कि ऐसी गतिविधियाँ केवल Standard Operating Procedure (SOP) और Environmental Safeguards के पालन के अधीन रहेंगी। लेकिन अदालत ने पाया कि न तो SOP स्पष्ट हैं और न ही safeguards को लागू करने की कोई व्यवस्था है।
Deepak Kumar केस का उल्लंघन (Violation of the Deepak Kumar Doctrine)
सुप्रीम कोर्ट ने Deepak Kumar बनाम हरियाणा राज्य (2012) 4 SCC 629 का उल्लेख करते हुए कहा कि 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्र के लिए भी minor minerals (छोटे खनिजों) के खनन से पहले Environmental Clearance आवश्यक है।
इस मामले में सरकार ने “ordinary earth” की खुदाई को छूट देते हुए Deepak Kumar में तय की गई अनिवार्य प्रकिया का उल्लंघन किया। कोर्ट ने कहा कि इससे EP Act का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
Rule 5(3) की प्रक्रिया का उल्लंघन (Failure to Follow the Procedure under Rule 5(3))
कोर्ट ने पाया कि 2020 की अधिसूचना बिना किसी पूर्व सूचना (public notice) के जारी की गई थी। न तो जनता से सुझाव/आपत्तियाँ मांगी गईं और न ही यह बताया गया कि सार्वजनिक हित में इस प्रक्रिया को क्यों छोड़ा गया।
जब Rule 5(3) का पालन नहीं होता है और Rule 5(4) को बिना उचित आधार के लागू किया जाता है, तो वह निर्णय प्रक्रिया कानूनी रूप से अवैध मानी जाती है। कोरोना लॉकडाउन के समय बिना किसी आपात ज़रूरत के यह अधिसूचना लाना जल्दबाज़ी और अनुचित था।
मनमानी और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन (Arbitrariness and Violation of Article 14)
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह अधिसूचना स्पष्ट नियमों के बिना blanket exemption (पूर्ण छूट) प्रदान करती है।
1. “Linear Projects” की कोई परिभाषा नहीं दी गई।
2. कितनी मात्रा में मिट्टी निकाली जा सकती है, इसका कोई ज़िक्र नहीं।
3. खुदाई की प्रक्रिया कैसी हो, इस पर कोई नियम नहीं।
4. कोई निगरानी या लागू करने वाली संस्था तय नहीं की गई।
इस प्रकार की अस्पष्ट और व्यापक छूट संविधान के Article 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है और यह कानून के खिलाफ है।
NGT के निर्देशों का उल्लंघन (Failure to Comply with NGT's Directives)
इससे पहले NGT ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह इस छूट को पुनः विचार कर सुरक्षित प्रक्रिया और सीमा निर्धारित करे। परंतु सरकार ने तीन महीने के भीतर कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।
बाद में दिए गए SOP और Office Memorandum (कार्यालय ज्ञापन) इस विषय में अस्पष्ट थे और उनमें कोई ठोस नियामक ढांचा नहीं था। कोर्ट ने पाया कि NGT के आदेशों का भी पालन नहीं हुआ।
अनुच्छेद 21 और नागरिकों की भूमिका (Article 21 and the Role of Citizens)
कोर्ट ने जोर दिया कि Article 21 नागरिकों को एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण में जीने का अधिकार देता है।
जब सरकार बिना जनता की भागीदारी के ऐसे निर्णय लेती है, तो यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनदेखी भी है। Rule 5(3) का उद्देश्य नागरिकों को अपनी बात कहने का अवसर देना है, जो इस अधिसूचना से छिन गया।
कोर्ट ने पाया कि Item 6 पूरी तरह से कानून और संविधान के विरुद्ध है। इसमें न तो कोई सुरक्षा उपाय हैं, न पारदर्शिता और न ही किसी विशेषज्ञ संस्था की निगरानी।
अतः कोर्ट ने 2020 और 2023 की अधिसूचना में शामिल Appendix IX के Item 6 को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त (struck down) कर दिया।
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि विकास परियोजनाओं में पर्यावरणीय संतुलन, सार्वजनिक भागीदारी और कानूनी प्रक्रिया को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।