घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की आधारभूत धारा

Update: 2025-10-07 06:28 GMT

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के शब्द जिसके अन्तर्गत अधिनियम के अधीन आदेश या अनुतोष पाने के लिए प्रक्रिया दी गई है, प्रदर्शित करती है कि ऐसी कार्यवाही के लिए समय सीमा निश्चित नहीं है एवं यह प्रदर्शित करना अपेक्षित होता है कि अधिनियम के अधीन आवेदक व्यक्ति व्यक्ति है। अधिनियम की धारा 12 मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दाखिल करने हेतु प्रावधान करती है एवं इसकी उपधारा (1) प्रावधानित करती है कि कोई व्यक्ति व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यक्ति व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन एक या अधिक अनुतोष प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा।

धारा 12 की उपधारा (1) प्रावधानित करती है कि व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन एक या अधिक अनुतोष प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा। धारा 12 का परन्तुक प्रावधानित करता है कि ऐसे आवेदन पर कोई आदेश पारित करने के पहले किसी संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता से उसके द्वारा प्राप्त किसी घरेलू हिंसा की रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट विचार करेगा।

इस धारा के पीछे अन्तर्निहित और मूल सिद्धान्त पत्नी द्वारा सहन की गयी वित्तीय स्थिति और मानसिक पीड़ा के सुधार के लिए है, जब अपने वैवाहिक गृह को छोड़ने के लिए विवश की जाती है।

उपधारा (1) अधिनियम की धारा 12 मजिस्ट्रेट को आवेदन से सम्बन्धित होती है। धारा 12 की उपधारा (1) प्रावधानित करती है कि व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन एक या अधिक अनुतोष प्राप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा।

व्यथित व्यक्ति या संरक्षण अधिकारी या व्यथित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन इस अधिनियम के अधीन कोई अनुतोष प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है।

अधिनियम की धारा 12 को उपधारा (4) प्रावधानित करती है कि मजिस्ट्रेट पहली सुनवाई को तिथि नियत करेगा, जो कोर्ट द्वारा आवेदन की प्राप्ति की तिथि से सामान्यतः तीन दिन से अधिक नहीं होगी।

अधिनियम की धारा 12 को उपधारा (5) यह प्रावधान करती है कि मजिस्ट्रेट, उपधारा (1) के अधीन दिये गये प्रत्येक आवेदन को उसकी सुनवाई के प्रथम तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर, उसका निपटारा करने का प्रयास करेगा।

धारा 12, जो अधिनियम के अधीन आदेश या अनुतोष प्राप्त करने के लिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन करने की अपेक्षा करती है, इस प्रभाव के परन्तुक को अन्तर्विष्ट करती है कि ऐसे आवेदन पर कोई आदेश पारित करने से पहले मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता से प्राप्त घरेलू घटना रिपोर्ट को विचारित करेगा।

अधिनियम में अन्तर्विष्ट उद्देश्यों एवं कारणों के कथन के अलावा अधिनियम में अन्तविष्ट विभिन्न प्रावधान भी यह स्पष्ट करते हैं कि अधिनियम के अधीन प्रबलता से व्युत्पन्न अधिकार एवं कृर्त्तव्य सिविल प्रकृति के अधिकार होते हैं। धारा 31 एवं 33 को छोड़कर जो क्रमशः संरक्षण आदेश की अवहेलना एवं संरक्षण अधिकारी के अपने कर्तव्य के निर्वहन न करने के लिए दण्ड का प्रावधान करती है, इसके अलावा अधिनियम में कोई दाण्डिक प्रावधान नहीं हैं।

जॉनसन फरनैनडिस बनाम मिसेज मारिया फरनैनडिस, 2011 के वाद में कहा गया है कि घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण अधिनियम, 2005 महिलाओं की सुरक्षा के लिए अधिनियमित किया गया है न कि पुरुष को। आवेदक संख्या 2 द्वारा आवेदक संख्या 1 की ओर से नहीं बल्कि दोनों आवेदकों की ओर से द्वारा दाखिल किया गया था। यदि यह उसके द्वारा, व्यथित व्यक्ति होते हुए, आवेदक संख्या 1 की ओर से दाखिल किया गया होता तो यह दूसरी बात होती आवेदक संख्या 2 निश्चित रूप से उक्त अधिनियम के अधीन किसी अनुतोष को पाने का हकदार नहीं था।

इस प्रकार, किन्हीं भी न्यायालयों को आवेदक संख्या 2 को आवेदक संख्या 1 के भाई को अनुतोष प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं था सत्याभासी अभिवास पर कि आवेदक संख्या 2, आवेदक संख्या 1 की सहायता कर रहा था मजिस्ट्रेट द्वारा कारण बताया गया एवं अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा इसे न्यायोचित किया गया था। आवेदक संख्या 2, इस प्रकार, उक्त अधिनियम के अधीन किसी प्रकार की सुरक्षा का हकदार नहीं था।

धारा 12 के अधीन प्रदत्त अनुतोषों का वर्गीकरण अधिनियम की धारा 12 के अधीन आवेदन पर प्रदत्त अनुतोष को विस्तारपूर्वक निम्नवत् वर्गीकृत किया जा सकता है :

धारा 18 के अधीन संरक्षण आदेश जो प्रत्यर्थों को घरेलू हिंसा के किसी कृत्य से निवारित करें।

धारा 19 के अधीन निवास आदेश।

धारा 20 के अधीन धनीय अनुतोष जिसमें भरण-पोषण उपार्जनों की हानि, चिकित्सीय व्यय एवं व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि, सम्मिलित है।

धारा 21 के अधीन अभिरक्षा आदेश जो व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान या सन्तानों की अस्थायी अभिरक्षा या धारा 21 के अधीन व्यक्ति व्यक्ति के भेट के अधिकारों को व्यवहृत करती है; और धारा 22 के अधीन प्रतिकर आदेश।

गंगाधर प्रधान बनाम रश्मिवाला प्रधान, 2012 के वाद में कहा गया कि 2005 के अधिनियम की धारा 12 के अधीन दाखिल याचिका में दावाकृत अनुतोष सिविल प्रकृति के होते हैं। धारा 12 के अधीन दाखिल याचिका की तिथि तक, याची (यहां विपक्षी) को 2005 के अधिनियम की धारा 12 के अधीन उसकी याचिका में वांछित कोई अनुतोष नहीं प्रदान किया गया था।

इस प्रकार यह याची के अधिकारों की वंचना का अनवरत कृत्य है। स्वीकृत रूप से, वर्तमान याची द्वारा संयुक्त परिवार की सम्पत्तियों में से उसे हिस्सा नहीं दिया गया था। इस प्रकार, यह जारी रहने वाला वाद हेतुक है जिसके लिए 2005 के अधिनियम की धारा 12 के अधीन पोषणीय अनुतोष का दावा करते हुए याचिका दाखिल की गई थी एवं 2005 के अधिनियम के प्रावधान प्रस्तुत मामले में पूर्णतया आच्छादित होते हैं।

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