आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट में आर्बिट्रेटर का अपॉइंटमेंट

Update: 2024-10-30 09:24 GMT

आर्बिट्रेशन एक्ट के अंतर्गत आर्बिट्रेटर की नियुक्ति होती है जो किसी भी विवाद में आर्बिटेशन करता है। आर्बिट्रेटर की नियुक्ति आर्बिटेशन करार के प्रावधानों के अनुसार की जाती है। आर्बिट्रेटर की नियुक्ति तीन प्रकार से की जा सकती है- पक्षकारों द्वारा, निर्दिष्ट प्राधिकारी द्वारा, आर्बिटेशन अधिकरण द्वारा-

जहाँ आर्बिट्रेटर या आर्बिट्रेटरों को नियुक्ति पक्षकारों द्वारा की गई हो, वहां वह तत्काल को मध्यस्य निर्देशित कर आर्बिटेशन कार्यवाही प्रारम्भ कर सकते हैं। आर्बिट्रेटर किसी भी राष्ट्रीयता का व्यक्ति को सकता है परन्तु अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक संव्यवहार से सम्बन्धित विवाद की दशा में दोनों पक्षकारों को राष्ट्रीयता से भिन्न राष्ट्रीयता वाले व्यक्ति को आर्बिट्रेटर के रूप में नियुक्त किया जाना आवश्यक है।

अतः एक ऐसे अन्तर्राष्ट्रीय संव्यवहार संबंधी विवाद के मामलों में किसी भारतीय व्यक्ति को आर्बिट्रेटर नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। जहाँ विवाद में एक पक्षकार भारतीय है।

यदि दो पक्षकारों में से किसी एक द्वारा आर्बिट्रेटर नियुक्त नहीं किया जाता या पक्षकारों द्वारा नियुक्त किये गये दो आर्बिट्रेटर 30 दिनों की अवधि में तीसरे आर्बिट्रेटर की नियुक्ति करने में विफल रहते हैं या सहमत नहीं होते, तो ऐसी स्थिति में पक्षकार के निवेदन पर मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामोदिष्ट कोई व्यक्ति या संस्था आर्बिट्रेटर अथवा तीसरे आर्बिट्रेटर यथास्थिति की नियुक्ति करेंगे। इस हेतु पक्षकार संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को आवेदन प्रस्तुत करेगा।

मुख्य न्यायाधीश या उसको नामोदिष्ट व्यक्ति या संस्था इस प्रकार आर्बिट्रेटर की नियुक्ति तभी करेगा जब उसे इस आशय का आवेदन पत्र प्राप्त हो अन्यथा ऐसी नियुक्ति अविधिमान्य होगी।

आर्बिट्रेटर की नियुक्ति हेतु अधिनियम में कोई अर्हता निर्धारित नहीं की गई है और न इसके लिये कोई मार्गदर्शक सिद्धान्त ही प्रतिपादित किये गये हैं। न्यायालय द्वारा आर्बिट्रेटर की नियुक्ति कर दी जाने के बाद उसकी भूमिका समाप्त हो जाती है और उसे आर्बिट्रेटर को निर्देशित करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

वेलिंग्टन एसोसिएट लि बनाम कृति मेहता, एआईआर 2000 सुप्रीम कोर्ट 1379 के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि आर्बिटेशन और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के अधीन भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा आर्बिट्रेटर की नियुक्ति संबंधी कार्यवाही में इस बात पर विचार किया जा सकता है कि पक्षकारों के मध्य आर्बिटेशन करार अस्तित्व में है अथवा नहीं। अतः यह तर्क कि पक्षकारों के मध्य आर्बिटेशन करार के अस्तित्व के बारे में विचार करने की अधिकारिता अधिनियम के अनुसार केवल आर्बिट्रेटर या आर्बिट्रेटरों को है तथा यह भारत के मुख्य न्यायाधीश की अधिकारिता से अपवर्जित है, सही नहीं है।

पक्षकार आपस में सहमति देकर किसी ऐसे प्राधिकारी को निर्दिष्ट कर सकते हैं जो कि बाद में आर्बिट्रेटर आर्बिट्रेटरों की नियुक्ति कर सकता है।

भारत संघ बनाम डी एन रावरी एण्ड कम्पनी, (1997) 1 एससी रिपोर्ट 183 के प्रकरण में आर्बिटेशन करार में सचिव खाद्य एवं कृषि विभाग को आर्बिट्रेटर नियुक्त किये जाने का प्रावधान रखा गया था। परन्तु ऐसी नियुक्ति की जाने के पूर्व ही खाद्य एवं कृषि विभाग को दो विभागों अर्थात् खाद्य विभाग तथा कृषि विभाग में विभाजित कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने विनिश्चित किया कि उस परिस्थिति में सचिव खाद्य विभाग नामित कर सकता था, क्योंकि विवाद खाद्य विभाग से संबंधित था।

कार्यपालन यंत्री बनाम गंगाराम (1992) 2 ए एल आर 203 के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि चीफ इन्जीनियर, लोक निर्माण विभाग द्वारा राज्य के सुपरिटेंडेंट इन्जीनियर को मध्यस्य के रूप में नियुक्त किया जाना पक्षकारों के मध्य हुये आर्बिटेशन करार के अनुसार होने के कारण वैध था तथा इसे केवल इस आशंका के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि आर्बिट्रेटर विभाग का ही यंत्री होने के कारण वह दुर्भावना और द्वेषपूर्ण कार्य करेगा। जब तक कि साक्ष्य के आधार पर ऐसा स्पष्ट रूप से साबित नहीं कर दिया जाता।

एक अन्य मामले में कहा गया है कि जहाँ पर सब जज ने स्वयं आर्बिट्रेटर को नियुक्ति कर दी परन्तु रिकार्ड में यह कही नहीं पाया गया कि ने सह न्यायाधीश को नियुक्ति करने के लिए प्राधिकृत किया था अतः यह नियुक्ति सर्वथा अविधिक (Illegal) पायी गई। जहाँ आर्बिट्रेटर का पद, उसकी मृत्यु या उपरोक्त सहमति वापस लेने के कारण रिक्त हो जाता है तब अधिनियम की धारा 14 के प्रावधान लागू होंगे।

आर्बिटेशन अधिकरण द्वारा आर्बिट्रेटर की नियुक्ति

नए आर्बिटेशन अधिनियम 2019 के अन्तर्गत संस्थागत आर्बिटेशन को वैधानिक मान्यता प्राप्त है। अतः अब स्थायी आर्बिटेशन संस्थाओं की सहायता से आर्बिट्रेटरों को नियुक्ति कराई जा सकती है। पक्षकारों के अनुरोध पर यह संस्था विशेषज्ञों की पेनल (नामावली) में विवाद की विषय वस्तु के क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञ व्यक्तियों में से आर्बिट्रेटर नियुक्त किये जाने हेतु पक्षकारों को परामर्श देते हैं। यह स्थायी आर्बिटेशन संस्थायें केवल आर्बिटेशन कार्यवाही का संचालन नहीं करती अपितु इस हेतु प्रशासनिक सहायता उपलब्ध कराती हैं। भारतीय आर्बिटेशन परिषद (इंडियन कौंसिल ऑफ आबॉट्रेशन) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्थायी संस्था दिल्ली में स्थित है जो पक्षकारों को आर्बिटेशन हेतु प्रबंधकीय व्यवस्था सुनिश्चित कराती है।

जहां आर्बिट्रेटर को नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के मुख्य न्यायालय या नामित व्यक्ति या संस्था द्वारा की जाती है वहाँ उपरोक्त व्यक्ति आर्बिट्रेटर की नियुक्ति करते समय आर्बिटेशन करार में उल्लिखित आर्बिट्रेटर की योग्यताओं को ध्यान में रखेगा। अन्य उचित तथा आवश्यक प्रक्रिया का पालन करेंगे।

यह प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि आर्बिट्रेटर की नियुक्ति में आर्बिट्रेटर करार को पूर्ण रूप में महत्व दिया जाना चाहिये। यदि आर्बिटेशन करार दो भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के नागरिकों के बीच है तब सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या नामित व्यक्ति या संस्था उस व्यक्ति को मध्यस्य नियुक्त करेगा, जिसकी नागरिकता पक्षकारों की नागरिकता से भिन्न हो। जहाँ एक से अधिक हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष या एक से अधिक नामित व्यक्तियों के समक्ष आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिये आवेदन किया गया है तब जिस न्यायाधीश के समक्ष प्रथम अनुरोध किया गया है वही न्यायाधीश आर्बिट्रेटर की नियुक्ति सम्बन्धी आदेश पारित करेगा।

एएस प्राइवेट लिमिटेड बनाम पी के होल्डिंग लिमिटेड एआईआर 1999 एससी 3246 के मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि जहाँ धारा 11(6) के अन्तर्गत हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की गई है वहाँ ऐसी नियुक्ति के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत की जा सकती है।

कॉकण रेलवे कारपोरेशन लिमिटेड बनाम मेहुल कंपनी लिमिटेड (2000) 7 एसएससी 201 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जहाँ धारा 11 (6) के अन्तर्गत आदेश पारित किया हो वहाँ वह आदेश प्रशासनिक होगा तथा उसके विरुद्ध अनुच्छेद 136 के तहत आवेदन नहीं किया जा सकता है। मामले में ऐसा आदेश वाणिज्यिक विवादों के मामलों को शीघ्रतर निबटाने के लिये कहा गया था।

जहाँ आर्बिटेशन की विषय वस्तु अन्तर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक आर्बिटेशन से सम्बन्धित है, तब आर्बिट्रेटर की नियुक्ति का अनुरोध पक्षकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष किया जाना चाहिये। यदि आर्बिटेशन करार की विषय वस्तु देशी है तब आवेदन हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष किया जाना चाहिए।

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