Representation of the People Act, 1951 भारत की चुनावी प्रक्रिया की रीढ़ है। यह अधिनियम संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों की आयोजना, संचालन और विवादों के निपटारे से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है। इस अधिनियम की धारा 21 चुनावी मशीनरी के प्रशासनिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो रिटर्निंग ऑफिसर (Returning Officer) और सहायक रिटर्निंग ऑफिसर (Assistant Returning Officer) की नियुक्ति से संबंधित है। यह धारा चुनाव आयोग को राज्य सरकारों के साथ परामर्श करके इन अधिकारियों की नियुक्ति करने का अधिकार देती है, जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और सुचारु संचालन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में स्वतंत्र चुनावी प्रणाली की स्थापना संविधान की धारा 324 से 329 तक के प्रावधानों से होती है, जो चुनाव आयोग को चुनावों के संचालन का अधिकार देते हैं। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 को 17 जुलाई 1951 को अधिनियमित किया गया था, और यह 1950 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (जो मुख्य रूप से मतदाता सूची से संबंधित है) का पूरक है। धारा 21 चुनावी प्रशासन की बुनियाद रखती है, क्योंकि रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव क्षेत्र का मुख्य प्रशासक होता है।
यह धारा सुनिश्चित करती है कि चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे। रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका नामांकन पत्रों की प्राप्ति, जांच, मतदान की व्यवस्था, मतगणना और परिणाम घोषणा तक फैली हुई है। यह प्रावधान चुनाव आयोग को लचीलापन प्रदान करता है, जैसे कि एक ही व्यक्ति को कई क्षेत्रों के लिए नियुक्त करना, जो संसाधनों के कुशल उपयोग में मदद करता है।
रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव प्रक्रिया का मुख्य स्तंभ है। वह धारा 30 के तहत नामांकन प्रक्रिया शुरू करता है, धारा 36 के तहत नामांकन पत्रों की जांच करता है। सहायक रिटर्निंग ऑफिसर मुख्य रूप से सहायक भूमिका में होते हैं, लेकिन वे नामांकन जांच जैसे संवेदनशील कार्य नहीं कर सकते, जब तक कि मुख्य अधिकारी अनुपस्थित न हो। यह विभाजन शक्तियों के दुरुपयोग को रोकता है।
व्यावहारिक रूप में, धारा 21 का महत्व बड़े पैमाने के चुनावों में दिखता है। जैसे 2019 के लोकसभा चुनावों में हजारों रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किए गए थे, जो राज्य सरकारों से परामर्श के बाद हुए। यदि नियुक्ति में कोई त्रुटि होती है, जैसे कि अधिकारी का सरकारी पद पर न होना, तो यह चुनाव की वैधता को चुनौती दे सकती है। हालांकि, अधिनियम में संशोधन, जैसे 1996 का संशोधन, ने सहायक अधिकारियों की भूमिका को मजबूत किया है।
धारा 21 चुनावी लोकतंत्र की निष्पक्षता सुनिश्चित करती है, क्योंकि रिटर्निंग ऑफिसर चुनाव आयोग के अधीन कार्य करता है, न कि स्थानीय सरकार के। यह केंद्र और राज्य के बीच संतुलन बनाए रखता है। यदि कोई विवाद होता है, तो धारा 100 के तहत चुनाव याचिका दायर की जा सकती है, जहां रिटर्निंग ऑफिसर के कार्यों की समीक्षा होती है।
एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा नामांकन पत्र की अस्वीकृति पर हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया एक समग्र प्रक्रिया है, और धारा 21 के तहत नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर के निर्णयों को चुनाव याचिका के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है, न कि आर्टिकल 226 के तहत। न्यायमूर्ति पतंजलि शास्त्री की बेंच ने व्याख्या की कि धारा 21 चुनाव आयोग को अधिकार देती है कि वह राज्य सरकार से परामर्श करके अधिकारी नियुक्त करे, और उनके कार्यों में न्यायिक हस्तक्षेप चुनाव को बाधित कर सकता है। यह निर्णय चुनावी प्रक्रिया की निरंतरता को सुरक्षित करता है और धारा 21 की प्रशासनिक शक्ति को मजबूत करता है।
एक अन्य महत्वपूर्ण मामला है मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) है यहां, सुप्रीम कोर्ट ने रिटर्निंग ऑफिसर के आदेशों पर विचार किया, जहां मतगणना रद्द कर दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि धारा 21 के तहत नियुक्त अधिकारी चुनाव आयोग के अधीन कार्य करते हैं, और उनके निर्णयों में मनमानी नहीं होनी चाहिए। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर की बेंच ने व्याख्या की कि रिटर्निंग ऑफिसर की शक्तियां धारा 58 और 64 से जुड़ी हैं, लेकिन धारा 21 नियुक्ति की बुनियाद है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति में पारदर्शिता बरती जाए, और यदि कोई त्रुटि हो, तो यह चुनाव की वैधता को प्रभावित कर सकती है। यह निर्णय धारा 21 को लोकतांत्रिक मूल्यों से जोड़ता है, जहां अधिकारी की निष्पक्षता सर्वोपरि है।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स में कहा गया कि मुख्य रूप से धारा 33 पर, कोर्ट ने रिटर्निंग ऑफिसर की भूमिका का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि धारा 21 के तहत नियुक्त अधिकारी उम्मीदवारों की जानकारी की जांच करते हैं, और मतदाताओं का अधिकार जानकारी प्राप्त करने का है। यह धारा 21 की व्याख्या को विस्तारित करता है, जहां अधिकारी न केवल प्रशासनिक बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी वहन करते हैं।
एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया, कहते हुए कि धारा 21 राज्य सरकार से परामर्श की आवश्यकता रखती है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं कि हर नियुक्ति को अदालत में चुनौती दी जाए। कोर्ट ने जोर दिया कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता संरक्षित रहे।
कोर्ट ने बार-बार कहा है कि रिटर्निंग ऑफिसर के कार्यों में हस्तक्षेप न्यूनतम होना चाहिए, ताकि चुनाव समयबद्ध रहें। हालांकि, यदि नियुक्ति में कोई गंभीर त्रुटि हो, जैसे कि अधिकारी का पक्षपाती होना, तो यह धारा 100 के तहत अमान्य करार दिया जा सकता है।
यह धारा चुनाव आयोग को रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त करने का अधिकार देता है, जो निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, जैसे पोनुस्वामी और गिल मामलों में, इस धारा की व्याख्या को चुनावी लोकतंत्र के सिद्धांतों से जोड़ते हैं।