वर्ष 1986 में बनाया गया एक्ट समय के साथ पुराना हो चला था और बदलते समय के कारण उसमें जटिलता भी आयी थी इसलिए नया एक्ट बनाया जाना बेहद ज़रूरी था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक विधेयक, अर्थात् उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018, तारीख 5 जनवरी, 2018 को लोक सभा में पुरःस्थापित किया गया और उस सदन द्वारा 20 दिसम्बर, 2018 से पारित किया गया। विधेयक के राज्य सभा में विचार के लिए लंबित रहते हुए, 16वीं लोक सभा का विघटन हो गया और विधेयक व्यपगत हो गया। अतः, वर्तमान विधेयक, अर्थात् उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019 पुरःस्थापित किया गया।
प्रस्तावित विधेयक उपभोक्ताओं के अधिकारों का संवर्धन करने, संरक्षित करने और प्रवृत्त करने के लिए, अनुचित व्यापार व्यवहारों से उद्भूत उपभोक्ताओं को नुकसान से बचाने के लिए, जब आवश्यक हो तब हस्तक्षेप करने और वर्ग कार्रवाई प्रारंभ करने, जिसके अंतर्गत माल वापस मंगवाना प्रतिदाय और माल को वापसी प्रवर्तित करना है, के लिए किसी कार्यपालक अभिकरण, जिसे केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के नाम से जाना जाएगा, की स्थापना का उपबंध करता है, इससे विद्यमान विनियामक व्यवस्था में संस्थागत कमी की पूर्ति होगी।
वर्तमानतः अनुचित व्यापार व्यवहारों के निवारण या उसके विरुद्ध कार्रवाई करने का कार्य किसी प्राधिकारी में निहित नहीं है। इसका उपबंध ऐसी रीति में किया गया है कि सीसीपीए के लिए अभिकल्पित भूमिका, सेक्टर विनियामकों और द्विगुणन की भूमिकों की पूर्ति करता है, तथा अतिव्याप्ति और संभावित द्वंद्व का परिवर्जन करता है। विधेयक में त्रुटियुक्त उत्पाद के कारण या सेवा में कमी द्वारा उपभोक्ताओं को कारित नुकसान के कारण उत्पाद दायित्व की कार्रवाई के लिए उपबंधों की परिकल्पना भी है। इसके अतिरिक्त अनुकल्पी विवाद समाधान प्रक्रिया विधि के रूप में मध्यकता' का उपबंध भी दिया गया है।
विधेयक में अन्य बातों के साथ-साथ, उपभोक्ता शिकायत प्रतितोष अभिकरणों की धनीय अधिकारिता को बढ़ाने, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों में सदस्यों की न्यूनतम संख्या में वृद्धि करने और उपभोक्ताओं के लिए इलेक्ट्रानिक रूप से परिवाद फाइल करने, आदि से संबंधित उपभोक्ता विवाद प्रतितोष अभिकरणों की उपभोक्ता विवाद न्यायनिर्णयन प्रक्रिया के सरलीकरण के उद्देश्य से विभिन्न उपबंधों की व्यवस्था है।
भारत के ज्यादातर लोग गरीब और अशिक्षित है। वे अपने कठिन परिश्रम से कमाए हुए पैसों का भी सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाते हैं। बाजार में उन्हें जो कुछ भी मिलता है उसे वे आंख मूंदकर खरीद लेते हैं तथा वे अपने पैसों की सही कीमत नहीं वसूल कर पाते। चतुर व्यवसायी भोले भाले अशिक्षित क्रेताओं को हीन गुणवत्ता वाली वस्तुएं देकर उन्हें ठग लेता है।
विक्रेता अत्यधि मुनाफा प्राप्त करने की होड़ में घटिया किस्म की तथा अपमिश्रित वस्तुएं क्रेता को देता है। इससे क्रेता पर दोहरा असर पड़ता है एक तो वह कठिन परिश्रम से कमाए गए धन का सदुपयोग नही कर पाता है तो दूसरी तरफ घटिया तथा अपमिश्रित वस्तुओं को खरीद कर अपने तथा अपने परिजनों को बीमारी के मुंह में ढकेल देता है ऐसे बीमार क्रेता कहां जाएं। ऐसे शोषित उपभोक्ताओं को इस दोहरी मार से बचाने के लिए ही 24 दिसम्बर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 पारित किया गया।
देश का प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता है। उसे पहले प्रभुता सम्पन्न व्यक्ति माना जाता था, परनु कालान्तर में निर्माताओं, उत्पादकों तथा विक्रेताओं में स्वार्थ की प्रवृत्ति बढ़ने लगी तब से उपभोक्ताओं के हितों की उपेक्षा करने लगे। माल की गुणवत्ता पर उन्होंने ध्यान देना छोड़ दिया। बाजार में क्रेता सावधान नियम लागू कर दिया गया। जिसके द्वारा माल की खरीददारी करते समय क्रेता को सावधानी बरतनी पड़ती है। विनिर्माता एवं विक्रेता द्वारा यह कहा जाता है कि क्रेता को खरीददारी करते समय आंखे खुली रखनी चाहिए।