भारतीय संविदा अधिनियम एजेंसी पर एक पूरे अध्याय में उल्लेख करता है। अधिनियम की धारा 182 एजेंसी की परिभाषा प्रस्तुत करती है।
धारा 182 के अनुसार अभिकर्ता वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करने के लिए नियोजित होता है। वह दूसरे व्यक्ति से व्यवहारों में किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित होता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अभिकर्ता वह व्यक्ति है जो किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करने के लिए व्यवसायों में किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित है।
अंग्रेजी विधि के सामान्य सिद्धांत के अनुसार अभिकर्ता, मालिक और तृतीय पक्षकार के बीच की कड़ी होता है। वह दोनों के मध्य संपादित होने वाले विवादों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह दोनों के मध्य अर्थात स्वामी और तीसरे पक्षकार के मध्य एक विधिक संबंध स्थापित करता है किंतु यह ध्यान देने की बात है कि उसके कृत्यों के प्रति स्वामी दायीं होता है अर्थात अभिकर्ता के कृत्यों के प्रति स्वामी दायीं है।
इस अध्ययन से कुछ तथ्य सामने आते हैं जो किसी व्यक्ति के अभिकर्ता होने की ओर संकेत इंगित करते हैं-
किसी अन्य व्यक्ति की ओर से कोई कार्य करने हेतु अधिकृत होता है।
स्वामी और तीसरे पक्षकार के मध्य एक कड़ी होता है।
स्वामी और तीसरे पक्षकार के मध्य विधिक संबंध स्थापित करता है।
वह एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है।
उसकी कृत्यों के प्रति स्वामी उत्तरदायीं होता है।
किसी वस्तु की बाबत अभिकर्ता का कब्जा स्वयं स्वामी का कब्जा माना जाता है।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मोहम्मद निजाम एआईआर 1980 एससी 431 के प्रकरण में कहा गया है कि डाकघर प्रेषक द्वारा भेजे जाने वाले पोस्ट संबंधी वस्तुओं का अभिकर्ता नहीं है।
अभिकर्ता मालिक की ओर से कोई कार्य करने या पर व्यक्तियों से व्यवहार में मालिक की ओर से उसका प्रतिनिधित्व करने हेतु नियोजित किया जाता है। अभिकर्ता मालिक द्वारा बताए गए निर्देशों के अनुसार ही कार्य करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रकरण में यह कहा है कि अभिलेखों पर रजवाड़ों के भूतपूर्व शासक की ओर से पत्रों पर हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति अभिकर्ता नहीं है।
जो अभिकर्ता द्वारा अपने मालिक की ओर से संपादित किया जाता है मालिक उसके प्रति दायीं होता है और उसके प्राधिकार क्षेत्र में होता है और किसी प्रभावी संविदा के अभाव में कोई भी अभिकर्ता अपने मालिक की ओर से अपने द्वारा की गई सुविधाओं का प्रवर्तन व्यक्तिगत रूप में नहीं कर सकता और न ही विस्तृत रूप में उनसे आबद्ध होता है।
कोई व्यक्ति जो दूसरे व्यक्ति के द्वारा किसी धन का विनियोग करने हेतु नियोजित किया गया है वह धारा 182 के अर्थ के अंतर्गत एक अभिकर्ता माना जाएगा।
बेबिल्स मिल्स बनाम सेम्युअल 1969 के प्रकरण में कहा गया है कि अभिकर्ता मालिक और परव्यक्ति के बीच की कड़ी होता है किंतु यदि स्वामी अथवा मालिक का ही अस्तित्व नहीं है तो अभिकर्ता के अस्तित्व में होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। अर्थात यदि कहीं पर कोई मालिक है तो ही अभिकर्ता होगा क्योंकि मालिक से ही अभिकर्ता का अस्तित्व होता है।
जैसा की धारा 182 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया है कि वह व्यक्ति जिसके लिए अभिकर्ता द्वारा कोई कार्य किया जाता है अथवा जिसका उक्त रूप में प्रतिनिधित्व किया जाता है वह व्यक्ति मालिक कहलाता है। अभिकर्ता मालिक की ओर से कोई व्यवहार कार्य संपन्न करता है। मालिक अभिकर्ता के प्रत्येक कृत्य के लिए दायीं होता है जिसका संबंध उक्त संव्यवहार से है।
अभिकर्ता वास्तव में वह व्यक्ति होता है जो किसी अन्य की ओर से कोई कार्य करने के लिए या किसी तीसरे व्यक्ति से कोई संव्यवहार संपन्न करने हेतु किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने हेतु नियोजित किया जाता है। इस प्रकार अभिकर्ता मालिक की ओर से कोई कार्य अथवा संव्यवहार संपादित करता है। वह स्वामी और परव्यक्ति के मध्य विधिक संबंध का सृजन करता है। यह ध्यान देने की बात है कि अभिकर्ता उक्त संव्यवहार से बांधना होगा जो उसने संपन्न कराया है।
जब तक कि उसके प्रतिकूल कोई संविदा न हो मालिक होने हेतु संविदा करने संबंधी क्षमता अपेक्षित है परंतु अभिकर्ता होने हेतु उस प्रकार की किसी सक्षमता की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जहां तक मालिक और तीसरे व्यक्ति के बीच का संबंध है कोई भी व्यक्ति अभिकर्ता हो सकता है। अतः यदि कोई अभिकर्ता जो कि अवयस्क है तो वह अपने मालिक को अपने कृत्यों के लिए तीसरे व्यक्ति के प्रति उत्तरदायित्व बना सकता है परंतु वह स्वयं अपने मालिक के साथ की गई अधिकरण संविदा के आधार पर कोई दायित्वधीन नहीं होगा।
एजेंसी का जन्म कैसे होता है-
अभिकरण वह संबंध है जो मालिक एवं अभिकर्ता के मध्य होता है।
लिखित दस्तावेज द्वारा-
विधि की कार्यवाही द्वारा-
पश्चातवर्ती अनु समर्थन द्वारा-
पक्षकारों के आचरण के द्वारा-
मात्र यह कहा जाना अथवा अभियोग लगाया जाना कि अभिकरण अस्तित्व में पर्याप्त नहीं है क्योंकि इसके अंतर्गत अभिकर्ता द्वारा अपनी शक्तियों का प्रयोग किया गया होना चाहिए।
अभिकरण का निर्माण संविदा करने में सक्षम व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को अभिकर्ता के रूप में नियोजित करके किया जा सकता है किंतु वह अपने कृत्यों के संदर्भ में मालिक को परव्यक्ति के लिए उत्तरदायीं बना सकता है किंतु स्वयं वह अभिकरण संविदा के आधार पर किसी भी प्रकार के दायित्वधीन नहीं होगा।