बलात्कार कानूनों का ऐतिहासिक विकास (Historical Evolution of Rape Laws)
भारत में बलात्कार (Rape) कानूनों का विकास धीरे-धीरे हुआ है। भारतीय दंड संहिता (IPC - Indian Penal Code) की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई है, जिसमें बताया गया है कि किन परिस्थितियों में यौन संबंध (Sexual Intercourse) को बलात्कार माना जाएगा, जिसमें सहमति (Consent) की अनुपस्थिति शामिल है। समय के साथ, इन कानूनों में कई बदलाव हुए, खासकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए।
इतिहास में, सहमति की उम्र (Age of Consent) को समय-समय पर बढ़ाया गया:
• 1860: IPC के तहत सहमति की उम्र 10 वर्ष निर्धारित की गई थी।
• 1891: Age of Consent Act के तहत इसे बढ़ाकर 12 वर्ष किया गया।
• 1925: इसे 14 वर्ष तक बढ़ाया गया।
• 1940: सहमति की उम्र बढ़ाकर 16 वर्ष की गई।
• 1978: बाल विवाह निरोधक अधिनियम (Child Marriage Restraint Act) में संशोधन के साथ, लड़कियों के लिए वैध विवाह की उम्र 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष कर दी गई।
• 2013: 2012 के दिल्ली गैंगरेप मामले के बाद, Justice Verma Committee की सिफारिशों के आधार पर सहमति की उम्र बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों और बाल संरक्षण (Child Protection) कानूनों के अनुरूप है।
हालांकि, इन प्रगतिशील बदलावों के बावजूद, एक महत्वपूर्ण विसंगति (Anomaly) भारतीय कानून में रही, खासकर वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) के संबंध में। IPC की धारा 375 के Exception 2 के तहत, पति को 15 वर्ष से ऊपर की पत्नी के साथ सहमति के बिना यौन संबंध बनाने की छूट दी गई थी।
सहमति की उम्र और बाल विवाह (Age of Consent and Child Marriage)
भारत में बाल विवाह (Child Marriage) का मुद्दा लंबे समय से बलात्कार कानूनों के साथ जुड़ा रहा है। भले ही कई कानूनों ने बाल विवाह पर रोक लगाई हो, यह प्रथा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित रही। बाल विवाह निरोधक अधिनियम (Child Marriage Restraint Act), 1929 पहला कानून था जिसने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष निर्धारित की।
हालांकि, IPC की धारा 375 के तहत सहमति की उम्र को लेकर भ्रम बना रहा। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ शादी के बाहर यौन संबंध बलात्कार माना जाता था, लेकिन अगर लड़की की शादी हो चुकी है, तो उसके पति को 15 वर्ष से ऊपर की उम्र में सहमति के बिना भी यौन संबंध बनाने की अनुमति थी। इस कानूनी छूट ने विशेष रूप से उन नाबालिग लड़कियों का शोषण किया जो बाल विवाह का शिकार थीं।
प्रमुख बलात्कार कानून मामलों पर चर्चा (Key Rape Law Precedents Discussed)
1. भारत के विधि आयोग की 84वीं रिपोर्ट (1980) (Law Commission of India's 84th Report, 1980) भारत के विधि आयोग की 84वीं रिपोर्ट बलात्कार की उम्र और बाल विवाह के बीच संबंध पर महत्वपूर्ण थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई कि भारत में बलात्कार और बाल संरक्षण कानूनों के बीच विरोधाभास है। रिपोर्ट ने यह सिफारिश की कि चूंकि बाल विवाह निरोधक अधिनियम (Child Marriage Restraint Act) के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी प्रतिबंधित है, IPC को भी इसे प्रतिबिंबित करना चाहिए और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ यौन संबंध को बलात्कार के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो।
2. भारत के विधि आयोग की 172वीं रिपोर्ट (2000) (Law Commission of India's 172nd Report, 2000) भारत के विधि आयोग की 172वीं रिपोर्ट में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) के मुद्दे पर पुनर्विचार किया गया, लेकिन इसने विवादास्पद रूप से सिफारिश की कि 15 वर्ष से ऊपर की पत्नी के साथ पति के द्वारा किए गए गैर-सहमति वाले यौन संबंधों पर आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए। आयोग ने तर्क दिया कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने से वैवाहिक संबंध में अत्यधिक हस्तक्षेप हो सकता है। हालांकि, अदालत ने इस सिफारिश को अस्वीकार कर दिया और यह स्वीकार किया कि नाबालिग लड़कियों के शरीर की स्वायत्तता (Bodily Autonomy) की रक्षा की जानी चाहिए, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं।
कानूनी ढांचा और प्रावधान (Legal Framework and Statutory Provisions)
1. भारतीय दंड संहिता, 1860 (धारा 375) (Indian Penal Code, 1860 - Section 375) IPC की धारा 375, जिसे Criminal Law (Amendment) Act, 2013 द्वारा संशोधित किया गया था, बलात्कार को परिभाषित करती है और इसके दायरे को विस्तारित करती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के यौन हमले शामिल हैं। यह स्पष्ट करता है कि सहमति स्वैच्छिक और स्पष्ट होनी चाहिए। हालाँकि, धारा 375 का Exception 2 15 से 18 वर्ष की उम्र की विवाहित लड़कियों के साथ पति द्वारा किए गए बलात्कार को छूट देता था, जो वर्षों तक एक विवादास्पद मुद्दा रहा।
2. बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act - POCSO, 2012) POCSO अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन हमले, उत्पीड़न और अश्लील सामग्री (Pornography) से बचाने के लिए एक व्यापक कानून है। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन संबंध को, चाहे वह सहमति से हो या नहीं, अपराध मानता है। POCSO के तहत, इसे "गंभीर यौन हमला (Penetrative Sexual Assault)" कहा जाता है, और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा शामिल है।
POCSO के कड़े प्रावधानों का उद्देश्य नाबालिगों की सुरक्षा करना था, लेकिन IPC की धारा 375 के Exception 2 के साथ एक असंगति उत्पन्न हो गई, जो 15 से 18 वर्ष की उम्र के विवाहित लड़कियों के साथ पति द्वारा यौन संबंध को वैध मानती थी। इस असंगति को अदालत ने गंभीरता से लिया और इसे बाल कल्याण कानूनों (Child Welfare Laws) की भावना के खिलाफ बताया।
3. बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act - PCMA, 2006) PCMA, 2006 का उद्देश्य बाल विवाह को रोकना और नाबालिगों का शोषण होने से बचाना है। इस अधिनियम के तहत, बाल विवाह अवैध है और इसे नाबालिग के अनुरोध पर अमान्य किया जा सकता है। अधिनियम में बाल विवाह को बढ़ावा देने या इसे संपन्न करने वालों के लिए दंड का भी प्रावधान है। हालाँकि, यह अधिनियम बाल विवाह को स्वचालित रूप से शून्य घोषित करने से परहेज करता है, जो इस प्रथा से निपटने की जटिलता को दर्शाता है।
4. घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (Protection of Women from Domestic Violence Act - PWDVA, 2005) PWDVA, 2005, जो मुख्य रूप से घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है, घर के भीतर यौन हिंसा को भी दुर्व्यवहार (Abuse) के रूप में मान्यता देता है। इस अधिनियम के तहत, पति को अपनी पत्नी के खिलाफ शारीरिक या यौन हिंसा के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। हालाँकि, यह अधिनियम सीधे तौर पर वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं मानता, लेकिन इसमें सिविल उपाय (Civil Remedies), जैसे संरक्षण आदेश और मुआवजे का प्रावधान है।
अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और प्रतिबद्धताएँ (International Conventions and Commitments)
भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं जो बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रयासरत हैं, जैसे बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (Convention on the Rights of the Child - CRC) और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव (Discrimination) को समाप्त करने पर सम्मेलन (CEDAW)।
ये संधियाँ इस बात पर जोर देती हैं कि बालिकाओं को हानिकारक प्रथाओं (Harmful Practices) से बचाने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, जिनमें बाल विवाह और यौन शोषण (Sexual Exploitation) शामिल हैं।
भारत में बलात्कार और बाल विवाह कानूनों का विकास पारंपरिक प्रथाओं और आधुनिक कानूनी ढांचे के बीच तनाव को उजागर करता है, जिसका उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा है।
जबकि POCSO जैसे प्रगतिशील कानूनों और IPC में संशोधनों ने नाबालिगों के लिए बेहतर सुरक्षा प्रदान की है, धारा 375 के तहत वैवाहिक बलात्कार में छूट (Exception) एक बड़ी असंगति रही।
न्यायिक समीक्षा और व्यापक कानूनी बहस के माध्यम से, अदालतों ने इन कानूनों को बेहतर ढंग से समन्वित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि नाबालिग लड़कियों के अधिकारों की रक्षा, यहां तक कि विवाह के भीतर भी, पूरी तरह से हो।