ट्रायल कोर्ट/ट्रिब्यूनल को केवल इस आधार पर मामले स्थगित नहीं करने चाहिए कि पक्षकारों ने मौखिक रूप से कहा, मामले पर रोक लगाई: केरल हाईकोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए

Update: 2024-09-27 09:02 GMT

केरल हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल को निर्देश दिया कि वे केवल वकीलों या पक्षकारों के मौखिक रूप से दिए गए इस आधार पर मामले स्थगित न करें कि मामले पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई।

अदालत ने कहा कि वकील/पक्षकार अक्सर दावा करते हैं कि कार्यवाही स्थगित करने के लिए हाईकोर्ट से स्थगन आदेश है, जबकि वास्तव में कोई स्थगन आदेश नहीं है।

जस्टिस पी.वी.कुन्हीकृष्णन ने कहा कि न्यायालयों या ट्रिब्यूनल को पक्षकारों को निर्देश देना चाहिए कि यदि उन्होंने स्थगन आदेश प्रस्तुत नहीं किया तो वे हलफनामा प्रस्तुत करें और केवल उनके मौखिक प्रस्तुतीकरण के आधार पर मामले को स्थगित नहीं किया जाना चाहिए।

“यदि न्यायालय/ट्रिब्यूनल के समक्ष कोई प्रस्तुतीकरण किया जाता है, जिसमें कहा गया कि हाईकोर्ट द्वारा अंतरिम आदेश/स्थगन पारित किया गया, लेकिन स्थगन आदेश प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो संबंधित न्यायालयों/ट्रिब्यूनल को पक्षकारों से इस आशय का हलफनामा दाखिल करने के लिए कहना चाहिए। उसके बाद ही मामले को स्थगित किया जाना चाहिए।”

इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2017 में हाईकोर्ट में आपराधिक विविध मामला दायर किया, जिससे उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 420 के साथ धारा 34 के तहत अपराधों के लिए अंतिम रिपोर्ट रद्द की जा सके। जब मामला सामने आया तो हाईकोर्ट ने मामला स्वीकार कर लिया और निर्देश जारी किया कि याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

मामले को आगे की कार्रवाई के लिए स्थगित कर दिया गया और 2024 में ही न्यायालय के समक्ष आया। उस समय हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट से न्यायालय के अभिलेखों में विसंगति के बारे में रिपोर्ट मांगी, जिसमें संकेत दिया गया कि हाईकोर्ट द्वारा कोई स्थगन आदेश जारी नहीं किए जाने के बावजूद कार्यवाही रोक दी गई। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने गिरफ्तारी के खिलाफ निर्देश जारी किया और कार्यवाही रोकी नहीं गई।

हाईकोर्ट को निराशा हुई, मजिस्ट्रेट ने रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया कि पक्ष पिछले कई वर्षों से मामले को स्थगित कर रहे थे, जिसमें कहा गया कि हाईकोर्ट में कार्यवाही रोक दी गई थी। मजिस्ट्रेट ने यह भी नोट किया कि फाइल में कोई स्थगन आदेश नहीं था और पक्षों ने आदेश प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा था।

न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल में वकीलों के मौखिक कथनों पर भरोसा करके मामलों को स्थगित करने की प्रवृत्ति है कि हाईकोर्ट से स्थगन आदेश है। इसने चेतावनी दी कि ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल को केवल वकीलों/पक्षकारों के मौखिक कथनों के आधार पर मामलों को स्थगित नहीं करना चाहिए।

न्यायालय ने कहा,

"तकनीकी प्रगति के साथ कोई भी व्यक्ति केवल हाईकोर्ट की वेबसाइट ब्राउज़ करके हाईकोर्ट के मामलों की स्थिति की जांच कर सकता है। लेकिन ऐसा किए बिना न्यायालय, ट्रिब्यूनल और अन्य न्यायिक मंच केवल वकीलों/पक्षकारों के कथनों पर भरोसा करके मामले को स्थगित कर रहे हैं कि इस न्यायालय द्वारा मामले पर रोक लगा दी गई, जबकि इस न्यायालय द्वारा ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया गया।"

न्यायालय ने चेतावनी दी कि ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल को केवल वकीलों/पक्षकारों के मौखिक कथनों पर आधारित मामलों को स्थगित नहीं करना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि स्थगन आदेश प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो पक्षकार उस सीमा तक हलफनामा प्रस्तुत करें।

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि पहले से ही कोई स्थगन है तो हाईकोर्ट की वेबसाइट पर केस स्टेटस से यह सत्यापित किया जा सकता है कि स्थगन बढ़ाया गया या लागू है, यदि यह प्रस्तुत किया गया कि स्थगन बढ़ाया गया और लागू है।

न्यायालय ने कहा,

“उस स्तर पर भी यदि स्थगन विस्तार आदेश प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो न्यायालय/न्यायाधिकरण पक्षकारों से हलफनामा मांग सकते हैं। स्थगन आदेश या स्थगन विस्तार आदेश (अधिकतम एक माह) प्रस्तुत करने के लिए पक्षों को उचित समय दिया जा सकता है।”

न्यायालय ने कहा कि यदि कोई स्थगन या हलफनामा प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो न्यायालयों या न्यायाधिकरणों को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर केस स्टेटस सत्यापित करने के बाद कार्यवाही जारी रखनी चाहिए।

इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि यदि पक्षकार यह आदेश प्रस्तुत करते हैं कि स्थगन हाईकोर्ट के अगले आदेश तक बढ़ाया जाता है तो न्यायालयों या न्यायाधिकरणों को उसके बाद तीन महीने में एक बार पक्षकारों से हलफनामा मांगना चाहिए, जिसमें कहा गया हो कि आदेश लागू है।

न्यायालय ने कहा कि स्थगन आदेश या हलफनामे के बिना कार्यवाही पर रोक लगाने को गंभीरता से लिया जाएगा। इसमें यह भी कहा गया कि यदि नए पीठासीन अधिकारी कार्यभार संभालते हैं तो उन्हें कार्यवाही को यांत्रिक रूप से स्थगित नहीं करना चाहिए, बल्कि पक्षकारों से स्थगन आदेश/स्थगन विस्तार आदेश/शपथपत्र की प्रति मांगनी चाहिए।

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि जिला न्यायालयों को केस सूचना प्रणाली (सीआईएस)/केस प्रबंधन प्रणाली (सीएमएस) में कार्यवाही को उचित रूप से दर्ज करना चाहिए और मामले के विवरण का उल्लेख न किए जाने को गंभीरता से लिया जाएगा।

अदालत ने इस प्रकार जिला न्यायपालिका के रजिस्ट्रार को न्यायिक अधिकारियों और न्यायाधिकरणों को इन दिशानिर्देशों का कड़ाई से अनुपालन करने के लिए सख्त निर्देश जारी करने का निर्देश दिया।

मामले के तथ्यों को देखते हुए न्यायालय ने पक्षकारों को ट्रायल कोर्ट के समक्ष डिस्चार्ज याचिका दायर करने का निर्देश दिया।

केस टाइटल: विनोद बनाम केरल राज्य

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