प्रेम-विहीन विवाह से तलाक की मांग करने वाली महिला से क्रूरता की हर घटना को याद करने की उम्मीद नहीं की जाती: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने माना कि जो महिला अपने पति के साथ प्रेम-विहीन रिश्ते में होने की शिकायत करती है, जो कथित रूप से स्वच्छंद जीवन जी रहा है और शराब के नशे में काम कर रहा है, वह क्रूरता की हर घटना को गिनाने में सक्षम नहीं होगी।
जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस सी. प्रतीप कुमार की खंडपीठ तलाक याचिका में फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी।
अपीलकर्ता का प्रतिवादी से तब परिचय हुआ, जब वह बहुत छोटी थी और उनके बीच एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध बन गए थे। जब उसके माता-पिता को इस बारे में पता चला तो उन्होंने उसे बोर्डिंग स्कूल और बाद में कॉलेज में भेज दिया। हालांकि, इस दौरान अपीलकर्ता और प्रतिवादी ने संपर्क बनाए रखा।
प्रतिवादी ने दूसरी महिला से शादी की लेकिन उसने अपीलकर्ता को यह विश्वास दिलाया कि उसे अपने माता-पिता के दबाव में ऐसा करना पड़ा। उसने कहा कि वह अपीलकर्ता के बारे में सोचता था खासकर अपनी पत्नी के साथ अंतरंग क्षणों में।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि वह युवा और भोली थी और दुर्भाग्य से इन बहकावों में आ गई। 2001 में उसके साथ भाग गई, जबकि वह 17 साल की थी। उसने 2004 में अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। याचिकाकर्ता और प्रतिवादी ने 2005 में शादी की और 2007 में उनके बच्चे का जन्म हुआ।
प्रतिवादी के समझाने पर याचिकाकर्ता ने चर्च विवाह के लिए सहमति व्यक्त की। भागने और उसके बाद साथ रहने के बाद उन दोनों को अपने-अपने समुदायों से बहिष्कृत कर दिया गया।
यह कहा गया कि प्रतिवादी लगभग हमेशा शराब के नशे में रहता था और अन्य महिलाओं के साथ उसके अनैतिक संबंध थे। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह हमेशा डरी रहती थी, क्योंकि शराब के नशे में वह गलत काम करने की प्रवृत्ति दिखाता था।
यह कहा गया कि उसने सबकुछ सहा और उम्मीद की कि चीजें बेहतर हो जाएंगी, लेकिन यह उम्मीद तब खत्म हो गई, जब एक दिन उसने याचिकाकर्ता पर क्रूरता से हमला किया और उसे कमरे में बंद कर दिया और वह मदद के लिए पुकारने में असमर्थ हो गई।
प्रतिवादी ने कहा कि अपीलकर्ता का विवाहित व्यक्ति और बच्चे से प्यार करना गलत था। उसने कहा कि उसे अपीलकर्ता से शादी करने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि उसने धमकी दी थी कि अगर उसने अपनी पत्नी और परिवार को नहीं छोड़ा तो वह खुद को मार डालेगी।
फैमिली कोर्ट ने माना कि पक्षों के बीच विवाद 'पारिवारिक जीवन की सामान्य टूट-फूट' का हिस्सा थे और क्रूरता के आधार पर पक्षों को तलाक नहीं दिया।
हाईकोर्ट ने देखा कि अपीलकर्ता को उसके परिवार से भी कोई मदद नहीं मिली और उसे उसके समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया। उसे भावनात्मक, शारीरिक और अन्य जरूरतों के लिए याचिकाकर्ता पर निर्भर रहना पड़ा।
कोर्ट ने कहा,
"उपर्युक्त परिदृश्य को शायद शब्दार्थ से नहीं समझाया जा सकता, लेकिन इसे केवल वही समझ सकता है, जिसने इसे अनुभव किया हो; विशेष रूप से निराशा के साथ प्रेम-विहीन जीवन जीने के लिए मजबूर होना।"
न्यायालय ने यह भी माना कि मारपीट की घटना तलाक देने को उचित नहीं ठहरा सकती लेकिन इस मामले में यह मुद्दा वर्षों से और गहराता जा रहा है, जिससे पत्नी आत्म-मूल्यहीनता और निराशा की भावनाओं में डूबी हुई है।
न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक क्रूरता को गणितीय सटीकता के साथ परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह वातावरण, मनोवैज्ञानिक प्रभाव, व्यक्ति की मानसिक स्थिति, पीड़ित की आयु और सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे कई मानदंडों पर निर्भर करता है। यह सामान्य नियम के रूप में नहीं माना जा सकता कि कोई विशेष कार्य क्रूरता है।
न्यायालय ने कहा कि क्रूरता की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, क्योंकि यह व्यक्ति की व्यक्तिगत व्याख्या और संबंधित व्यवहार के प्रति भावनात्मक प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है।
न्यायालय ने आगे कहा कि वैवाहिक क्रूरता को कभी-कभी 'विवाह का अभिन्न अंग' माना जाता है। इसके प्रभाव रिश्ते में महिला द्वारा अधिक सहन किए जाते हैं।
न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा दिए गए तर्कों पर भी प्रहार किया और कहा कि उसने अत्यधिक पितृसत्तात्मक रुख अपनाया। इसने प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि विवाह में उसके साथ बुरा व्यवहार किया गया। कहा कि यह दावा पुष्ट नहीं है और दलीलों या साक्ष्यों में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के हाथों अपने साथ हुए हमले और आघात का सचित्र वर्णन किया। इसलिए न्यायालय ने माना कि उस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है।
न्यायालय ने फैमिली कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और तलाक की अनुमति दी।
केस टाइटल- लिट्टी मैरी जॉन बनाम मनोज के. वर्गीस