पति से झगड़े के बाद पत्नी को सुलह के लिए बुलाना मानसिक उत्पीड़न नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने महिला द्वारा अपने देवर और अन्य के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला खारिज किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि पति से झगड़े के बाद उन्होंने उसे सुलह के लिए वैवाहिक घर बुलाया और उसके साथ मानसिक उत्पीड़न किया।
एकल जज जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने सुधा बाई और अन्य द्वारा दायर याचिका स्वीकार की और भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही खारिज कर दी।
अदालत ने कहा,
"आरोपों का जवाब आरोपी नंबर 1, 2 और 3 (शिकायतकर्ता के पति और ससुराल वालों) को देना पड़ सकता है लेकिन मुझे IPC की धारा 498A या अधिनियम की धारा 3 और 4 का कोई तत्व नहीं मिला।"
अपराधों को रद्द करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अपराध के कथित प्रकरण में याचिकाकर्ताओं की भूमिका केवल तब होती है, जब याचिकाकर्ता पति और पत्नी के बीच विवाद को सुलझाने या हल करने के लिए उन्हें सुलह के लिए बुलाते हैं।
यह कहा गया,
"सुलह के लिए उन्हें बुलाना उनके खिलाफ अपराध माना जाता है। अगर मामले में आगे की जांच जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए कई निर्णयों का उल्लंघन होगा।”
शिकायतकर्ता ने यह कहते हुए इसका विरोध किया कि याचिकाकर्ताओं - आरोपी नंबर 4, 5 और 6 के कृत्य स्पष्ट रूप से पत्नी को हुए 'मानसिक उत्पीड़न' के वाक्यांश में फिट बैठते हैं, क्योंकि ये याचिकाकर्ता ही थे, जिन्होंने सुलह के लिए बुलाया। लेकिन आरोपी नंबर 1, 2 और 3, जो वैवाहिक घर में रहते हैं ने सुलह की बातचीत के लिए पत्नी के लिए दरवाजा नहीं खोला और पत्नी को पुलिस को बुलाना पड़ा। पत्नी के परिवार के सदस्यों के सामने अपमान का सामना करना पड़ा।
याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शिकायत में दिए गए कथनों पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता परिवार के अन्य सदस्य हैं, यह बात रिकॉर्ड में दर्ज है। उनकी भूमिका यह है कि उन्होंने सुलह की मांग की और पति-पत्नी के बीच सुलह नहीं होने दी और पत्नी के खिलाफ कुछ आरोप लगाए।
इसके बाद अदालत ने कहा,
"इसके अलावा ऐसा कोई अन्य आरोप नहीं है, जो आईपीसी की धारा 498A के तत्वों को छूता हो खासकर आरोपी नंबर 4, 5 और 6 के खिलाफ, जैसा कि शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया है।"
इसके बाद अदालत ने कहा,
"याचिकाकर्ता परिवार के अन्य सदस्य हैं। इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मौजूदा मामले में भी जांच की अनुमति देना कहकशां कौसर @ सोनम और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ होगा।"
याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा,
"यदि आगे की जांच को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, तो यह कानून के विरुद्ध होगा, क्योंकि याचिकाकर्ताओं को आरोपी नंबर 4, 5 और 6, बहनोई और बहनोई की पत्नी या सास की बहन को इन कार्यवाहियों में शामिल नहीं किया जा सकता।”
केस टाइटल: सुधा बाई और अन्य तथा कर्नाटक राज्य और अन्य