नशे में गाड़ी चलाने पर बीमा कंपनी की जिम्मेदारी खत्म करने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन की सिफारिश: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे मोटर वाहन अधिनियम 1988 में आवश्यक संशोधन करें ताकि नशे में वाहन चलाने के मामलों में बीमा कंपनियों को मुआवज़ा देने की ज़िम्मेदारी से मुक्त किया जा सके।
जस्टिस उमेश एम. अडिगा की एकल पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 149(2) के तहत बीमा कंपनी केवल उन्हीं परिस्थितियों में जिम्मेदारी से बच सकती है, जो उसमें निर्दिष्ट हैं और उसमें ड्रंक एंड ड्राइव (नशे में गाड़ी चलाना) शामिल नहीं है।
कोर्ट ने टिप्पणी की,
“ड्रंक एंड ड्राइव एक सामाजिक अपराध है। बीमा कंपनी को इस स्थिति में मुआवज़ा देने के लिए बाध्य करना, इस खतरनाक प्रवृत्ति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहित कर सकता है।”
कोर्ट ने आंशिक रूप से उस बीमा कंपनी की अपील को स्वीकार किया, जिसने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एक नशे में वाहन चलाने वाले की गलती से हुए हादसे में कंपनी को 2,59,000 का मुआवज़ा चुकाने का निर्देश दिया गया था।
हालांकि हाईकोर्ट ने मुआवज़े की राशि को बरकरार रखा लेकिन यह आदेश दिया कि बीमा कंपनी यह राशि दावाकर्ता को अदा करे और फिर उसे वाहन मालिक से वसूलने के लिए स्वतंत्र रहे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,
"वाहन का बीमाकृत होना वाहन स्वामी को यह दावा करने का अधिकार नहीं देता कि बीमा कंपनी हर हाल में जिम्मेदार है। बीमा अनुबंध में विश्वास और निष्ठा निहित होती है। अगर अदालतें केवल इस आधार पर मुआवज़ा देती रहें कि धारा 147 में बीमा कंपनी को इस मामले में बचाव का अधिकार नहीं है, तो यह अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं के साथ अन्याय होगा। इससे ड्राइवरों और मालिकों को सार्वजनिक सड़कों पर नशे में वाहन चलाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।"
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि सरकार द्वारा "ड्रिंक एंड ड्राइव" के खिलाफ बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं लेकिन नशेड़ी इसे तोड़ते हैं।
"सिर्फ आत्मसंतोष के लिए शराब पीकर गाड़ी चलाना ना केवल स्वयं चालक की जान को खतरे में डालता है, बल्कि अन्य निर्दोष लोगों की जान भी जोखिम में डालता है। ऐसी लापरवाही स्वास्थ्य सेवाओं, न्यायिक संस्थानों और सार्वजनिक संसाधनों पर भी बोझ बढ़ाती है।"
कोर्ट के अनुसार इस मामले में दुर्घटना करने वाला मोटरसाइकिल चालक अत्यधिक शराब के नशे में था। मनिपाल अस्पताल की रिपोर्ट (Ex.R7) के अनुसार, चालक के खून में अल्कोहल का स्तर 126 mg/dl पाया गया, जो कि वैधानिक सीमा 30 mg/dl से कहीं अधिक है।
मामले की पृष्ठभूमि:
दावाकर्ता ने कहा था कि डोमलूर फ्लाईओवर के पास जब वह अपनी मोटरसाइकिल चला रहा था, तभी दूसरी मोटरसाइकिल के चालक ने लापरवाही से टक्कर मारी, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं और स्थायी विकलांगता हो गई। इसके चलते वह नौकरी गंवा बैठा और आमदनी भी चली गई।
MACT ने घटना में प्रतिवादी की लापरवाही पाई और 2,59,000 का मुआवज़ा 9% वार्षिक ब्याज सहित देने का आदेश दिया था। बीमा कंपनी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हालांकि कोर्ट ने कहा कि मुआवज़े की राशि उचित है और इसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
नतीजतन कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह मुआवज़े की राशि दावाकर्ता को दे और फिर उसे वाहन मालिक से वसूले।
टाइटल: Oriental Insurance Co. Ltd. बनाम प्रतीक कुमार त्रिपाठी एवं अन्य