कर्नाटक हाईकोर्ट ने मानहानि मामला रद्द करने की राहुल गांधी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

Update: 2025-12-18 11:26 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा दायर उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने राज्य भाजपा द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक मानहानि की कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी।

यह मामला विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रकाशित भ्रष्टाचार रेट कार्ड विज्ञापन और उससे संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़ा है, जिसे भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाला बताया।

जस्टिस एस. सुनील दत्त यादव की एकल पीठ के समक्ष हुई सुनवाई के दौरान भाजपा की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि राहुल गांधी का नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जारी स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल था।

उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव के दौरान प्रकाशित इस विज्ञापन का उद्देश्य स्पष्ट रूप से भाजपा की छवि को खराब करना था।

भाजपा का आरोप है कि विज्ञापन में डबल इंजन सरकार के बजाय ट्रबल इंजन सरकार जैसे शब्दों का प्रयोग कर जनता को गुमराह किया गया और पार्टी पर झूठे कमीशन के आरोप लगाए गए।

भाजपा के वकील ने अदालत को बताया कि विज्ञापन प्रकाशित होते ही राहुल गांधी ने इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया था। उन्होंने तर्क दिया कि याचिका में ही यह स्वीकार किया गया कि विज्ञापन साझा किया गया, इसलिए इसे साबित करने के लिए मुकदमे की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा कि मानहानि के कानून के तहत 'व्यक्ति' शब्द में राजनीतिक दल भी शामिल होते हैं और भले ही भाजपा का नाम सीधे तौर पर न लिया गया हो लेकिन विज्ञापन का निशाना वही थी।

वहीं राहुल गांधी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट शशि किरण शेट्टी ने इन आरोपों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने दलील दी कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई ठोस साक्ष्य मौजूद नहीं है, जो राहुल गांधी को सीधे तौर पर इस विज्ञापन के प्रकाशन या किसी विशेष ट्वीट से जोड़ता हो।

उन्होंने स्पष्ट किया कि क्या 'रिट्वीट' करना मानहानि की श्रेणी में आता है, यह कानूनी मुद्दा अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। गांधी के वकील ने यह भी कहा कि शिकायत केवल इस आधार पर की गई कि वह पार्टी के तत्कालीन उपाध्यक्ष थे, जो कि 'परोक्ष उत्तरदायित्व' का मामला है और आपराधिक मानहानि में इसे लागू नहीं किया जा सकता।

बचाव पक्ष ने एक महत्वपूर्ण तर्क यह भी दिया कि विवादित विज्ञापन 'सरकार' की कार्यप्रणाली की आलोचना करता है, न कि सीधे 'राजनीतिक दल' की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सरकार और राजनीतिक दल दो अलग संस्थाएं होती हैं और सरकार की आलोचना करना नागरिकों और विपक्षी नेताओं का अधिकार है। यदि राजनीतिक विमर्श में सरकार की आलोचना को मानहानि माना जाने लगा, तो लोकतांत्रिक आलोचना का स्थान ही समाप्त हो जाएगा।

दोनों पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद अदालत ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

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