कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित की
कर्नाटक हाईकोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका पर 21 सितंबर को सुनवाई करेगा।
वरुणा विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के निर्वाचन रद्द करने की मांग करते हुए चुनाव याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने 2023 के विधानसभा चुनावों में चुनावी कदाचार किया।
याचिकाकर्ता निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता है। उसने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आने पर मुफ्त उपहार देने का वादा किया था। ऐसे वादों पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण के समान है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 2023 के राज्य विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जारी किया गया घोषणापत्र सर्व जनंगदा शांति थोटा, चुनाव घोषणापत्रों के लिए भारत के चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार 2016 के मामले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं हैं।
हालांकि न्यायालय ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से परामर्श करने और चुनाव घोषणापत्रों पर दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग के आदर्श नियमों के अनुसार राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र की एक कॉपी चुनाव आयोग को सौंपना आवश्यक है।
हालांकि यह तर्क दिया गया कि कांग्रेस का घोषणापत्र चुनाव आयोग को नहीं सौंपा गया। इसे प्रस्तुत नहीं किया गया, इसलिए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इसे घोषणापत्र नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार किए गए वादे भ्रष्ट आचरण के समान हैं।
इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि गृह लक्ष्मी का वादा, जो परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2,000 रुपये प्रदान करता है और उचिता प्रयाणा/शक्ति, जो नियमित KSRTC/BMTC बसों में पूरे राज्य में सभी महिलाओं को मुफ्त यात्रा प्रदान करता है, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
यह तर्क दिया गया कि केवल महिलाओं को नकद और मुफ्त बस यात्रा प्रदान करना अनुच्छेद 14 के विपरीत है।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि युवा निधि, जिसमें बेरोजगार स्नातकों को दो साल के लिए 3,000 रुपये प्रति माह और बेरोजगार डिप्लोमा धारकों को दो साल के लिए 1,500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया था और उचित प्रार्थना/शक्ति भी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है।
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि ऐसी योजनाओं को राज्य विधानमंडल में धन विधेयक के रूप में पेश किया जाना चाहिए।
यह कहा गया कि जिन योजनाओं में मुफ्त पैसा दिया जाता है उन्हें कानून और प्रक्रिया का पालन किए बिना नहीं किया जा सकता।
घोषणापत्र का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इसमें आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नफरत और कट्टरता की राजनीति की और प्रचार में उलझी रही। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ये कार्य भ्रष्ट आचरण के बराबर हैं।
याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस एस सुनील दत्त यादव की एकल पीठ ने मामले को 21 सितंबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
केस टाइटल- के वी शंकरा और सिद्धारमैया