कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीएम सिद्धारमैया का नाम लेने के लिए गवाह को मजबूर करने के आरोपी ED अधिकारियों के खिलाफ जांच पर रोक लगाई

Update: 2024-07-24 06:22 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के दो अधिकारियों के खिलाफ आगे की जांच पर रोक लगा दी, जो वाल्मीकि निगम मामले की जांच कर रहे हैं और उन पर मामले में एक गवाह को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और मामले में अन्य लोगों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने के लिए मजबूर करने का आरोप है।

जस्टिस एम नागप्रसन्न की एकल पीठ ने अंतरिम राहत के तौर पर याचिकाकर्ता मुरली कन्नन और मित्तल के खिलाफ जांच पर रोक लगा दी, जो ED के उप और सहायक निदेशक हैं।

यह मामला भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 3(5), 351(2) और 352 के तहत कालेश नामक व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत पर दर्ज किया गया।

सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से कहा,

"जब अधिकारी अपना कर्तव्य निभाते हैं अगर आप उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करते रहेंगे तो कोई भी अपना कर्तव्य नहीं निभाएगा।"

इस बात पर ध्यान देते हुए कि ED ने ECIR दाखिल की थी और उसके अनुसार उसने गवाह को बयान दर्ज करने के लिए बुलाया, और उसके बाद निगम कार्यालय में तलाशी और जब्ती की गई।

न्यायालय ने कहा,

"अगर पूछताछ ECIR दाखिल किए बिना होती तो एजी द्वारा दिए गए सभी सबमिशन पर विचार किया जा सकता था। पूछताछ के परिणामस्वरूप निगम के कार्यालय में तलाशी ली जाती है। अपराध दर्ज किया जाता है, ECIR दर्ज की जाती है और ED अधिकारी अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए शिकायतकर्ता को बुलाते हैं और मामले की जांच करते हैं और बयान दर्ज करते हैं। यह सब आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन ही कहा जा सकता है।"

कहा गया,

"यदि इस अपराध को जारी रहने दिया गया तो यह प्रथम दृष्टया कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इसलिए इन परिस्थितियों में मैं इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर रोक लगाना उचित समझता हूं।"

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल शशि किरण शेट्टी ने जांच पर रोक लगाने की याचिका का विरोध किया और कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति ली गई। शिकायत का हवाला देते हुए तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ताओं ने शिकायतकर्ता से मामले में मुख्यमंत्री का नाम लेने को कहा। शिकायत में आपराधिक धमकी का खुलासा किया गया

कहा गया,

"चाहे वह CBI हो, ED हो या कोई भी अगर कोई अधिकारी कानून का उल्लंघन करता है तो उसे दंडित किया जाना चाहिए। जांच अधिकारी गवाह को नहीं डरा सकता।"

एजी ने कहा कि कानून और व्यवस्था का प्रबंधन करने वाले कोई भी अधिकारी कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते। यह भी दावा किया गया कि पहले याचिकाकर्ता पर अपने आचरण के कारण खाते को डी-फ्रीज करने के Justice M Nagaprasanna#Stay of InvestigationEnforcement DirecotrateValmiki Development CorporationCoercionWitnessBharatiya Nyaya Sanhitaलिए 5 लाख रुपये लेने का आरोप लगाया गया है यह जांच पर रोक लगाने का मामला नहीं है। इसके अलावा यह दावा किया गया कि राज्य पुलिस द्वारा जांच पूरी होने वाली है और फिर सीबीआई ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के शामिल होने के कारण मामला दर्ज किया।

बताया गया कि इसके बाद ED ने ECIR दाखिल की और मामले में एक पूर्व मंत्री को गिरफ्तार किया गया। इस बात का उल्लेख करते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बैंक द्वारा दायर मामले में राज्य पुलिस द्वारा की गई जांच को सीबीआई को सौंपने के निर्देश की मांग की।

शेट्टी ने कहा,

"पूरी कार्यप्रणाली राज्य में कुछ लोगों को फंसाने और उन्हें गिरफ्तार करने और यहां की व्यवस्था को अस्थिर करने की है।"

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि आरोप याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं बल्कि एजेंसी के किसी अन्य अधिकारी के खिलाफ है।

उन्होंने कहा,

"बड़ी योजना बनाने का आरोप, अगर ऐसा है तो उन्होंने ईसीआर के पंजीकरण को चुनौती दी होगी, यह अधिकारियों को निशाना बनाने का एक दुर्भावनापूर्ण तरीका है।"

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