आरोपी और सर्वाइवर की कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए कर्नाटक हाइकोर्ट ने नाबालिग के साथ सहमति से संबंध बनाने पर POCSO मामला रद्द किया
कर्नाटक हाइकोर्ट ने हाल ही में 20 वर्षीय युवक के खिलाफ नाबालिग लड़की से शादी करने और यौन संबंध बनाने के कारण उसके खिलाफ शुरू किया गया आपराधिक मुकदमा रद्द कर दिया। आरोपी और सर्वाइवर के बीच बने इस संबंध से उन दोनों के एक बच्चे का जन्म भी हुआ।
जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल न्यायाधीश पीठ ने उस युवक द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली, जिस पर आईपीसी की धारा 366 (ए), 376 (1) और POCSO Act की धारा 4 और 6 और बाल विवाह अधिनियम 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) निषेध की धारा 9 के तहत आरोप लगाया गया।
ऐसा करते हुए अदालत ने सर्वाइवर (16 वर्षीय) और उसके माता-पिता द्वारा दायर संयुक्त हलफनामे को ध्यान में रखा, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता के साथ सर्वाइवर का विवाह अनजाने में और कानून की अज्ञानता में हुआ। कहा गया कि विवाह के बाद पुत्र का जन्म हुआ। अदालत को यह आश्वासन भी दिया गया कि वे पीड़िता के वयस्क होने पर अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराएंगे।
पीठ ने कहा कि पीड़िता और उसका नवजात बच्चा दोनों अपनी आजीविका के लिए याचिकाकर्ता पर निर्भर हैं और उसके माता-पिता ने उसका और बच्चे का भरण-पोषण करने में असमर्थता व्यक्त की है, क्योंकि वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं।
आगे कहा गया,
“याचिकाकर्ता न्यायिक हिरासत में है और पीड़िता और बच्चे का भरण-पोषण करने में असमर्थ है। यदि आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो इसके परिणामस्वरूप न्याय सुनिश्चित करने के बजाय पीड़िता और उसके बच्चे को अधिक दुख और पीड़ा होगी।”
इसके बाद यह कहा गया POCSO Act का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है, न कि दो किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध बनाना, जिन्होंने परिणामों को जाने बिना सहमति से यौन संबंध बनाए।"
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और सर्वाइवर निचले सामाजिक-आर्थिक वर्ग से आते हैं, जिनकी सूचना और ज्ञान तक सीमित पहुंच है। इस प्रकार वे सहमति से यौन संबंध बनाने के परिणामों से वंचित हैं।
याचिका स्वीकार करते हुए और याचिकाकर्ता की रिहाई का निर्देश देते हुए कहा,
"यद्यपि नाबालिग के साथ सहमति से यौन संबंध बनाना POCSO Act के तहत अपराध है। हालांकि, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह विवादित कार्यवाही रद्द करना उचित होगा। अन्यथा इसके परिणामस्वरूप सर्वाइवर और बच्चे को न्याय नहीं मिल पाएगा।''
केस टाइटल- एबीसी और कर्नाटक राज्य