झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को दो सप्ताह में ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन का आदेश दिया
झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन में तेजी लाने का निर्देश दिया, जिसमें ट्रांसजेंडर समुदाय की जरूरतों को संबोधित करने के महत्व पर जोर दिया गया।
यह निर्देश राज्य द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए की गई विभिन्न लाभकारी कार्रवाइयों को उजागर करने वाले एक जवाबी हलफनामे के जवाब में आया।
हालांकि, अदालत ने कहा कि पांच साल पहले ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2019 के अधिनियमन के बावजूद कल्याण बोर्ड का गठन लंबित है।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने कहा,
"यहां सवाल यह है कि जब पांच साल पहले ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम 2019 के रूप में नियमों को प्रख्यापित करके ट्रांसजेंडरों की देखभाल के लिए कानून बनाया गया, लेकिन अभी भी झारखंड राज्य का रुख यह है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (सुप्रा) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय के आधार पर नियम, 2019 के तहत अनिवार्य रूप से ट्रांसजेंडरों के लिए कल्याण बोर्ड के गठन का मुद्दा अभी भी विचाराधीन है।"
"यह न्यायालय झारखंड राज्य की ओर से इसे दुर्भाग्यपूर्ण मानता है कि भले ही ट्रांसजेंडर समाज में थर्ड जेंडर हैं, लेकिन फिर भी झारखंड राज्य का रुख यह है कि ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन का मुद्दा विचाराधीन है।"
अपने आदेश में अदालत ने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (JHALSA) को कार्यवाही में प्रतिवादी के रूप में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। इसने झालसा के सदस्य सचिव को निर्देश दिया कि वे झारखंड के विभिन्न जिलों में राज्य के जवाबी हलफनामे में उल्लिखित लाभकारी योजनाओं की उपलब्धता की पुष्टि करने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के संबंधित सचिवों से रिपोर्ट मांगते हुए हलफनामा दायर करें।
ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड के गठन के संबंध में अदालत ने राज्य को निर्देश की तारीख से दो सप्ताह के भीतर इसे स्थापित करने का आदेश दिया।
इस मामले की फिर से सुनवाई 14 मई, 2024 को होनी है।
केस टाइटल- झारखंड ट्रांस कलेक्टिव बनाम मुख्य सचिव, झारखंड राज्य और अन्य