दोष न होने पर रजिस्ट्रेशन अधिकारी सेल डीड के विषय-वस्तु की जांच नहीं कर सकता: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-08-08 07:22 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सेल डीड के रजिस्ट्रेशन के मामलों में रजिस्ट्रेशन अधिकारी विलेख के विषय-वस्तु के अधिकार, शीर्षक, चरित्र की प्रकृति की जांच नहीं कर सकता, यदि इसे ठीक से निष्पादित किया गया हो और इसमें कोई कानूनी या औपचारिक दोष न हो।

दिनेश सिंह बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य में समन्वय पीठ के 2012 के फैसले पर भरोसा करते हुए एकल न्यायाधीश पीठ के जस्टिस अनिल कुमार चौधरी ने कहा,

"ऐसी परिस्थितियों में यदि विक्रय-पत्र विधिवत रूप से निष्पादित और पर्याप्त रूप से मुहरबंद है तथा इसमें कोई कानूनी या औपचारिक दोष नहीं है, तो इस न्यायालय का विचार है कि रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी डीड को रजिस्टर्ड करने से इनकार नहीं कर सकता, यदि इसे रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत किया जाता है, क्योंकि रजिस्ट्रेशन प्राधिकारी को रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत विक्रय-पत्र के विषय-वस्तु के संबंध में अधिकार, शीर्षक और चरित्र की प्रकृति की जांच करने से वंचित किया जाता है।"

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता अजय कुमार यादव ने चार अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर दो खरीदारों को भूमि का भूखंड हस्तांतरित करने के लिए रजिस्ट्रेशन अधिनियम द्वारा निर्धारित सभी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद जिला उप-पंजीयक, कोडरमा को रजिस्ट्रेशन के लिए विक्रय-पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने तर्क दिया कि इन औपचारिकताओं का पालन करने के बावजूद जिला उप-पंजीयक ने सेल डीड रजिस्टर्ड करने से इनकार किया, जिसके अनुसार यादव ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया।

यादव ने तर्क दिया कि रजिस्ट्रेशन एक्ट केJharkhand High CourtSale DeedJustice Anil Kumar Choudhary2024 LiveLaw (Jha) 138Registrations Act अनुसार सेल डीड के रजिस्ट्रेशन को केवल एक्ट की धारा 71 और 74 में निर्दिष्ट कुछ आधारों पर ही अस्वीकार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार द्वारा इनकार करने में इनमें से किसी भी वैधानिक आधार का हवाला नहीं दिया गया। इसलिए यह कानून में टिकने योग्य नहीं है। याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि विचाराधीन भूमि झारखंड सरकार की संपत्ति है। यह भूमि गैर मजरूआ खास प्रकार की भूमि है और इसलिए कुछ प्रतिबंधों के अधीन है।

संदर्भ के लिए गैर मजरुआ खास भूमि से तात्पर्य उस भूमि से है, जो रैयत के पास नहीं है। रैयत वह व्यक्ति होता है, जो कृषि करने के लिए भूमि का मालिक होता है। उसने इसे किरायेदारी कानूनों के अनुसार अधिग्रहित किया है।

हाईकोर्ट ने पाया कि राजस्व अधिकारी ने पहले भूमि को रैयती के रूप में पुष्टि की थी। यादव के पिता के पक्ष में म्यूटेशन आदेश जारी किए थे, जिन्होंने काफी समय तक भूमि राजस्व का भुगतान किया। हाईकोर्ट ने नोट किया कि ये आदेश चुनौती नहीं दिए गए।

इसके बाद न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि जिला उप-पंजीयक के इनकार का कोई वैध आधार नहीं है। याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को जिला उप पंजीयक, कोडरमा के समक्ष सेल डीड फिर से प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी। हाईकोर्ट ने आगे कहा कि रजिस्ट्रार कानून के अनुसार रजिस्ट्रेशन के लिए सेल डीड स्वीकार करेगा यदि दस्तावेज़ विधिवत प्रस्तुत किया गया।

केस टाइटल- अजय कुमार यादव बनाम झारखंड राज्य

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