केवल टाइटल सूट के लंबित रहने से किसी व्यक्ति को चोरी के अपराध से मुक्त करने का कोई आधार नहीं बनता: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-07-23 11:51 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि केवल टाइटल सूट के लंबित रहने से किसी व्यक्ति को चोरी के अपराध से मुक्त करने का कोई आधार नहीं बनता, जब तक कि किसी सक्षम न्यायालय ने यह फैसला न दे दिया हो कि आरोपी के पास कब्जा था और शिकायतकर्ता द्वारा दुर्भावनापूर्ण तरीके से मामला दर्ज कराया गया।

जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा,

"इन दलीलों पर विचार करने के बाद यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि केवल टाइटल मुकदमे का लंबित होना चोरी के अपराध से मुक्ति का दावा करने का आधार नहीं हो सकता, जब तक कि सक्षम न्यायालय का यह आदेश न हो कि यह आरोपी ही था, जिसके पास कब्जा था तथा शिकायतकर्ता ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से मामला दर्ज कराया, इसलिए मुक्ति के चरण में कोई राहत नहीं दी जा सकती। बचाव में टाइटल और/या कब्जे की दलील पर मुकदमे के दौरान विचार किया जा सकता है आरोप तय करने के समय नहीं।"

मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार एफआईआर में आरोप लगाया गया कि धान की चोरी रोशन हज्जाम और उसके पिता अनुज हज्जाम ने अन्य अज्ञात आरोपियों के साथ मिलकर इंफॉर्मेंट के खेत पर की थी। दोनों नामजद आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 379 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया। निर्वहन याचिका दायर की गई लेकिन इस आधार पर खारिज कर दी गई कि आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इससे व्यथित होकर आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की गई।

न्यायालय ने पाया कि बचाव में स्वामित्व और/या कब्जे की दलील पर मुकदमे के दौरान विचार किया जा सकता है, आरोप तय करते समय नहीं। इन विचारों के आधार पर न्यायालय ने आपराधिक पुनर्विचार में कोई योग्यता नहीं पाई और इसे खारिज कर दिया।

केस टाइटल- रोशन हजाम @ रोशन बराइक बनाम झारखंड राज्य

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