कर्मचारी को उसकी पिछली सेवाओं के आधार पर पेंशन लाभ मिलना संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संवैधानिक अधिकार: झारखंड हाइकोर्ट

Update: 2024-05-06 06:34 GMT

झारखंड हाइकोर्ट की जस्टिस चंद्रशेखर ए.सी.जे. और जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने बिरसा कृषि यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील पर निर्णय देते हुए कहा कि किसी कर्मचारी को पेंशन लाभ देने से मना करना संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत उसके संवैधानिक अधिकार को छीनना है, क्योंकि कर्मचारी को पेंशन उसकी पिछली सेवाओं के आधार पर मिलती है।

मामले की पृष्ठभूमि

महमूद आलम, मोहम्मद अब्बास अली, देव नारायण साव और शेख केतबुल हुसैन (प्रतिवादी) बिरसा कृषि वयूनिवर्सिटी (अपीलकर्ता) के अधीन दैनिक वेतनभोगी के रूप में कार्यरत थे।

उन्होंने अपनी सेवा के नियमितीकरण न किए जाने की शिकायत के साथ रिट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, क्योंकि यूनिवर्सिटी के अंतर्गत इसी तरह की स्थिति वाले अन्य दैनिक वेतनभोगी नियमित किए गए। रिट याचिका का निपटारा अपीलकर्ता को प्रतिवादियों के नियमितीकरण पर विचार करने के निर्देश के साथ किया गया।

हालांकि नियमितीकरण के दावे पर विचार नहीं किया गया। इसलिए प्रतिवादियों ने फिर से रिट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने रिट याचिका का निपटारा अपीलकर्ता ऐसे पद के लिए आवेदन करने वाले प्रतिवादियों के मामले पर विचार करने के निर्देश के साथ किया। जब आदेश का अनुपालन नहीं किया गया तो न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम के तहत कार्यवाही की गई, जिसका निपटारा अपीलकर्ता की ओर से दिए गए इस बयान पर किया गया कि उपयुक्त उम्मीदवारों के चयन के लिए साक्षात्कार प्रगति पर है। बाद में प्रतिवादियों को नियुक्ति की पेशकश की गई, जो अपीलकर्ता यूनिवर्सिटी के अनुसार नई नियुक्तियां थीं। इसलिए प्रतिवादी अपनी पिछली सेवाओं का कोई लाभ लेने के हकदार नहीं हैं।

इससे व्यथित होकर प्रतिवादियों ने अपनी पिछली सेवाओं के लिए वेतन, भत्ते और पेंशन के सभी लाभों का दावा करने के लिए रिट आवेदन दायर किए। इन रिट आवेदनों का निपटारा न्यायालय द्वारा प्रतिवादी यूनिवर्सिटी को निर्देश के साथ किया गया कि प्रतिवादियों की पिछली सेवाओं को पेंशन लाभों के लिए गिना जाना चाहिए। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता विश्वविद्यालय ने लेटर्स पेटेंट अपील दायर की।

अपीलकर्ता यूनिवर्सिटी ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादियों की पिछली सेवाओं के कारण उनकी सेवा को नियमित करने के लिए उचित आयु में छूट दी गई, इसलिए ये नई नियुक्तियां थीं।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया कि वे लगभग तीन दशकों से अपने नियमितीकरण का दावा कर रहे हैं, लेकिन अपीलकर्ताओं ने उनके मामले पर विचार नहीं किया।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी लगभग तीन दशकों से यूनिवर्सिटी में काम कर रहे थे, इसलिए उनकी पिछली सेवाओं को पेंशन लाभों के लिए माना जाना चाहिए।

न्यायालय ने आगे कहा कि अपीलकर्ता ने भी प्रतिवादी को आयु में छूट देकर उनकी पिछली सेवाओं को मान्यता दी। इसलिए प्रतिवादी पेंशन के लिए उनकी पिछली सेवाओं की गणना करने के हकदार हैं।

न्यायालय ने देवकीनंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पेंशन कोई दान नहीं है यह कर्मचारी द्वारा अपनी पिछली सेवाओं के आधार पर अर्जित की जाती है।

न्यायालय ने माना कि रिट न्यायालय के आदेश को चुनौती देकर अपीलकर्ता संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत प्रतिवादियों को संवैधानिक अधिकार से वंचित करने का प्रयास कर रहा है।

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ लेटर्स पेटेंट अपील को खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल- बिरसा कृषि यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य

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