सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस की अनदेखी पर झारखंड हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को फटकार लगाई, ट्रेनिंग का आदेश
झारखंड हाईकोर्ट ने एक शिकायत से उत्पन्न मामले में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जमानत प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया।
जस्टिस आनंदा सेन की पीठ ने कहा,
"प्रथम दृष्टया, मैं यह मानता हूं कि मजिस्ट्रेट इस मामले को पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की जानकारी के बिना चला रहे हैं। यह वे मामले हैं, जहां नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता दांव पर होती है। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट को पूरी तरह से संवेदनशील और जागरूक होना चाहिए, खासकर उन निर्णयों के प्रति जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित हैं।"
न्यायालय ने आगे कहा,
"यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि झारखंड न्यायिक अकादमी द्वारा जागरूकता कार्यक्रम चलाने के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए हैं। ऐसे मामलों में भी बिना विचार और कानून की जानकारी के, मजिस्ट्रेट इस प्रकार के आदेश पारित कर रहे हैं, जो अनुचित और अवांछनीय हैं।"
मामला
यह टिप्पणी एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जो एक शिकायत मामले में की गई। 21 अप्रैल, 2025 को अदालत ने यह कहते हुए याचिका निपटा दी कि यह शिकायत आधारित मामला है। चूंकि संज्ञान लिया जा चुका है, इसलिए गिरफ्तारी की कोई आशंका नहीं है और याचिकाकर्ता को केवल अदालत में पेश होना होगा।
लेकिन बाद में 66 वर्षीय याचिकाकर्ता ने दोबारा अदालत का रुख किया और बताया कि मजिस्ट्रेट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
एमिक्स क्यूरी एडवोकेट जितेंद्र शंकर सिंह ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता को सेशन कोर्ट से जमानत मिल चुकी है लेकिन मजिस्ट्रेट का आदेश सुप्रीम कोर्ट के Satender Kumar Antil v. CBI [2022 LiveLaw (SC) 577] के स्पष्ट दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और हाईकोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने Satender Kumar Antil मामले में तय दिशानिर्देशों को दोहराया, खासकर कैटेगरी A के अपराधों के संदर्भ में जिनमें शिकायत या चार्जशीट दाखिल होने के बाद संज्ञान लिया गया हो।
कोर्ट ने कहा,
"इस निर्णय से स्पष्ट है कि ऐसे मामलों में जहां संज्ञान लिया गया हो और समन जारी हो, वहां आरोपी को वकील के माध्यम से पेश होने की अनुमति दी जा सकती है। साथ ही ऐसी स्थिति में आरोपी को हिरासत में लिए बिना या अंतरिम जमानत देकर उसकी जमानत याचिका पर निर्णय किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के पूरे निर्णय में कहीं यह नहीं कहा गया कि शिकायत आधारित मामलों में संज्ञान लेने के बाद भारतीय दंड संहिता की धाराओं की गंभीरता के आधार पर निर्णय लिया जाए।"
हाईकोर्ट का निर्देश
उक्त टिप्पणी करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने झारखंड न्यायिक अकादमी के निदेशक को निर्देश दिया कि संबंधित मजिस्ट्रेट को न्यायालय समय के बाद कम से कम दो दिन का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए ताकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक मूल्यों की समुचित जानकारी दी जा सके।
केस टाइटल: रूपलाल राणा बनाम झारखंड राज्य (A.B.A. No.2439 of 2025)