झारखंड हाईकोर्ट ने बोकारो स्टील प्लांट के सीनियर अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शनकारी की मौत मामले में FIR की जांच पर लगाई रोक
झारखंड हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए बोकारो स्टील प्लांट के सीनियर अधिकारियों के खिलाफ दर्ज FIR की जांच पर रोक लगा दी। यह FIR प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा और उसमें एक प्रदर्शनकारी की मौत के सिलसिले में दर्ज की गई थी।
यह FIR बोकारो स्टील प्लांट के डायरेक्टर इन-चार्ज और कार्यपालक निदेशक (P&A) के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं 126(2) (गलत तरीके से रोकना), 127(2) (गलत तरीके से बंधक बनाना), 115(2) (जानबूझकर चोट पहुंचाना), 117(2) (गंभीर चोट पहुंचाना), 109 (हत्या का प्रयास), 103 (हत्या की सजा) और 161(1) के तहत दर्ज की गई थी।
जस्टिस आनंदा सेन ने अपने आदेश में कहा,
"FIR में यह आरोप है कि कुछ लोगों द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया जा रहा था, जिसमें शाम के समय CISF कर्मियों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया, जिससे एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई। यह भी आरोप है कि यह कार्रवाई याचिकाकर्ताओं के निर्देश पर की गई, जो बोकारो स्टील प्लांट के उच्च अधिकारी हैं।"
राज्य सरकार और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने यह स्वीकार किया कि FIR में कहीं यह नहीं कहा गया कि याचिकाकर्ताओं ने स्वयं हत्या की या बल प्रयोग में सक्रिय भागीदारी की। FIR से स्पष्ट है कि केवल भीड़ को हटाने का आदेश दिया गया।
इसके बाद हाईकोर्ट ने कहा,
"इन प्रस्तुतियों को ध्यान में रखते हुए मैं एक अंतरिम आदेश पारित करने के लिए इच्छुक हूं, जिसमें प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे FIR संख्या बी.एस. सिटी पी.एस. केस नंबर 64/2025 की जांच आगे न बढ़ाएं, जो कि BNS की उपरोक्त धाराओं के तहत दर्ज है और जेएम प्रथम श्रेणी, बोकारो की अदालत में लंबित है। साथ ही याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा।"
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील इंद्रजीत सिन्हा और विभाष सिन्हा ने अदालत को बताया कि घटना स्थल निषिद्ध क्षेत्र है और वहां की कानून-व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सर्किल ऑफिसर की है। उन्होंने यह भी बताया कि सर्किल ऑफिसर ने पहले से ही एक FIR दर्ज कराई, जिसमें यह दिखाया गया कि प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए थे। इसी हिंसक रवैये के कारण लाठीचार्ज हुआ और मौत हुई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि उनके खिलाफ किसी भी तरह की मंशा या आदेश देने का कोई सबूत नहीं है, जिससे किसी की मौत हो।
इन सभी दलीलों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि प्रथम दृष्टया जांच को रोकना उचित होगा, राज्य सरकार को जांच पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया। मामला अब बारह सप्ताह बाद अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया।
केस टाइटल: बिरेंद्र कुमार तिवारी बनाम राजश्री बनर्जी