[मोटर दुर्घटना] साक्ष्य का खंडन करने में विफल रहने पर बीमाकर्ता के विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जा सकता है: झारखंड हाईकोर्ट ने 11.45 लाख मुआवजा बरकरार रखा
झारखंड हाईकोर्ट ने घातक मोटरसाइकिल दुर्घटना में लगी चोटों के कारण दम तोड़ने वाले बढ़ई की विधवा को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) धनबाद द्वारा दिए गए 11,45,932 रुपए के मुआवजे को बरकरार रखा।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बीमा कंपनी द्वारा मुख्य गवाहों को बुलाने या दावेदारों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य का खंडन करने में विफल रहने के परिणामस्वरूप उसके विरुद्ध प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला गया,जो साक्ष्य कानून के स्थापित सिद्धांतों और मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत बीमाकर्ता की देयता की पुष्टि करता है।
जस्टिस सुभाष चंद ने मामले की अध्यक्षता करते हुए कहा,
“जांच पूरी करने के बाद जांच अधिकारी ने आरोप-पत्र भी दाखिल किया, जो रिकॉर्ड में भी है और यह आरोप-पत्र अपराधी मोटरसाइकिल के चालक मुख्तार अंसारी के विरुद्ध उसी अपराध संख्या में दाखिल किया गया। इसी आरोप-पत्र में मोहम्मद खालिद अशरफ को दुर्घटना का प्रत्यक्षदर्शी भी दिखाया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मौखिक साक्ष्य और FIR संस्करण की पुष्टि करती है।"
जस्टिस चंद ने कहा,
"बीमा कंपनी की ओर से इस साक्ष्य का खंडन करने के लिए कोई भी विपरीत साक्ष्य मौखिक या दस्तावेजी रूप से प्रस्तुत नहीं किया गया।"
उपरोक्त निर्णय ICICI लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस द्वारा दायर एक विविध अपील में आया। मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार मृतक इजारत अंसारी को मोटरसाइकिल ने तेजी से और लापरवाही से चलाया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं और उसकी मृत्यु हो गई। अंसारी एक बढ़ई था जो प्रतिदिन 700 कमाता था उसकी पत्नी जीवित थी, जिसने दावा याचिका दायर की। मोटरसाइकिल के मालिक की ओर से लिखित बयान दायर किया गया, जिसमें उसने किसी भी तरह की तेज या लापरवाही से ड्राइविंग से इनकार किया, जिसमें कहा गया कि मोटरसाइकिल एक वैध और प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस के साथ संचालित की गई। यह भी तर्क दिया गया कि यदि कोई देयता है तो उसे बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाना चाहिए।
बीमाकर्ता ने लिखित बयान भी दाखिल किया, जिसमें तर्क दिया गया कि सबूत पेश करने का भार दावेदारों और वाहन मालिक पर है। पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन करने पर बीमाकर्ता को दायित्व से मुक्त कर दिया जाएगा।
ट्रिब्यूनल ने साक्ष्य के आधार पर बीमा कंपनी को उत्तरदायी मानते हुए दावेदारों को 7.5% ब्याज के साथ 11,45,932 रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।
ट्रिब्यूनल के फैसले से व्यथित होकर बीमाकर्ता ICICI लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस ने हाईकोर्ट के समक्ष अपील दायर की जिसमें तर्क दिया गया कि दुर्घटना मोटरसाइकिल के कारण नहीं बल्कि बस के कारण हुई, जैसा कि जांच रिपोर्ट में सुझाया गया। बीमा कंपनी ने यह भी आरोप लगाया कि ट्रिब्यूनल ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया और गलत तरीके से उस पर दायित्व थोप दिया।
अपील का विरोध करते हुए दावेदारों और मोटरसाइकिल मालिक ने ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों का बचाव किया। ट्रिब्यूनल ने निष्कर्ष निकाला कि दुर्घटना अपराधी मोटरसाइकिल की तेज और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुई, जिसे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा,
“बीमा कंपनी की ओर से न तो कोई विपरीत साक्ष्य प्रस्तुत करने में लापरवाही बरती गई और न ही गोविंदपुर पी.एस. केस संख्या 05/2022 के जांच अधिकारी को बुलाने के लिए कोई आवेदन किया गया। इसलिए बीमा कंपनी के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाएगा, जबकि दावेदार द्वारा प्रस्तुत अभिलेख पर दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य से यह तथ्य अच्छी तरह से साबित होता है कि उक्त दुर्घटना अपराधी मोटरसाइकिल संख्या JH-10BQ9650 के कारण हुई थी।”
न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि दुर्घटना अपराधी वाहन के तेज और लापरवाही से चलाने के कारण हुई तथा दावेदार के पक्ष में और मालिक और बीमा कंपनी के खिलाफ फैसला सुनाया, जिसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी। उसी के मद्देनजर न्यायालय ने ट्रिब्यूनल द्वारा पारित अवार्ड बरकरार रखते हुए अपील खारिज की।
केस टाइटल: लीगल मैनेजर, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सुंदरी बीबी और अन्य