प्रतिवादी लिखित बयान दाखिल किए बिना CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत वाद खारिज करने की मांग कर सकता है: हाईकोर्ट

Update: 2024-10-25 08:56 GMT

संपत्ति टाइटल विवाद की सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार मुकदमा शुरू होने और नोटिस जारी होने के बाद प्रतिवादी को CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत वाद खारिज करने की मांग करने का अधिकार है भले ही लिखित बयान दाखिल न किया गया हो।

ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी का वाद खारिज करने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश तथ्यों और कानून दोनों के आधार पर गलत था।

जस्टिस सुभाष चंद की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"एक बार मुकदमा शुरू हो जाने और उसे पंजीकृत कर लिए जाने तथा प्रतिवादी को नोटिस जारी कर दिए जाने के बाद प्रतिवादी को लिखित बयान दाखिल किए बिना भी CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत शिकायत खारिज करने के लिए आवेदन करने का अधिकार है।"

यह आदेश याचिकाकर्ता-प्रतिवादियों द्वारा दायर याचिका में पारित किया गया, जिसमें सिविल जज बोकारो के आदेश को चुनौती दी गई। इसमें प्रतिवादी की शिकायत खारिज करने के लिए CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत उनकी याचिका खारिज कर दी गई।

प्रतिवादी-वादी गौर बरन ओझा ने याचिकाकर्ता प्रतिवादियों ज्योत्सना मिश्रा और सुजीत कुमार मिश्रा के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसमें प्रतिकूल कब्जे के आधार पर संपत्ति पर उनके स्वामित्व की घोषणा की मांग की गई। इस प्राथमिक राहत के साथ प्रतिवादी-वादी ने दो अतिरिक्त उपायों की मांग की।

मुकदमा ट्रायल कोर्ट द्वारा पंजीकृत किया गया, जिसने सिरस्टेडर (प्रशासनिक अधिकारी) से रिपोर्ट भी मांगी थी। याचिकाकर्ता-प्रतिवादियों द्वारा अपना लिखित बयान प्रस्तुत करने के पश्चात उन्होंने आदेश 7 नियम 11-डी CPC के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें वाद को खारिज करने की मांग की गई, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता-प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वामित्व की घोषणा और निषेधाज्ञा के लिए वाद प्रतिवादी-वादी द्वारा विधिवत रूप से संस्थित किया गया। ट्रायल कोर्ट द्वारा रजिस्टर किया गया।

निचली अदालत ने याचिकाकर्ता के आदेश 7 नियम 11-डी CPC आवेदन यह कहते हुए खारिज किया कि वाद अभी तक स्वीकार नहीं किया गया, जिससे आवेदन को बनाए रखने योग्य नहीं माना जाता।

ट्रायल कोर्ट के आदेश का अवलोकन करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के आदेश 7 नियम 11डी CPC आवेदन पर ट्रायल कोर्ट द्वारा उसके गुण-दोष के आधार पर निर्णय नहीं लिया गया। बल्कि हाईकोर्ट ने कहा कि आवेदन को इस आधार पर बनाए रखने योग्य नहीं कहा गया कि वाद स्वीकार नहीं किया गया।

हाईकोर्ट ने जोर दिया,

"लेकिन इस मामले में प्रतिवादी की ओर से लिखित बयान पहले ही दाखिल किया जा चुका है। CPC के आदेश 7 नियम 11-डी के तहत आवेदन पूरी तरह से स्वीकार्य है।”

हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि निचली अदालत द्वारा दिए गए तर्क याचिकाकर्ताओं के आवेदन की स्वीकार्यता के संबंध में तथ्य और कानून दोनों के विपरीत थे।

"निचली अदालत द्वारा पारित विवादित आदेश में कमज़ोरी है। इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है। तदनुसार, यह CMP स्वीकार्य होने योग्य है।”

न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए और निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए उक्त निष्कर्ष निकाला।

केस टाइटल: ज्योत्सना मिश्रा और अन्य बनाम गौर बरन ओझा

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