झारखंड हाईकोर्ट ने 'तमरिया' को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दिए जाने के खिलाफ याचिका खारिज की

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में जाति जांच समिति की रिपोर्ट के खिलाफ याचिका खारिज की, जिसके द्वारा 'तमरिया' जाति को मुंडा जाति की उपजाति के रूप में स्वीकार किया गया था और इसे अनुसूचित जनजाति श्रेणी में लाया गया था।
मामला खारिज करते हुए न्यायालय ने माना कि राज्य के एक विभाग द्वारा उसी राज्य के दूसरे विभाग के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
यह याचिका राज्य के प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग द्वारा राज्य के अनुसूचित जनजाति विभाग के सचिव की अध्यक्षता में तैयार की गई उपरोक्त रिपोर्ट के खिलाफ दायर की गई थी।
रिट याचिका में शामिल मौलिक प्रश्न यह था कि 'क्या राज्य के एक विभाग द्वारा राज्य के दूसरे विभाग के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य है?'
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा,
"इस न्यायालय का मानना है कि इस तरह की रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, खासकर तब जब जाति जांच समिति ने यह स्पष्ट निष्कर्ष दिया कि तमरिया मुंडा जाति की उपजाति है। यह एक तथ्य का निष्कर्ष है, जिसे रिट अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में नहीं देखा जा सकता। यदि राज्य को लगता है कि तथ्य का उक्त निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण है तो वह इस मामले के संबंध में घोषणात्मक वाद दायर कर सकता है।"
यह मामला तब सामने आया, जब प्रतिवादी कानू राम नाग को सेकेंड JPSC एग्जाम के माध्यम से अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट के विरुद्ध उप निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया, जिन्होंने खुद को मुंडा जाति से संबंधित बताया। इस संबंध में लालजी राम तियू नामक व्यक्ति ने पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त और अनुसूचित जनजाति आयोग, रांची के जांच अधिकारी को 2013 में शिकायत की। इसके बाद पश्चिमी सिंहभूम, चाईबासा के उपायुक्त ने जांच रिपोर्ट मांगी और मामला आखिरकार जाति जांच समिति के पास गया। समिति ने 2016 में अपनी रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में कहा गया कि तमरिया मुंडा की उपजाति है। इसलिए यह अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आती है। इसके बाद रिपोर्ट को रिट याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
याचिका स्थायीता के संबंध में यह तर्क दिया गया कि राज्य केवल औपचारिक पक्ष है, क्योंकि रिपोर्ट पर राज्य द्वारा हस्ताक्षर किए गए। रिट याचिका में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या तमरिया जाति से संबंधित कानू राम को अनुसूचित जनजाति के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?
विभाग ने बताया कि हालांकि जाति छानबीन समिति ने अपनी रिपोर्ट में कानू राम नाग यानी तमरिया की जाति को मुंडा जाति की उपजाति पाया था, लेकिन समिति ने इस बारे में कोई निष्कर्ष नहीं दिया कि जाति प्रमाण पत्र वैध है या नहीं। विभाग ने यह भी पाया कि संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, केवल उन्हीं जनजातियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिनका उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 342(1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश द्वारा प्रकाशित सूची में किया गया। अनुसूचित जनजाति आदेश, 1950 में महली और मुंडा को नंबर 1 पर रखा गया। नंबर 22 और 24 के अनुसार, वर्ष 2003 में पातर को उक्त सूची में शामिल किया गया। इसके अलावा, मुंडा, महली और पातर के अलावा मुंडा जाति की कोई अन्य उपजाति भारत के संविधान द्वारा अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है। तदनुसार, कानू राम के जाति प्रमाण पत्र को जाति जांच समिति द्वारा सत्यापित कराने का प्रस्ताव किया गया और समिति ने प्रतिवादी के जाति प्रमाण पत्र की वैधता के संबंध में कोई निष्कर्ष नहीं दिया।
राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि जाति जांच समिति ने उचित जांच के बाद माना है कि सिंहभूम के तमरिया पातर मुंडा हैं। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 342(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा जारी अधिसूचना में शामिल किया गया है। परिणामस्वरूप, रिट याचिका के अनुलग्नक-1 में "पिछड़ा वर्ग" शीर्षक के तहत मद नंबर 52 और "अत्यंत पिछड़ा वर्ग" शीर्षक के तहत मद नंबर 34 में उनके शामिल किए जाने को खारिज किया जाना चाहिए।
पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त द्वारा जांच शुरू की गई, जिसके परिणामस्वरूप मामला जाति जांच समिति को भेजा गया। इसने 29.02.2016 को रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में कहा गया कि “तमरिया” “मुंडा” की एक उपजाति है।
हालांकि, न्यायालय ने केवल एक राज्य विभाग द्वारा दूसरे के खिलाफ दायर रिट याचिका की कानूनी स्थिरता पर ध्यान केंद्रित किया और रिट याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि सक्षम समितियों द्वारा किए गए तथ्यात्मक निर्धारण में रिट क्षेत्राधिकार के तहत हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। तदनुसार, रिट याचिका खारिज की जाती है।
केस टाइटल: झारखंड राज्य बनाम झारखंड राज्य