राज्य ने कहा, बांग्लादेशियों की घुसपैठ नहीं हुई, लेकिन कुछ क्षेत्रों में जनजातीय आबादी में कमी के कारणों पर चुप्पी साधी गई: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-08-26 06:21 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय आबादी में गिरावट के बारे में राज्य के अधिकारियों द्वारा हलफनामों में चुप्पी साधे रखने पर निराशा व्यक्त की। यह टिप्पणी क्षेत्र में बांग्लादेश से कथित अवैध अप्रवास को उजागर करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए पारित किए गए न्यायालय के आदेश में की गई।

एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ दानियाल दानिश द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दावा किया गया कि छह जिलों - गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर (संथाल परगना क्षेत्र में) में विदेशियों की बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो रही है जो मुख्य रूप से बांग्लादेश से आ रहे हैं।

संथाल परगना क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की संख्या में कमी के कारणों पर हलफनामे में कोई जवाब नहीं।

गुरुवार को पारित आदेश में हाईकोर्ट ने कहा,

"संबंधित जिलों यानी गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर के उपायुक्त और एसपी ने हलफनामे दायर किए। इस न्यायालय ने संबंधित जिलों के उपायुक्त की ओर से दायर हलफनामे की विषय-वस्तु पर गौर किया, जिसमें कहा गया कि बांग्लादेशी प्रवासियों की कोई घुसपैठ नहीं हुई लेकिन संबंधित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों की संख्या में कमी के कारण के संबंध में कोई संदर्भ नहीं है।”

खंडपीठ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा पिछली सुनवाई में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार,

"क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में वर्ष 1951 में 44.67% से वर्ष 2011 में 28.11% की कमी को हाईकोर्ट ने अपने 8 अगस्त के आदेश में संज्ञान में लिया था।

हाईकोर्ट ने रेखांकित किया,

हालांकि बहुत आश्चर्यजनक रूप से इस पहलू पर कोई जवाब नहीं दिया गया और संबंधित क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या में कमी के संबंध में कोई प्रासंगिक डेटा प्रस्तुत नहीं किया गया, जिस पर प्रतिवादी-राज्य द्वारा जवाब दिए जाने की आवश्यकता है।

यह देखते हुए कि आदिवासी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशिष्ट कानून बनाए जाने के बावजूद हलफनामा स्थिति को ठीक से स्पष्ट करने में विफल रहा, हाईकोर्ट ने आगे कहा,

"यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि इस स्थिति को स्पष्ट किए बिना ऐसा हलफनामा कैसे दायर किया गया कि जब संथाल परगना क्षेत्र के आदिवासी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए किरायेदारी कानून है, जिसे वर्ष 1872 से संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम के रूप में जाना जाता है। इसे वर्ष 1949 में पूरक बनाया गया, जिसमें भूमि के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए विशिष्ट प्रावधान किए गए।”

संदर्भ के लिए संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम 1872 ब्रिटिश कानून था (स्वतंत्रता के बाद संथाल परगना किरायेदारी [पूरक प्रावधान] अधिनियम 1949 के साथ पूरक), जिसका उद्देश्य संथाल परगना क्षेत्र में आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करना था जिससे आदिवासी समुदाय के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई।

मामले को 5 सितंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि इस पहलू पर राज्य के संबंधित विभाग द्वारा अगली सुनवाई की तारीख पर या उससे पहले इस संबंध में विशिष्ट हलफनामा मांगा जाए।

BSF का विस्तार का अनुरोध खारिज किया गया

हाईकोर्ट ने BSF और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा दायर दो अंतरिम आवेदनों को संबोधित किया।

BSF द्वारा प्रस्तुत पहले अंतरिम आवेदन में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए आवश्यक बड़ी मात्रा में डेटा को संकलित और सत्यापित करने के लिए चार सप्ताह का विस्तार मांगा गया था। BSF ने तर्क दिया कि यह विस्तार आवश्यक था क्योंकि डेटा को विभिन्न क्षेत्रीय संरचनाओं से एकत्र किया जाना था। बाद में BSF के महानिदेशक (DG) द्वारा अनुमोदित किया जाना था।

हालांकि हाईकोर्ट ने कहा,

"यह न्यायालय मांगी गई राहत की प्रकृति पर विचार करते हुए, जो जनसांख्यिकी में परिवर्तन और अवैध प्रवासियों के कारण अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या में उल्लेखनीय कमी से संबंधित है, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने बाहरी आक्रमण माना है, उसका विचार है कि छह सप्ताह का समय मांगना न्यायसंगत और उचित नहीं है। तदनुसार विस्तार के लिए BSF के अनुरोध को खारिज कर दिया।

UIDAI के अतिरिक्त समय का अनुरोध भी अस्वीकार कर दिया गया

इसके बाद न्यायालय ने UIDAI द्वारा दायर दूसरे अंतरिम आवेदन पर विचार किया, जिसमें गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर जिलों में आधार नामांकन से संबंधित सांख्यिकीय डेटा और ग्राफ़ एकत्र करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगा गया था। UIDAI ने दावा किया कि डेटा को बेंगलुरु में अपने प्रौद्योगिकी केंद्र और मानेसर में डेटा केंद्र से प्राप्त करने की आवश्यकता है।

हालांकि न्यायालय ने कहा,

"यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि UIDAI का अपना ऑनलाइन नेटवर्क है और आधार कार्ड बनाने के लिए सभी डेटा, जो इसे प्राप्त करने के हकदार हैं, पहले से ही सिस्टम में मौजूद हैं, फिर बेंगलुरु में प्रौद्योगिकी केंद्र/मानेसर में डेटा केंद्र से डेटा प्राप्त करने के लिए छह सप्ताह का समय मांगने का क्या कारण है।"

न्यायालय ने कहा,

"इस मामले की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, जो वर्तमान जनहित याचिका का विषय है, छह सप्ताह के समय के विस्तार के लिए जो हलफनामा दायर किया गया, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया तथा इसके परिणामस्वरूप, यूआईडीएआई का आवेदन खारिज करते हुए इसे न तो "न्यायसंगत और न ही उचित" माना।

न्यायालय ने BSF और UIDAI दोनों को अगली सुनवाई की तारीख से पहले अपने हलफनामे प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

अपने 8 अगस्त के आदेश में याचिकाकर्ता द्वारा राज्य के जनसांख्यिकीय सेट-विशेष रूप से संथाल परगना क्षेत्र (जनगणना 1951-2011 के अनुसार) पर प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ पर ध्यान दिया गया। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि संथाल परगना क्षेत्र में जनजातीय आबादी का प्रतिशत काफी कम हुआ है - 1951 में 44.67% से 2011 में 28.11%, जबकि मुस्लिम आबादी कई गुना बढ़ गई है - 1951 में कुल आबादी का 9.44% से 2011 में 22.73% हो गई।

चार्ट और डेटा का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तब तर्क दिया,

"घुसपैठ, अवैध आव्रजन आदि के कारण झारखंड विशेष रूप से संथाल परगना क्षेत्र की जनसांख्यिकी संरचना तेजी से बदल रही है।"

उन्होंने कहा कि यदि संथाल परगना क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति की आबादी कम हो जाती है तो "झारखंड राज्य विशेष रूप से आदिवासी समुदाय का हित खतरे में पड़ जाएगा"।

हाईकोर्ट ने अपने 8 अगस्त के आदेश में "राज्य से आदिवासी समुदाय के विलुप्त होने" पर ध्यान दिया, जिसके लिए झारखंड राज्य उनके हितों की रक्षा के लिए बनाया गया।

याचिकाकर्ता की दलील पर राज्य से जवाब मांगते हुए पीठ ने कहा था,

"यह न्यायालय उपरोक्त तथ्य पर विचार करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि राज्य को भी इस पर जवाब देना चाहिए। यदि ऐसा है तो यह मामला बहुत गंभीर प्रतीत होता है अवैध प्रवासियों के मुद्दे के अलावा यह राज्य से आदिवासी समुदाय को खत्म करने का सवाल है, जिसके हितों की रक्षा के लिए झारखंड राज्य बनाया गया और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए झारखंड राज्य में किरायेदारी कानून बनाया गया, यानी संथाल परगना क्षेत्र में संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम 1949 और छोटानागपुर क्षेत्र में छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम 1908।”

हाईकोर्ट ने संबंधित जिलों के उपायुक्तों को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का निर्देश दिया कि राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड या बी.पी.एल. कार्ड आदि जैसे दस्तावेज अधिकारों के रिकॉर्ड को सत्यापित करने के बाद ही जारी किए जाएं।

संदर्भ के लिए अधिकार का रिकॉर्ड दस्तावेज है, जिसमें भूमि और उसके स्वामित्व का विवरण होता है।

केस टाइटल- दानयाल दानिश बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

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