अगर कार में शुरू से ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट हो तो ग्राहक को उसे बदलने का हक: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल में एक फैसले में कहा कि अगर एक कार में शुरू से ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट है तो ग्राहक उसे बदलने का हकदार है।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने टूट-फूट की समस्याओं के लिए मरम्मत और मैन्यूफैक्चरिं की अंतर्निहित गड़बड़ियों के कारण रिप्लेसमेंट के बीच अंतर पर पर चर्चा करते हुए कहा, "अगर उपयोग के दरमियान खरीदे गए वाहनों में कोई तकनीकी खराबी हो तो मरम्मत की मांग की जा सकती है, न कि जहां वाहन में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट हो।"
मामले में जम्मू निवासी रमेश चंद्र शर्मा ने पठानकोट व्हीकलएड्स प्राइवेट लिमिटेड से मारुति 800 कार खरीदी। खरीद के तुरंत बाद, शर्मा ने कार में तकनीकी खराबी की शिकायत की। समस्या को सुलझाने के बार-बार प्रयास के बावजूद, डीलरशिप ने कथित तौर पर उचित निरीक्षण में देरी की। अंततः यह तय किया गया कि कार के इंजन में मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट था।
शर्मा ने जम्मू में डिविजनल उपभोक्ता फोरम के समक्ष एक उपभोक्ता शिकायत दायर की, जिसमें दोषपूर्ण वाहन को नए वाहन से बदलने की मांग की गई। डीलरशिप और मारुति सुजुकी ने दावे का विरोध करते हुए तर्क दिया कि दोष मामूली था और मरम्मत के माध्यम से इसे ठीक किया जा सकता था। हालांकि, फोरम ने सबूतों की जांच करने के बाद माना कि कार में शुरू से ही मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट था और इसलिए डीलरशिप को निर्देश दिया गया कि या तो वाहन को बदल दिया जाए या प्रति वर्ष 9% ब्याज के साथ 1,94,195.60 रुपये की खरीद राशि वापस कर दी जाए।
मारुति सुजुकी ने राज्य उपभोक्ता आयोग के समक्ष इस आदेश का विरोध किया, जिसने अंततः दो कारणों से अपील को खारिज कर दिया। पहला यह कि यह सीमा अवधि से परे दायर किया गया था, और इसके साथ दी गई राशि का 1/4 हिस्से को प्री-डिपॉजिट करने की अनिवार्यता नहीं थी।
हाईकोर्ट ने फैसले में राज्य आयोग के फैसले को बरकरार रखते हुए इस बात पर जोर दिया कि अपील दायर करने के लिए प्री-डिपॉजिट की आवश्यकता आवश्यक है और कहा, "आयुक्त द्वारा द्वारा अपील पर विचार करने के लिए निर्धारित अवधि के भीतर अपील के साथ प्री-डिपॉजिट अनिवार्य है"।
इसके अलावा, न्यायालय ने डिविजनल फोरम द्वारा पारित आदेश की सावधानीपूर्वक जांच की और उनमें कोई कानूनी खामियां नहीं पाईं। न्यायालय ने उपयोग के दरमियान टूट-फूट से पैदा होने वाले तकनीकी दोषों, जिनकी मरम्मत की आवश्यकता हो सकती है, और शुरुआत से ही मौजूद मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्टों के बीच अंतर किया।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मैन्यूफैक्चरिंग डिफेक्ट वाहन को उसके इच्छित उद्देश्य के लिए अनुपयुक्त बना देता है और मरम्मत की नहीं, बल्कि प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार इसने मारुति सुजुकी की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हस्तक्षेप के लिए कोई कानूनी आधार नहीं है।
केस टाइटल: मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड बनाम रमेश चंदर शर्मा और अन्य।