नाम बदलने का अधिकार मौलिक अधिकार, बोर्ड वैधानिक दस्तावेजों को अनदेखा कर अनुरोध खारिज नहीं कर सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी व्यक्ति को अपना नाम बदलने या अपनाने का अधिकार संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षा बोर्ड वैधानिक दस्तावेजों पर विचार किए बिना मनमाने ढंग से ऐसे अनुरोधों को खारिज नहीं कर सकता।
जस्टिस संजय धर की पीठ मोहम्मद हसन (पहले राज वली) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने बोर्ड द्वारा जारी उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसके हाई स्कूल और इंटरमीडिएट प्रमाणपत्रों में नाम बदलने के उसके अनुरोध को खारिज कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि नाम या उपनाम जैसे विवरणों को बदलने के अनुरोधों को शैक्षिक रिकॉर्ड में सुधार के मामलों से अलग देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि बोर्ड का यह फैसला टिकाऊ नहीं है, क्योंकि उसने याचिकाकर्ता के वैधानिक दस्तावेजों, जैसे आधार, पैन, पासपोर्ट, और राजपत्र अधिसूचना पर ध्यान नहीं दिया, जिनमें उसका नया नाम दर्ज है।
याचिकाकर्ता ने बताया कि उसका मूल नाम राज वली था, जिससे उसके दोस्त उसका मजाक उड़ाते थे। बचपन में माता-पिता की आपत्ति के कारण वह अपना नाम नहीं बदल सका। ग्रेजुएट पूरा करने के बाद उसने कानूनी रूप से अपना नाम बदलकर मोहम्मद हसन कर लिया। भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने 15 अप्रैल, 2023 को एक राजपत्र अधिसूचना प्रकाशित कर इस नाम परिवर्तन को दर्ज किया। इसके बाद उसके सभी आधिकारिक दस्तावेजों में नया नाम अपडेट हो गया।
इन कानूनी बदलावों के बावजूद बोर्ड ने उसके शैक्षिक प्रमाणपत्रों में नाम बदलने का अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट ने बोर्ड का आदेश रद्द किया और उसे याचिकाकर्ता के दावे पर कानून के अनुसार फिर से विचार करने का निर्देश दिया। यदि उसका दावा वैध पाया जाता है तो बोर्ड को राज वली उर्फ मोहम्मद हसन के नाम से नए प्रमाणपत्र/अंक-पत्र जारी करने का आदेश दिया गया।
कोर्ट ने जिग्या यादव बनाम सीबीएसई मामले का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि आधार, पैन, पासपोर्ट और राजपत्र अधिसूचना जैसे वैधानिक दस्तावेजों पर ऐसे अनुरोधों से निपटते समय ध्यान दिया जाना चाहिए।