DV Act मामलों में समन के बाद गैर-हाजिरी पर वारंट जारी नहीं कर सकते मजिस्ट्रेट: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (DV Act) की धारा 12 के तहत चलने वाली कार्यवाही में मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी वारंट जैसे दंडात्मक आदेश जारी नहीं कर सकते, जब तक कि अधिनियम के तहत कोई विशिष्ट दंडनीय अपराध आरोपित न हो।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि प्रतिवादी को विधिवत समन भेजा जा चुका है और वह फिर भी उपस्थित नहीं होता तो मजिस्ट्रेट केवल एक्स-पार्टी कार्यवाही आगे बढ़ा सकते हैं।
जस्टिस संजय धर ने गैर-जमानती वारंट रद्द करते हुए कहा,
“जब प्रतिवादी समन प्राप्त करने के बाद भी अदालत में पेश नहीं होता तो मजिस्ट्रेट के पास केवल एक्स-पार्टी आगे बढ़ने का विकल्प है, न कि उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए वारंट जारी करने का।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका शाहज़िया शाह द्वारा दायर घरेलू हिंसा आवेदन से उत्पन्न हुई थी, जिसे गांदरबल के एडिशनल मोबाइल मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किया गया था। उनके पति रिज़वान यूसुफ़ काज़ी समन की सेवा के बावजूद अदालत में उपस्थित नहीं हुए। इसके बावजूद मजिस्ट्रेट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया, जिसे काज़ी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
काज़ी ने यह भी आरोप लगाया कि ट्रायल कोर्ट न तो मामले को मध्यस्थता के लिए भेज रही थी और न ही उनके बचाव के लिए आवश्यक आदेशों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध करा रही थी।
न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर आवेदन एक फौजदारी शिकायत नहीं होती और कार्यवाही का स्वरूप अर्ध-फौजदारी (Quasi-Criminal) है। इस अंतर का प्रभाव यह है कि मजिस्ट्रेट बिना किसी अपराध के आरोपित हुए बलपूर्वक उपस्थिति सुनिश्चित करने वाली प्रक्रियाओं का उपयोग नहीं कर सकते।
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा जारी वारंट कानूनन अस्थिर और अवैध है और उसे रद्द किया जाता है।
याचिकाकर्ता की इस शिकायत पर कि ट्रायल कोर्ट ने न तो मध्यस्थता का विकल्प दिया और न ही दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध कराईं, हाईकोर्ट ने कोई विशिष्ट आदेश देने से परहेज़ किया। कोर्ट ने कहा कि ये मुद्दे मजिस्ट्रेट स्वयं कानून के अनुसार देखेंगे।
निर्णय के साथ हाईकोर्ट ने निचली अदालत को याद दिलाया कि घरेलू हिंसा मामलों में अनावश्यक दंडात्मक कार्रवाई न केवल कानून के विपरीत है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है।