65 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा अनुचित नहीं: उचित मूल्य दुकान डीलरों पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का निर्णय
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि उचित मूल्य दुकान (फेयर प्राइस शॉप) संचालकों के लिए 65 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा तय करना न तो अव्यवहारिक है और न ही मनमाना।
न्यायालय ने कहा कि यह सीमा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रभावी संचालन के लिए उचित और व्यावहारिक है।
चीफ जस्टिस अरुण पाली और जस्टिस रजनीश ओसवाल की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि खाद्यान्न वितरण का कार्य शारीरिक श्रम से जुड़ा होता है और सामान्य परिस्थितियों में 65 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति के लिए ऐसे कार्यों को करना कठिन हो जाता है।
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि सरकारी कर्मचारी भी 60 वर्ष की आयु में रिटायर हो जाते हैं, इसलिए 65 वर्ष की सीमा असंगत नहीं कही जा सकती।
मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला उन याचिकाओं पर आया, जिनमें याचिकाकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा जारी नीति अधिसूचना (SO 41) को चुनौती दी थी। यह नीति 'टार्गेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (कंट्रोल) ऑर्डर, 2015' के तहत जारी की गई थी।
याचिकाकर्ता पूर्व आदेशों के तहत उचित मूल्य दुकान चलाने वाले डीलर थे, जिन्होंने यह तर्क दिया कि नई नीति ने राशन कार्डों की संख्या घटाई नवीनीकरण शुल्क लगाया और अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष तय कर दी।
याचिकाकर्ताओं ने वैध अपेक्षा और वचनबद्ध प्रतिषेध के सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि उनकी दुकानें पुरानी नीति के तहत स्वीकृत हुई थीं, इसलिए नई नीति को उन पर लागू नहीं किया जा सकता।
सरकार का पक्ष और न्यायालय की राय
सरकार ने तर्क दिया कि 'टार्गेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (कंट्रोल) ऑर्डर, 2015' ने पूर्व की सभी नीतियों और आदेशों को प्रतिस्थापित कर दिया। यह नीति राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अनुरूप और सार्वजनिक हित में जारी की गई ताकि आवश्यक वस्तुओं का वितरण सुचारू रूप से हो सके।
रिकॉर्ड परीक्षण के बाद
न्यायालय ने पाया कि यह नीति केंद्रीय सरकार द्वारा खाद्यान्न वितरण और आपूर्ति व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए बनाई गई थी। न्यायालय ने कहा कि उचित मूल्य दुकान प्रणाली राज्य की एक कल्याणकारी पहल है, जिसका उद्देश्य रोजगार सृजन नहीं बल्कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू रूप से चलाना है।
न्यायालय का निष्कर्ष
न्यायालय ने कहा कि जब किसी नीति का उद्देश्य सार्वजनिक हित से जुड़ा हो तो कुछ व्यक्तियों के निजी अधिकारों पर सार्वजनिक हित को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वैध अपेक्षा और वचनबद्ध प्रतिषेध के सिद्धांत तब लागू नहीं होते जब व्यापक जनहित उससे प्रभावित हो।
खंडपीठ ने यह भी रेखांकित किया कि अधिसूचना की धारा 23 में यह व्यवस्था दी गई कि 65 वर्ष की आयु पूरी करने वाले डीलर का लाइसेंस उसके पात्र आश्रित को स्थानांतरित किया जा सकता है। इसलिए यह प्रावधान आजीविका से वंचित करने वाला नहीं है।
अंततः न्यायालय ने सभी याचिकाएँ खारिज करते हुए कहा कि सरकार द्वारा जारी नीति वैध और तर्कसंगत है। न्यायालय ने राशन कार्डों के युक्तिकरण, नवीनीकरण शुल्क और 65 वर्ष की आयु सीमा से संबंधित प्रावधानों को संवैधानिक और उचित ठहराया तथा कहा कि इन पर न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।