पाकिस्तान की नागरिकता स्वेच्छा से लेने पर भारतीय नागरिकता समाप्त: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने निर्वासन आदेश सही ठहराया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने 34 साल पुरानी रिट पिटीशन खारिज करते हुए कहा कि याचियों ने अपनी इच्छा से विदेशी नागरिकता हासिल की है। उनके पासपोर्ट और उनके पक्ष में जारी रेजिडेंशियल परमिट इस तथ्य के ठोस और स्पष्ट प्रमाण हैं कि याचिकाकर्ता भारत के नागरिक नहीं हैं इसलिए उनका निर्वासन आदेश वैध है।
जस्टिस सिंधु शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ जारी निर्वासन आदेशों में किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि न पाते हुए उनकी याचिका खारिज की। यह याचिकाकर्ता पिछले तीन दशकों से श्रीनगर में न्यायिक स्थगन आदेश के आधार पर रह रहे थे।
कोर्ट ने कहा,
“याचिकाकर्ता इस कोर्ट द्वारा 25.04.1990 को जारी स्थगन आदेश के आधार पर श्रीनगर में रह रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने 1955 के नागरिकता अधिनियम की धारा 9 के तहत स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त की और अपने दर्जे से अवगत रहते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवेश किया।”
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता 1990 में हाईकोर्ट पहुंचे थे और गृह विभाग द्वारा जारी निर्वासन आदेशों को अवैध व असंवैधानिक घोषित करने और उन्हें भारतीय क्षेत्र से हटाने से रोकने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता संख्या 1 का जन्म 1945 में श्रीनगर में हुआ था लेकिन 1948 के युद्ध के दौरान वे पाकिस्तान में फंस गए और अंततः पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त कर ली।
याचिकाकर्ता संख्या 2 का जन्म 1962 में श्रीनगर में हुआ था और वह 1986 में रावलपिंडी में याचिकाकर्ता संख्या 1 से विवाह के बाद पाकिस्तानी नागरिक बन गईं। दोनों 1988 में वैध पाकिस्तानी पासपोर्ट पर भारत आए और श्रीनगर में रेजिडेंशियल परमिट हासिल किया। उनकी वीजा अवधि नवंबर 1988 तक बढ़ाई गई थी लेकिन इसके बाद उनके निवास और नागरिकता के अनुरोध खारिज कर दिए गए और 13 सितंबर, 1989 को निर्वासन आदेश जारी हुआ।
याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट मोहम्मद अल्ताफ खान ने तर्क दिया कि वे ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण अनजाने में पाकिस्तानी नागरिक बने और उनका जन्म व पारिवारिक जड़ें श्रीनगर में हैं। इसलिए उन्हें भारतीय नागरिकता और निर्वासन से संरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने इसे अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया।
वहीं सीनियर एएजी मोसिन कादरी और डीएसजीआई टीएम शम्सी ने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं ने स्वेच्छा से पाकिस्तानी नागरिकता ली और भारतीय नागरिकता अधिनियम की धारा 9(1) के तहत यह उनकी भारतीय नागरिकता समाप्त होने का कारण बना।
कोर्ट के मुख्य अवलोकन:
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारतीय नागरिकता की वैध रूप से कोई दावा नहीं प्रस्तुत किया और न ही कोई उचित आवेदन किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं के पत्र बिना किसी सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति के थे और इससे कोई कानूनी अधिकार सिद्ध नहीं होता।
आगे कोर्ट ने कहा,
“स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त करने से भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है। याचिकाकर्ता भारतीय नागरिक नहीं हैं और उनके निर्वासन आदेश पूरी तरह वैध हैं।”
इस प्रकार कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
टाइटल: मोहम्मद खलील काजी बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य