POCSO Act | धारा 34 स्पेशल कोर्ट को अपराधी और पीड़िता दोनों की आयु निर्धारित करने का अधिकार देती है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट (POCSO Act) के तहत स्पेशल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष न्यायालय न केवल आरोपी की बल्कि पीड़िता की आयु निर्धारित करने का भी अधिकार रखता है।
जस्टिस संजय धर ने मामले को नए सिरे से अभियोजन पक्ष की आयु की जांच के लिए ट्रायल कोर्ट को लौटाते हुए टिप्पणी की,
"POCSO Act की धारा 34 विशेष न्यायालय को केवल अपराधी की आयु ही नहीं बल्कि पीड़िता की आयु निर्धारित करने का भी अधिकार प्रदान करती है।"
यह मामला 2019 में दर्ज FIR से उत्पन्न हुआ, जिसमें एक युवती ने आरोप लगाया कि त्सेवांग थिनलेस जो लद्दाख बौद्ध संघ (LBA) के अध्यक्ष हैं, उन्होंने उसके घर और कार्यालय सहित कई स्थानों पर उसके साथ यौन शोषण किया। पीड़िता ने दावा किया कि वह अपनी बीमार मां की देखभाल करते हुए असहाय थी। आरोपी से मदद मांगने गई लेकिन उसकी असहायता का फायदा उठाकर उसका शोषण किया गया।
इसके बाद आरोपी के खिलाफ RPC की धारा 354, 354-A और POCSO Act की धारा 9(l)/10 के तहत FIR दर्ज हुई। जांच के दौरान थिनलेस फरार हो गए, जिसके चलते सामान्य गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए।
बाद में उन्हें अग्रिम जमानत मिली थी लेकिन ट्रायल कोर्ट ने स्कूल प्रमाणपत्र के आधार पर पीड़िता की आयु 18 वर्ष से कम पाई और जमानत रद्द कर दी।
थिनलेस ने यह कहते हुए चुनौती दी कि पीड़िता 18 वर्ष से अधिक थी, क्योंकि 2005 के एक पुराने पुलिस चालान में उसकी आयु अलग दर्ज थी।
जस्टिस धर ने एक्ट की धारा धारा 34 का विश्लेषण करते हुए कहा कि यह अपराधी और पीड़िता दोनों की आयु निर्धारण को कवर करती है। एक्ट की धारा धारा 34(1) किशोर अपराधियों के लिए है, जबकि 34(2) व्यापक है। इसमें जब भी आयु पर विवाद उठे स्पेशल कोर्ट को उसे तय करने का अधिकार है, चाहे वह जमानत जांच या ट्रायल के किसी भी चरण में हो।
कोर्ट ने मणिपुर हाईकोर्ट के Longjam Pinky Singh बनाम स्टेट ऑफ मणिपुर (2018 CriLJ 1673) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि पीड़िता की आयु निर्धारण भी धारा 34(2) के तहत आता है और यह आरोप तय करने से पहले भी किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के पी. युवाप्रकाश बनाम राज्य (AIR 2023 SC 3525) के निर्णय का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की आयु विवाद होने पर किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की धारा 94 में बताई गई प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है, जिसमें पहले स्कूल/मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र फिर नगर निगम का जन्म प्रमाणपत्र और फिर मेडिकल टेस्ट को मान्यता दी जाती है।
जस्टिस धर ने ट्रायल कोर्ट की इस गलती को उजागर किया कि उसने केवल जवाहर नवोदय विद्यालय लेह द्वारा जारी स्कूल प्रमाणपत्र (जन्मतिथि 05.02.2002) के आधार पर बिना रिकॉर्ड मंगाए और स्कूल अधिकारियों से पूछताछ किए फैसला सुना दिया।
जबकि याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 2005 के एक पुराने केस में पीड़िता की आयु 5 वर्ष दर्ज थी, जिससे उसकी जन्मतिथि 05.02.2000 बनती है। ट्रायल कोर्ट ने इस पुराने रिकॉर्ड को उचित जांच के बिना खारिज कर दिया था।
कोर्ट ने कहा,
"यह आवश्यक है कि ट्रायल कोर्ट संबंधित स्कूल का रिकॉर्ड बुलवाता और रिकॉर्ड कीपर्स से पूछताछ कर यह सुनिश्चित करता कि प्रमाणपत्र में दर्ज जन्मतिथि किस आधार पर दर्ज की गई।"
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि आरोप गंभीर हैं, जिसमें पीड़िता का बार-बार यौन शोषण पद का दुरुपयोग और एक असहाय लड़की का शोषण शामिल है। साथ ही याचिकाकर्ता पहले भी फरार रहा है और साक्ष्य या पीड़िता को प्रभावित कर सकता है।
कोर्ट ने कहा,
"भले ही पीड़िता की आयु लगभग 18 वर्ष हो तथापि आरोपी की उम्र लगभग 50 वर्ष थी और उसने एक असहाय लड़की की स्थिति का अनुचित लाभ उठाया। यह किशोरों के बीच गलतफहमी का मामला नहीं बल्कि उच्च पदाधिकारी द्वारा असहाय लड़की के शोषण का मामला प्रतीत होता है।"
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई पीड़िता की आयु निर्धारण को निरस्त करते हुए उसे नए सिरे से जांच करने और संबंधित रिकॉर्ड व गवाहों को तलब करने का निर्देश दिया।
साथ ही याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया कि वह ट्रायल के दौरान पीड़िता का बयान दर्ज होने के बाद पुनः जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
टाइटल: त्सेवांग थिनलेस बनाम लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश