बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामी को यह साबित करना होगा कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-06-27 09:23 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यह साबित करने का भार कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामियों पर है।

जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि जब तक भूमि मालिक उन पर डाले गए बोझ का निर्वहन करने में विफल रहते हैं, तब तक संदर्भ न्यायालय द्वारा कोई वृद्धि देने का कोई सवाल ही नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला 1997 में अधिसूचित क्षेत्र समिति कुपवाड़ा के कार्य से उत्पन्न हुआ, जब इसने टाउन हॉल परियोजना के लिए कुपवाड़ा में भूमि अधिग्रहण शुरू किया। कलेक्टर ने बाजार मूल्य 80,000 रुपये प्रति कनाल निर्धारित किया। प्रतिवादी खजीर मोहम्मद मलिक और अन्य भूस्वामियों ने मुआवजे से असंतुष्ट होकर कलेक्टर के समक्ष जम्मू-कश्मीर भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 18 के तहत आवेदन दायर किया। यह धारा भूस्वामियों को जिला न्यायाधीश (संदर्भ न्यायालय) के समक्ष संदर्भ का अनुरोध करके कलेक्टर के फैसले को चुनौती देने की अनुमति देती है।

संदर्भ न्यायालय ने दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्तुत तर्कों पर विचार किया। अधिसूचित क्षेत्र समिति ने तर्क दिया कि भूस्वामियों के पास उच्च बाजार मूल्य के अपने दावे का समर्थन करने के लिए सबूतों की कमी है। इसके विपरीत, भूस्वामियों ने तर्क दिया कि उनकी भूमि का वाणिज्यिक मूल्य है और इसके लिए अधिक मुआवजा मिलना चाहिए।

न्यायालय ने अपने फैसले में स्वीकार किया कि भूस्वामियों ने उच्च बाजार मूल्य स्थापित नहीं किया। हालांकि, इसने मुआवजे की राशि बढ़ाने की कार्यवाही जारी रखी। अधिसूचित क्षेत्र समिति ने संदर्भ न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि वृद्धि अनुचित थी, क्योंकि भूस्वामियों ने अपने दावे को पुष्ट नहीं किया।

उन्होंने न्यायालय के निर्णय में विसंगति की ओर ध्यान दिलाया, जिसमें साक्ष्य की कमी को स्वीकार किया गया था लेकिन फिर भी मुआवज़ा बढ़ा दिया गया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

जस्टिस धर ने मामले की बारीकी से जांच करते हुए संदर्भ न्यायालय के निर्णय में विसंगति को उजागर किया और बताया कि न्यायालय ने भूस्वामियों के साक्ष्य की कमी को स्वीकार करते हुए अधिक मुआवज़ा दिया।

जस्टिस धर ने सुप्रीम कोर्ट के भूमि अधिग्रहण अधिकारी बनाम सिदपा ओमन्ना तुमारी (1995) और मेजर पाखर सिंह अटवाल बनाम पंजाब राज्य (1995) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए स्थापित कानूनी सिद्धांत पर दृढ़ता से जोर दिया जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया कि कलेक्टर द्वारा अपर्याप्त बाजार मूल्य निर्धारण को साबित करने का भार बढ़े हुए मुआवज़े की माँग करने वाले भूस्वामी पर है।

भूस्वामियों द्वारा बाजार मूल्य के बारे में उनके दावों के संबंध में प्रस्तुत साक्ष्य की जांच करते हुए न्यायालय ने कहा,

“उनमें से किसी ने भी अधिग्रहित भूमि के आस-पास कोई भूमि नहीं बेची या खरीदी है। विचाराधीन भूमि के बाजार मूल्य का उनका मूल्यांकन उनके व्यक्तिगत ज्ञान पर आधारित नहीं है। यह केवल उनके अनुमान पर आधारित है।”

न्यायालय ने आगे कहा,

"भूमि स्वामियों द्वारा संदर्भ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि भूमि स्वामियों ने यह साबित करने का अपना दायित्व पूरा किया कि कलेक्टर द्वारा निर्धारित भूमि का बाजार मूल्य सही नहीं है।"

संदर्भ न्यायालय द्वारा अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य अधिक दर पर निर्धारित करके मुआवजा बढ़ाने को अपने स्वयं के निष्कर्ष के विपरीत बताते हुए न्यायालय ने अपना आदेश रद्द कर दिया और कलेक्टर का आदेश बरकरार रखा।

केस टाइटल- प्रशासक अधिसूचित क्षेत्र समिति कुपवाड़ा बनाम खजीर मोहम्मद मलिक और अन्य

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