कंपनी कीटनाशक अधिनियम के तहत अपराध करती है तो व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार सभी लोग उत्तरदायी होंगे: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कीटनाशक अधिनियम 1968 (Insecticides Act, 1968 ) के तहत यदि कोई कंपनी कोई अपराध करती है तो कंपनी और उस समय प्रभारी व्यक्ति दोनों को दोषी माना जाता है और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है। साथ ही उन्हें दंडित भी किया जा सकता है।
कंपनी को वास्तव में आरोपी बनाए बिना कंपनी के कर्मचारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए जस्टिस रजनीश ओसवाल की पीठ ने कहा,
“जब कंपनी को आरोपी नहीं बनाया जाता है तो याचिकाकर्ता जो कंपनी के कर्मचारी हैं, उन पर कंपनी द्वारा किए गए अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।”
ये टिप्पणियां कठुआ जम्मू में गोदरेज की विनिर्माण इकाई में कीटनाशक निरीक्षक की शक्तियों से संपन्न कानून प्रवर्तन के सहायक निदेशक द्वारा किए गए निरीक्षण से संबंधित मामले में आईं।
कीटनाशकों के सैंपल लिए गए और उनका विश्लेषण किया गया, जिसमें पता चला कि सैंपल गलत ब्रांड का था। परिणामस्वरूप बिक्री रोक दी गई और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कठुआ के समक्ष शिकायत दर्ज की गई, जो गुणवत्ता नियंत्रण प्रभारी और इकाई प्रभारी हैं। उन्होंने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रक्रिया जारी की।
इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ताओं के वकील करमन सिंह जोहल ने तर्क दिया कि कार्यवाही और आदेश त्रुटिपूर्ण हैस क्योंकि कंपनी गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड को आरोपी के रूप में नहीं रखा गया। उन्होंने जोर देकर कहा कि कंपनी को शामिल किए बिना केवल कर्मचारियों पर एक्ट की धारा 29 (1) (ए) (आई), 33 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को लैब रिपोर्ट का खंडन करने के उनके अधिकार से वंचित किया गया, जो कीटनाशक अधिनियम की धारा 22 और 24 का उल्लंघन है।
दूसरी ओर प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करने वाले दीवाकर शर्मा ने दावा किया कि एक्ट द्वारा अनिवार्य सभी प्रक्रियाओं का सावधानीपूर्वक पालन किया गया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही और प्रक्रिया शुरू करने का आदेश वैध है।
इस विवाद को संबोधित करते हुए कि क्या कंपनी की अनुपस्थिति में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शिकायत में कार्यवाही जारी रह सकती है, जस्टिस ओसवाल ने कहा कि एक्ट की धारा 33 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि कंपनी और उसके जिम्मेदार व्यक्तियों दोनों पर कंपनी द्वारा किए गए किसी भी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
पीठ ने टिप्पणी की,
"कीटनाशक अधिनियम 1968 के तहत जब किसी कंपनी द्वारा अधिनियम के तहत कोई अपराध किया जाता है तो अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार या प्रभारी प्रत्येक व्यक्ति, साथ ही कंपनी स्वयं भी अपराध का दोषी मानी जाती है और उसके अनुसार मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे दंडित किया जा सकता है।"
आगे बताया कि गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड को गलत ब्रांड वाले कीटनाशक के निर्माता के रूप में पहचाने जाने के बावजूद शिकायत में आरोपी के रूप में नहीं रखा गया।
हिमांशु बनाम बी. शिवमूर्ति, (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि अभियोजन चलाने के लिए कंपनी को आरोपी के रूप में पेश करना अनिवार्य है।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि कंपनी को शामिल किए बिना याचिकाकर्ताओं पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि उनकी ज़िम्मेदारी प्रतिरूपी थी। इन टिप्पणियों के आलोक में अदालत ने याचिका को अनुमति दी और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी।
केस टाइटल- सुनील कुमार बनाम कृषि विभाग जम्मू और कश्मीर