अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व के अधिकार पर तुरंत विचार किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-07-08 07:21 GMT

निवारक हिरासत आदेश (Preventive Detention Order) रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत गारंटीकृत अधिकार है, जो अधिकारियों पर इस पर तुरंत विचार करने का दायित्व डालता है।

हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस राहुल भारती ने कहा,

“प्रतिनिधित्व का अधिकार भारत के संविधान का ऐसा अधिकार है, जो हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अनुच्छेद 22 के तहत गारंटीकृत और प्रदत्त अधिकार है। सरकार और/या हिरासत आदेश बनाने वाले प्राधिकारी द्वारा इस पर विचार करना भी एक संवैधानिक दायित्व है।”

इसे सरकार द्वारा बरबाद या उपेक्षित नहीं किया जा सकता। निरोध आदेश बनाने वाले प्राधिकारी को ऐसे बंदी की दी गई निवारक निरोध अवैधानिक बनाने की कीमत पर छोड़कर निरोध प्राधिकारी की ओर से अपने निरोध आदेश के विरुद्ध बंदी द्वारा दायर किए गए अभ्यावेदन के प्रति अपने कर्तव्य के संबंध में आत्म-जागरूकता होनी चाहिए।

इस तथ्य पर जोर देते हुए न्यायालय ने कहा,

"किसी संवैधानिक न्यायालय को सरकार और/या निवारक निरोध आदेश बनाने वाले प्राधिकारी को यह याद दिलाना उचित नहीं है कि बंदी द्वारा अपने निवारक निरोध के विरुद्ध किया गया अभ्यावेदन उनके संबंधित पक्ष में विचार किए जाने से बचने या बचने की गुंजाइश नहीं रखता, जबकि सरकार और/या निवारक निरोध आदेश बनाने वाले प्राधिकारी को स्वयं यह जानना और अपने संबंधित पक्ष में याद दिलाना आवश्यक है कि बंदी द्वारा अपने निवारक निरोध के विरुद्ध किया गया अभ्यावेदन, यदि कोई हो सरकार और/या निवारक निरोध प्राधिकारी द्वारा किया जाने वाला बाध्यकारी विचारणीय विषय है। तदनुसारस बंदी को उसके अभ्यावेदन पर विचार किए जाने के परिणाम के बारे में विधिवत सूचित करना चाहिए।"

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला बारामुल्ला निवासी 31 वर्षीय मंजूर अहमद याटू से संबंधित है, जिसे नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1988 (PIT NDPS Act) में अवैध तस्करी की रोकथाम के तहत हिरासत में लिया गया। 8 सितंबर, 2023 को कश्मीर के डिवीजनल कमिश्नर द्वारा जारी किया गया निवारक निरोध आदेश सीनियर पुलिस अधीक्षक (SSP), बारामुल्ला द्वारा प्रस्तुत डोजियर पर आधारित था, जिसमें याटू पर मादक पदार्थों की तस्करी में शामिल होने का आरोप लगाया गया।

याटू ने अपने पिता मोहम्मद सुल्तान याटू के माध्यम से इस निरोध को चुनौती दी। यह तर्क दिया कि उसे हिरासत में लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है और उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट शीबा खान ने किया। उन्होंने तर्क दिया कि SSP बारामुल्ला द्वारा प्रस्तुत डोजियर यह खुलासा करने में विफल रहा कि याटू को 19 अगस्त 2023 को एफआईआर के संबंध में अंतरिम जमानत दी गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि डोजियर प्रस्तुत किए जाने के तीन दिन बाद ही यह जमानत प्रदान की गई। इस महत्वपूर्ण जानकारी की चूक ने संभागीय आयुक्त को गुमराह किया, जिन्होंने पूरी जानकारी के बिना ही हिरासत आदेश जारी कर दिया।

सरकारी वकील सज्जाद अशरफ द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने हिरासत का बचाव करते हुए तर्क दिया कि याटू ने मादक पदार्थों की तस्करी में अपनी कथित संलिप्तता के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण खतरा पैदा किया।

न्यायालय की टिप्पणियां:

प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस भारती ने कहा कि एसएसपी बारामुल्ला द्वारा डोजियर में याटू की अंतरिम जमानत याचिका और उसके बाद जमानत दिए जाने का उल्लेख न किए जाने से प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई। न्यायालय ने इस गैर-प्रकटीकरण को महत्वपूर्ण विफलता पाया। बताया कि इस चूक के कारण हिरासत में लेने वाले अधिकारी, संभागीय आयुक्त, कश्मीर और जम्मू-कश्मीर सरकार को गलत जानकारी या आधी-अधूरी जानकारी दी गई।

न्यायालय ने कहा कि इससे पूरी हिरासत प्रक्रिया अवैध हो गई। इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि याटू ने 12 अक्टूबर, 2023 को अपनी हिरासत के खिलाफ एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया। हालांकि, दिसंबर 2023 में जवाबी हलफनामा दाखिल किए जाने तक अधिकारियों द्वारा अभ्यावेदन पर विचार करने या उसका जवाब देने का कोई रिकॉर्ड नहीं था।

जस्टिस भारती ने इस बात पर जोर दिया कि प्रतिनिधित्व का अधिकार संवैधानिक दायित्व है, जिसे सरकार या हिरासत में रखने वाले अधिकारी द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति का अभ्यावेदन बाध्यकारी विचार का पात्र है और अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे हिरासत में लिए गए व्यक्ति को परिणाम के बारे में सूचित करें।

इन खामियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने याटू के पक्ष में फैसला सुनाया। निवारक निरोध आदेश और सरकार द्वारा इसकी बाद की पुष्टि रद्द की और याटू की रिहाई का आदेश दिया गया।

केस टाइटल- मंजूर अहमद याटू बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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