सरकारी कर्मचारी प्रमाण-पत्र जमा करने के 5 साल बाद सेवा रिकॉर्ड में जन्मतिथि नहीं बदल सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि सरकारी कर्मचारी द्वारा घोषित जन्मतिथि और उसके बाद उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सेवा पुस्तिका या किसी अन्य रिकॉर्ड में दर्ज की गई जन्मतिथि में सरकार के आदेश के बिना किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जा सकता सिवाय लिपिकीय त्रुटि के।
अदालत ने यह भी माना कि प्रशासनिक विभाग द्वारा कर्मचारी की जन्मतिथि में तब तक कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता, जब तक कि कर्मचारी ने पांच साल की अवधि के भीतर सरकार से संपर्क न किया हो और यह साबित न कर दिया हो कि ऐसी गलती वास्तविक और नेकनीयत थी।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने माना कि अपीलकर्ता का मामला यह नहीं था कि उसने पांच साल की अवधि के भीतर विभाग से संपर्क किया था। सेवा रिकॉर्ड तभी बनाया गया जब उसने संबंधित विभाग को उक्त दस्तावेज जमा किए।
अदालत ने कहा कि सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने वाले किसी भी व्यक्ति को यह कहते हुए नहीं सुना जा सकता कि उसे अपने प्रमाण-पत्रों/प्रशंसापत्रों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, जिन्हें उसने नौकरी के लिए आवेदन करते समय जमा किया।
अदालत ने कहा कि वादी अपनी जन्मतिथि बदलकर खुद को पांच साल छोटा दिखाना चाहता था, जिससे वह पांच साल और सेवा और सेवा लाभ प्राप्त कर सके।
अदालत ने माना कि वर्तमान मामला सिविल सेवा विनियमन 1956 द्वारा शासित था, जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि जन्मतिथि मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र के आधार पर दर्ज की जाएगी, जिसे इस मामले में अपीलकर्ता ने अपनी सेवाओं में शामिल होने के समय प्रस्तुत किया था और सेवा रिकॉर्ड में उसके द्वारा हस्ताक्षरित भी किया गया।
अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की दलील थी कि उसकी वास्तविक जन्मतिथि 1953 के बजाय 1958 थी, जिसे अगर स्वीकार कर लिया जाता है तो यह विवेकपूर्ण नहीं होगा, क्योंकि अपीलकर्ता ने 1970 में अपनी मैट्रिकुलेशन परीक्षा दी थी।
इसने कहा कि इसका मतलब यह होगा कि जब वह मैट्रिकुलेशन परीक्षा के लिए योग्य हुआ था तब उसकी उम्र केवल 12 वर्ष थी, जो कि असंभव है, क्योंकि उस समय नियम के अनुसार परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम आयु 16 वर्ष होनी चाहिए थी।
पूरा मामला
अपीलकर्ता ने अपनी सेवा में शामिल होने के बाद अपने प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें जन्म तिथि 1953 दर्शाई गई और सेवा अभिलेखों में उनके द्वारा हस्ताक्षरित भी थे। अपीलकर्ता ने कहा कि दशकों बाद उसे एहसास हुआ कि यह सत्य नहीं था और उसने ऐसे दावों को सही ठहराने के लिए एक चिकित्सा प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया।
अपीलकर्ता ने घोषणा के लिए सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालाँकि ट्रायल कोर्ट ने सीमा और सेवा नियमों द्वारा वर्जित होने के कारण मुकदमे को खारिज कर दिया, जो प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के पांच साल बाद जन्म तिथि को बदलने पर रोक लगाते हैं। अपीलकर्ता द्वारा एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के समक्ष दायर की गई अपील को भी खारिज कर दिया गया।
न्यायालय ने कहा कि एक बार जब अधिकारियों ने अपीलकर्ता के प्रमाण-पत्र स्वीकार कर लिए तो उन प्रमाण-पत्रों में दर्ज जन्म तिथि को सत्य माना गया। 40 साल तक प्रतीक्षा करने के बाद भी चिकित्सा प्रमाण-पत्र पर भरोसा करके भी उसी रिकॉर्ड को बदला नहीं जा सकता।
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम सी. राम स्वामी (1997) पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि भले ही वास्तविक अभिलेखों का खुलासा किया गया हो लेकिन वे दशकों बाद सेवा अभिलेख को रद्द करने का आधार नहीं हो सकते।
न्यायालय ने कहा कि यदि अपीलकर्ता की यह दलील स्वीकार कर ली जाती है कि वह वास्तव में 1958 में पैदा हुआ था तो इसका मतलब यह होगा कि जब वह मैट्रिकुलेशन परीक्षा के लिए योग्य हुआ था तब उसकी आयु केवल 12 वर्ष थी जो कि अत्यधिक असंभव है।
तदनुसार न्यायालय ने निचली अदालत का आदेश बरकरार रखा और अपील खारिज की।
केस टाइटल: गुलाम नबी सोफी बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य, 2025