अनुच्छेद 370 हटने और COVID-19 के बाद अदालतों के कामकाज पर पड़ा असर: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अंतिम बहस के चरण में गवाहों की पेशी की अनुमति दी
जम्मू कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट की जस्टिस संजय धर की एकल पीठ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 540 के तहत अदालत किसी भी व्यक्ति को किसी भी चरण में गवाह के रूप में बुलाने की शक्ति रखती है। अदालत ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने अनुच्छेद 370 के निरसन और COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में नहीं रखा, जब उसने गवाहों की पेशी की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता के खिलाफ RPC की धारा 420, 468 और 471 के तहत FIR दर्ज की गई थी। यह मामला वर्ष 2014 से ट्रायल मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित था। 13 अक्टूबर, 2015 को ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन द्वारा गवाहों को पेश न कर पाने के कारण साक्ष्य बंद कर दिए। इसके बाद अभियोजन ने CrPC की धारा 540 के तहत अतिरिक्त गवाहों को समन करने हेतु आवेदन दायर किया, जिसे 18 दिसंबर 2015 को खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां 20 मार्च, 2019 को कोर्ट ने अभियोजन को चार सुनवाई तिथियों में शेष गवाहों को पेश करने का निर्देश दिया। लेकिन निर्देश के बावजूद दो गवाहों की गवाही नहीं हो सकी और 27 फरवरी, 2020 को ट्रायल कोर्ट ने दोबारा साक्ष्य बंद कर दिए। इसके बाद आरोपी का बयान दर्ज किया गया और मामला अंतिम बहस के लिए निर्धारित कर दिया गया।
इसके बाद अभियोजन ने पुनः गवाहों की पेशी के लिए आवेदन किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने 29 अप्रैल 2023 को खारिज कर दिया। इसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि चार तिथियों में गवाहों को पेश करने का अवसर मिलने के बावजूद अनुच्छेद 370 के हटने से उत्पन्न स्थिति और उसके बाद COVID-19 महामारी के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका। उन्होंने तर्क दिया कि ये परिस्थितियां असामान्य थीं और ट्रायल कोर्ट ने इनका उचित संज्ञान नहीं लिया। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिन गवाहों की गवाही शेष है, वे मामले के निष्पक्ष निपटारे के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उन्हें नजरअंदाज़ करना न्याय का मखौल होगा।
कोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि CrPC की धारा 540 के तहत अदालत के पास किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुलाने का अधिकार है, चाहे वह मुकदमे के किसी भी चरण में हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल यह तर्क कि मामला अंतिम बहस के लिए तय हो गया, अभियोजन के आवेदन को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।
हालांकि, कोर्ट ने अभियोजन की सुस्ती को लेकर असंतोष व्यक्त किया लेकिन साथ ही यह भी माना कि अनुच्छेद 370 हटने और महामारी जैसे कारकों ने गवाहों की पेशी में बाधा डाली। कोर्ट ने यह भी माना कि कोविड के समय गवाहों में संक्रमण के डर के चलते कोर्ट में पेश होने में हिचकिचाहट थी।
इसके अतिरिक्त चूंकि एक गवाह सरकारी अधिकारी था ट्रायल कोर्ट को उसका समन जारी करना चाहिए था और जब ऐसा नहीं हुआ तो साक्ष्य बंद करना उचित नहीं था।
इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 29 अप्रैल, 2023 का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि शेष गवाहों के बयान एक माह के भीतर दर्ज किए जाएं।
केस टाइटल: परवीन बानू बनाम मोहम्मद इकबाल कुरैशी एवं अन्य.