निजता के उल्लंघन के कारण रिकॉर्ड की गई टेलीफोन बातचीत साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-11-06 07:03 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि बिना सहमति के प्राप्त की गई रिकॉर्ड की गई टेलीफोन बातचीत साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि उनका उपयोग किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा।

यह फैसला एक याचिका से आया जिसमे प्रतिवादी की पत्नी और उसकी माँ के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत को अदालत में स्वीकार करने की मांग की गई थी जिसे ट्रायल कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था।

याचिकाकर्ता ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 (बी) और फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 14 के तहत रिकॉर्डिंग पर भरोसा करने का प्रयास करते हुए इस इनकार को चुनौती दी।

इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस बिपिन चंद्र नेगी ने निजता के संवैधानिक संरक्षण को रेखांकित करते हुए कहा,

“टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। अपने घर/कार्यालय की निजता में बिना किसी हस्तक्षेप के टेलीफोन पर बातचीत करने के अधिकार को निश्चित रूप से 'निजता के अधिकार के रूप में दावा किया जा सकता है।"

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे साक्ष्य एकत्र करने का कोई भी अनधिकृत साधन संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा, जब तक कि वैध प्रक्रिया द्वारा इसकी अनुमति न दी जाए।

अपने निर्णय के समर्थन में न्यायालय ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम भारत संघ 1997 (1) एससीसी 301 का हवाला दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत निजता को व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता दी थी।

PUCL में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया,

"टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। निजता के अधिकार में निश्चित रूप से किसी के घर या कार्यालय की निजता में टेलीफोन पर बातचीत शामिल होगी।”

टेलीफोन-टैपिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करेगी, जब तक कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत इसकी अनुमति न दी जाए। के.एस. पुट्टास्वामी और अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य, 2017 (10) एससीसी 1 ऐतिहासिक निर्णय जिसने अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया।

इस निर्णय ने स्थापित किया कि निजता व्यक्तिगत डोमेन में व्यापक रूप से फैली हुई, जो व्यक्तियों को अनधिकृत निगरानी या घुसपैठ से बचाती है।

इन सिद्धांतों के प्रकाश में, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि विचाराधीन रिकॉर्ड की गई बातचीत अस्वीकार्य थी, क्योंकि यह निजता के गैरकानूनी उल्लंघन के बराबर थी। इस प्रकार याचिका को खारिज कर दिया गया और किसी भी अंतरिम आदेश रद्द कर दिया गया, जिससे यह पुष्ट होता है कि निजता के अधिकार ऐसे रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में उपयोग करने से रोकते हैं जब तक कि कानून के तहत प्राप्त न हो।

केस टाइटल: धर्मेश शर्मा बनाम तनीषा शर्मा

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