वसीयत का सबूत देने वाले गवाह की तुरंत जांच करने के लिए अदालत को उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने कहा कि जब वसीयत का सबूत देना होता है तो न्यायालय को सीपीसी के आदेश 18 नियम 16 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग करके गवाह से तुरंत पूछताछ करने में अलग और उदार विचार करना होगा।
आदेश 18 नियम 16 गवाह से तुरंत पूछताछ करने की शक्ति प्रदान करता है।
जस्टिस सी जयचंद्रन ने कहा,
"इस न्यायालय की राय है कि 'वसीयत' के प्रमाण के संदर्भ में आदेश XVIII, नियम 16 सीपीसी के तहत याचिका पर अलग और उदार विचार प्राप्त करना होगा, जितना कि यह अनिवार्य है। साक्ष्य अधिनियम की (Evidence Act ) धारा 68 के साथ-साथ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) की धारा 63 के अनुसार, 'वसीयत' के सबूत में प्रमाणित गवाहों में से कम से कम एक की जांच करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जांच उदार तरीके से हो।”
इसके अलावा, यह देखा गया कि यदि गवाह न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को छोड़ने वाला है, या अन्य पर्याप्त कारण दिखाया गया है तो न्यायालय तुरंत गवाह से पूछताछ कर सकता है। यह देखा गया कि मुकदमा वसीयत की वैधता पर आधारित है, इसलिए जीवित गवाह, जो वृद्ध और बीमार है, उसकी जांच करके वसीयत का सबूत देना अनिवार्य है।
गवाह से पूछताछ के लिए आवेदन की अनुमति देते हुए न्यायालय ने इस प्रकार कहा,
आदेश XVIII, नियम 16 सीपीसी में प्रयुक्त भाषा यह इंगित करेगा कि जहां कोई गवाह अदालत के अधिकार क्षेत्र को छोड़ने वाला है, या ऐसे मामलों में जहां अदालत की संतुष्टि के लिए अन्य पर्याप्त कारण दिखाए गए कि उसका साक्ष्य तुरंत क्यों लिया जाना चाहिए, अदालत गवाह के ऐसे साक्ष्य ले सकती है। पक्ष या गवाह द्वारा दिया गया आवेदन, जैसा कि पहले ही संकेत दिया गया, विवाद की जड़ 'वसीयत' के बल पर है। इसमें 'वसीयत' को साबित करने के लिए साक्ष्य देने वाले गवाहों में से कम से कम एक की जांच अनिवार्य है। इसमें कोई विवाद नहीं है कि जीवित गवाह वृद्ध है। हालांकि, प्रतिवादी का तर्क होगा कि उसकी आयु केवल 70 वर्ष है।
याचिकाकर्ता ने वसीयत के सबूत के लिए प्रमाणित गवाह की जांच करने के लिए सीपीसी के आदेश 18 नियम 16 के तहत अपना आवेदन खारिज करने के आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया। वसीयत की वैधता के बारे में मुकदमा निचली अदालत में लंबित है। याचिकाकर्ता को वसीयत की वैधता साबित करनी है और प्रमाणित करने वाले गवाहों में से एक की मृत्यु हो गई। दूसरे गवाह की उम्र 78 वर्ष है, जिसका साक्ष्य सीपीसी के आदेश 18 नियम 16 के तहत तुरंत लिया जाना है।
मुंसिफ कोर्ट ने लक्ष्मीबाई बनाम भगवंतबुवा और अन्य पर भरोसा किया तर्क दिया कि साक्ष्य देने वाले गवाह की स्वास्थ्य स्थिति का कोई सबूत नहीं दिया गया। इसने उत्तरदाताओं के इस तर्क पर भी ध्यान दिया कि साक्ष्य देने वाला गवाह हाईकोर्ट में प्रैक्टिसिंग वकील है।
दूसरी ओर, उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि मुकदमा केवल मुद्दों को तय करने के चरण में है और गवाह की जांच के लिए असाधारण उपाय लागू करने की तत्काल आवश्यकता नहीं है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि गवाह वृद्ध और बीमार है।
कोर्ट ने पाया कि मुकदमा वसीयत की वैधता से संबंधित है और याचिकाकर्ता को अपनी याचिका का बचाव करने के लिए वसीयत साबित करनी होगी। इसमें पाया गया कि एक गवाह की पहले ही मौत हो चुकी है और दूसरा गवाह भी बीमार है। यह देखा गया कि वसीयत को शेष गवाहों में से कम से कम जीवित और 78 वर्ष की आयु वाले गवाहों की जांच करके साबित किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा,
"ऐसी परिस्थितियों में यह उचित है कि आवेदन को मुंसिफ द्वारा अनुमति दी गई, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि याचिकाकर्ता को 'वसीयत' साबित करने के लिए उपलब्ध उपाय किसी भी अप्रिय घटना के कारण खो न जाए।”
इसमें कहा गया कि लक्ष्मीबाई मामले में निर्णय यह अनिवार्य नहीं बनाता कि केवल मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति या गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की ही आदेश 18 नियम 16 सीपीसी के तहत जांच की जा सकती है।
इस प्रकार, याचिका स्वीकार कर ली गई और मुंसिफ कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील- केजी बिंदू।
प्रतिवादियों के वकील- सरीन, अभिलाष जे, एस ग्रीष्मा शनमुखन।
साइटेशन- लाइवलॉ (केर) 58 2024
केस टाइटल- राजेश्वरी बनाम ओमाना अम्मा
केस नंबर- OP(C) NO. 2023 का 2242