गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 4.5 साल से अधिक समय से हिरासत में बंद UAPA आरोपी को अपर्याप्त साक्ष्य का हवाला देते हुए जमानत दी

Update: 2024-01-16 09:53 GMT

गुवाहाटी हाइकोर्ट ने पिछले सप्ताह इंद्र मोहन बोरा को जमानत दी, जिस पर गुवाहाटी सेंट्रल शॉपिंग मॉल के पास 2019 में हुए ग्रेनेड विस्फोट में कथित शामिल होने के लिए कड़े गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA  Act) के तहत मामला दर्ज किया गया, जिसमें 12 लोग घायल हुए थे।

जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा और जस्टिस मालाश्री नंदी की खंडपीठ ने यह कहते हुए उन्हें जमानत दे दी कि बोरा के खिलाफ पेश किए गए सबूत यह नहीं दर्शाते हैं कि वह ग्रेनेड विस्फोट में शामिल था। हालांकि खंडपीठ ने कहा वह आतंकवादी संगठन का सदस्य हो सकता है।

खंडपीठ ने कहा,

“वर्तमान मामले में यह मानते हुए कि अपीलकर्ता आतंकवादी संगठन का सदस्य है। अपीलकर्ता को आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। वहीं इस मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादियों की आगे की आवश्यकता यह दर्शाने की होगी कि वह (ए-1) पप्पू कोच के साथ ग्रेनेड विस्फोट में शामिल था। अदालत ने कहा, क्योंकि उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अभियुक्त को अपराध से जोड़ने वाले गवाहों द्वारा दिए गए एक्ट की धारा 161 के बयानों पर भरोसा करें।”

मामला संक्षेप में

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार 15 मई, 2019 को आरोपी नंबर 1 यानी पप्पू कोच बोकोलियाल/ए1 द्वारा कथित तौर पर ग्रेनेड फेंका गया, जिससे गुवाहाटी सेंट्रल शॉपिंग मॉल के पास विस्फोट हुआ।

इसके बाद आईपीसी की धारा 325/326/307/121 के साथ विस्फोटक पदार्थ (Explosive Substances) एक्ट की धारा 3/5 और UAPA  Act की धारा 10/13/16/20 के तहत FIR दर्ज की गई। घटना के संबंध में आरोपी को राज्य पुलिस ने 17 मई, 2019 को गिरफ्तार किया।

बाद में अपराध की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने मामले की जांच एनआईए (NIA) को ट्रांसफर कर दी। जांच पूरी होने के बाद NIA द्वारा अपीलकर्ता अभियुक्त सहित आठ आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ समेकित आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।

यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने पप्पू कोच (ए1) को रसद सहायता दी, जो उल्फा का सदस्य है और आतंकवादी संगठन है। यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने विस्फोट से पहले अपने मोबाइल फोन के माध्यम से पप्पू कोच के साथ 33 बार बातचीत की थी।

ट्रायल कोर्ट ने फरवरी, 2022 में अपीलकर्ता के खिलाफ UAPA  Act की धारा 18, 19, 38 और 39 के तहत आरोप तय किए, जिस पर उसने 'दोषी नहीं' होने का अनुरोध किया और मुकदमा चलाने का दावा किया।

मामले में जमानत की मांग करते हुए अपीलकर्ता ने हाइकोर्ट का रुख किया, जहां उसके वकील ने तर्क दिया कि दो आरोपियों को पहले ही जमानत दी जा चुकी है और आज तक 177 अभियोजन गवाहों में से केवल 20 से पूछताछ की गई, जबकि अपीलकर्ता चार साल सात महीने और 22 दिन के अधिक समय से न्यायिक हिरासत में है।

दूसरी ओर प्रतिवादी NIA की ओर से पेश SGI ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता ने पूछताछ के दौरान कहा कि उसने विस्फोट के बाद उसे आश्रय दिया और स्वीकार किया कि वह ग्रेनेड विस्फोट में सीधे तौर पर शामिल है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता के मोबाइल की सीडीआर के अनुसार वह लगातार ए1 के संपर्क में है।

कोर्ट की टिप्पणियां

न्यायालय ने UAPA  Act की धारा 43डी(5) के आदेश को ध्यान में रखा, जिसमें प्रावधान है कि UAPA के अध्याय IV और VI के तहत आरोपी व्यक्ति को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता, जब तक कि लोक अभियोजक को सुनने की अनुमति नहीं दी गई हो। इसमें यह भी प्रावधान है कि ऐसे आरोपी व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा। यदि अदालत को लगता है कि केस डायरी या आरोप पत्र के अवलोकन के बाद यह विश्वास करने का उचित आधार है कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच है।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। वहीं यह तथ्य एचसी को नए सिरे से विचार करने से नहीं रोकेगा कि क्या आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया है।

अदालत ने आगे कहा कि यह मानते हुए भी कि अपीलकर्ता आतंकवादी संगठन का सदस्य है। अपीलकर्ता को आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के लिए दोषी ठहराया जा सकता। वहीं यह साबित करना अभी भी आवश्यक है कि वह ग्रेनेड विस्फोट में A-1 के साथ शामिल है।

कोर्ट ने कहा कि पहले से पेश किए गए सबूत यह नहीं दर्शाते हैं कि वह ग्रेनेड विस्फोट में शामिल है, लेकिन वह आतंकवादी संगठन का सदस्य हो सकता है।

नतीजतन, इस बात पर जोर दिया गया कि अपीलकर्ता और (ए-1) के बीच कथित संचार की सामग्री उसे ग्रेनेड विस्फोट से जोड़ने के लिए ज्ञात नहीं थी। तथ्य यह है कि वह चार साल सात महीने और 22 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में है। अभियोजन पक्ष के 177 गवाहों में से केवल 20 की जांच की गई और दो सह अभियुक्तों को पहले ही जमानत पर रिहा कर दिया गया। अदालत ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 को ध्यान में रखते हुए उन्हें जमानत देना उचित समझा।

केस टाइटल - इंद्र मोहन बोरा बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी 

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