मोरबी ब्रिज त्रासदी | गुजरात हाइकोर्ट ने राज्य के 'अधूरे' हलफनामे पर सवाल उठाए, पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे के संबंध में सकारात्मक समाधान का आह्वान किया
गुजरात हाइकोर्ट ने नवंबर 2022 की मोरबी ब्रिज त्रासदी पर राज्य सरकार के हलफनामे पर चिंता जताई।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस पी. अनिरुद्ध मायी की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए 2022 में ढह गए मोरबी सस्पेंशन ब्रिज के रखरखाव और संचालन के लिए जिम्मेदार ओरेवा ग्रुप्स को पीड़ित परिवारों के लिए मुआवजे के संबंध में "सकारात्मक समाधान" प्रदान करने का निर्देश दिया।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि कंपनी को "सकारात्मक समाधान और ठोस चीजें सामने लानी होंगी"।
चीफ जस्टिस अग्रवाल ने मौखिक टिप्पणी में मुआवजे के मामलों को संभालने के लिए ट्रस्ट की स्थापना का सुझाव दिया।
उन्होंने कहा,
''आपको ट्रस्ट बनाना होगा। हमने आखिरी मौके पर जो सुझाव दिया था, वह यह है कि आपको अंतिम सांस तक हर किसी का ख्याल रखना होगा। यदि कोई ट्रस्ट है तो व्यक्तियों से स्वतंत्र एक निकाय है, और वह निकाय इसकी देखभाल कर सकता है।"
न्यायालय ने प्रस्तुत हलफनामे को "अपूर्ण" बताते हुए उस घटना से प्रभावित बच्चों की स्थिति पर प्रकाश डालने वाली व्यापक रिपोर्ट की आवश्यकता पर बल दिया, जिसने 135 लोगों की जान ले ली।
यह हलफनामा एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी द्वारा पेश किया गया, जिसमें खुलासा किया गया कि मोरबी ब्रिज त्रासदी में 21 बच्चों ने एक या दोनों माता-पिता को खो दिया।
प्रस्तुत हलफनामे में राज्य ने घटना में अपनी जान गंवाने वाले व्यक्तियों की विधवाओं और आश्रित बुजुर्ग माता-पिता के बारे में जानकारी दी। साथ ही उन बच्चों के बारे में भी जानकारी दी, जो अनाथ हो गए, या एकल माता-पिता के साथ छोड़ दिए गए।
एडवोकेट जनरल त्रिवेदी ने कहा कि पीड़ितों के संबंध में मूल्यांकन किया गया और उचित मुआवजा राशि के निर्धारण की सुविधा के लिए कंपनी को प्रासंगिक जानकारी प्रदान की गई। इसके बाद कंपनी को इस संबंध में निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
हलफनामे में निम्नलिखित विशिष्टताएं शामिल थीं
त्रासदी से प्रभावित चार व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य उपचार की आवश्यकता है और उन्हें आगे की जांच के लिए सिविल अस्पताल में रेफर किया गया। इसके अतिरिक्त, 54 वर्षीय कुसुम राठौड़ के लिए घर पर उपचार की व्यवस्था की गई, जिन्होंने अस्पताल जाने में कठिनाई व्यक्त की।
घटना में घायल हुए 74 लोगों में से 18 को मामूली चोटें आईं और कुछ देर अस्पताल में रहने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई। अदालत में त्रिवेदी के बयान के अनुसार शेष 56 को विस्तारित उपचार और अनुवर्ती कार्रवाई की आवश्यकता थी, उनमें से तीन 40 प्रतिशत या उससे अधिक की दिव्यांगता का अनुभव कर रहे हैं।
इस त्रासदी के कारण दस महिलाएं विधवा हो गईं। उनमें से चार ने ओरेवा समूह से नौकरी की पेशकश स्वीकार कर ली, जबकि छह ने रोजगार अस्वीकार कर दिया। इनकार करने के कारणों में एक महिला पहले से ही कंडक्टर के रूप में काम कर रही थी और दूसरी ने सिलाई मशीन के लिए प्राथमिकता व्यक्त की थी। दो विधवाओं के परिवारों ने उन्हें नौकरी करने की अनुमति नहीं दी, एक महिला ने बाहर काम न कर पाने का कारण बच्चे की देखभाल का हवाला दिया। ये व्यक्ति कंपनी से सिलाई मशीनें और मासिक मौद्रिक मुआवजा प्राप्त करने के लिए तैयार थे।
त्रिवेदी ने अदालत को बताया कि इसके अतिरिक्त, 50 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 45 बुजुर्ग व्यक्ति हैं, जिन्हें मृतक अपने पीछे छोड़ गया।
बच्चों के संबंध में 7 अनाथ हो गए और 14 ने अपने माता-पिता को खो दिया, जैसा कि त्रिवेदी ने रेखांकित किया।
ओरेवा समूह की ओर से पेश वकील निरुपम नानावटी ने पुष्टि की कि कंपनी पीड़ितों को अधिकतम सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध है। मुआवज़े की बारीकियों को रेखांकित किया गया और वर्तमान में इसमें सुधार किया जा रहा है।
अनाथ व्यक्तियों के संबंध में कंपनी शिक्षा भोजन, कपड़े और आवास की वार्षिक लागत वहन कर रही है। नानावटी के अनुसार, इसके अतिरिक्त, प्रति बच्चे 50,000 रुपये की राशि पहले ही वितरित की जा चुकी है।
हालांकि, अदालत ने उन 14 बच्चों के शेष माता-पिता की स्थिति को लेकर अस्पष्टता पर प्रकाश डाला। न्यायालय ने कहा कि बच्चों की स्थिति की जांच अधूरी है और दादा-दादी द्वारा देखभाल किए जाने पर बच्चों को अनाथ के रूप में लेबल करने पर सवाल उठाया।
न्यायालय द्वारा यह बताया गया कि रिपोर्ट यह निर्दिष्ट करने में विफल रही कि कौन से माता-पिता इस त्रासदी का शिकार हुए परिवार के कमाने वाले के रूप में उनकी भूमिका या प्रभावित बच्चों का वर्तमान निवास स्थान क्या है।
अदालत ने मामले में कलेक्टर की भूमिका की आलोचना करते हुए रिपोर्ट में विसंगतियों और गलतियों की पहचान की।
प्रत्येक प्रभावित बच्चे की स्थिति के विवरण के डॉक्यूमेंटटेशन में सटीकता और पूर्णता की आवश्यकता पर जोर देते हुए हाइकोर्ट ने अधिकारियों को उन बच्चों की स्थिति पर पूरी तरह से तैयार और विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जिन्होंने त्रासदी में अपने माता-पिता में से एक को खो दिया।
न्यायालय ने ओरेवा कंपनी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील द्वारा प्रस्तुत हलफनामे पर भी असंतोष व्यक्त किया। अदालत ने इसे अधूरा बताया और दुखद घटना से संबंधित जानकारी प्रदान करने में कंपनी की भूमिका के संबंध में अधिक व्यापक और सटीक प्रस्तुतिकरण के लिए कहा।
इस मामले पर अगली सुनवाई 26 फरवरी को होनी है।