गुजरात हाईकोर्ट ने गुजरात निषेध अधिनियम के तहत बुक किए गए महाराष्ट्र वाइन शॉप मालिकों, शराब लाइसेंस धारकों के लिए राहत की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य पुलिस को गुजरात निषेध अधिनियम, 1949 के तहत महाराष्ट्र के शराब दुकान मालिकों और शराब लाइसेंस धारकों पर मामला दर्ज करने से रोकने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी मायी की खंडपीठ ने लाइसेंस प्राप्त शराब विक्रेताओं के महाराष्ट्र स्थित संघ, एसोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव रिटेल लिकर वेंडर्स द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि याचिका में याचिकाकर्ता एसोसिएशन के पंजीकरण प्रमाण पत्र सहित आवश्यक दस्तावेज का अभाव है।
याचिका की अपर्याप्तता पर प्रकाश डालते हुए पीठ ने टिप्पणी की, "यह एसोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव रिटेल लिकर वेंडर्स के नाम से दायर की गई पूरी तरह से गलत याचिका है, जिसका पंजीकरण प्रमाण पत्र हमारे सामने नहीं रखा गया है।"
पीठ ने कहा, "रिट याचिका के प्रार्थना खंड से ही यह स्पष्ट है कि व्यक्तिगत दुकान मालिक के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता है, वह कानून में उपलब्ध उपाय का लाभ उठा सकता है।"
महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे और पालगर जिलों में शराब की दुकान के मालिकों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले याचिकाकर्ताओं ने गुजरात निषेध अधिनियम के तहत महाराष्ट्र के किसी भी शराब की दुकान के मालिकों (लाइसेंस धारकों) के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को रोकने के लिए एक व्यापक परमादेश की मांग की।
याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने पिछले साल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि गुजरात अधिकारी गुजरात निषेध अधिनियम के तहत मामलों में महाराष्ट्र के शराब दुकान मालिकों और शराब लाइसेंस धारकों को गैरकानूनी तरीके से फंसा रहे थे।
एसोसिएशन ने तर्क दिया कि गुजरात में अवैध रूप से शराब ले जाने के आरोप में गिरफ्तार किए गए लोगों के बयानों के आधार पर महाराष्ट्र के व्यक्तियों को फंसाया जा रहा है।
केस टाइटलः अध्यक्ष अरविंद विट्ठलसा मिस्किन के माध्यम से एसोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव रिटेल लिकर वेंडर्स बनाम गुजरात राज्य
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